उस पार के..
अज्ञात को ज्ञात करने
के लिये
एक सम्मोहन है
जो अक्सर
देता है मुझे आमन्त्रण
पाँवों की एक
अबूझ सी रस्साकस्सी है
लहरों के साथ…
बजरी सी माटी मिल
लहरों संग
खिसका रही है
उनका अस्तित्व
बस एक जिद्द है
जिसके बल पर
खड़ी हूँ निश्चल सी
एकाग्रता है कि..
मंत्र मुग्ध है
अपने आप में
जानती हूँ जब यह बंधन टूटेगा
मन करेगा कि..
चलती चली जाऊं
सागर के उस पार
जहां उफ़ुक़ पर
डूब रहा है सिंदूरी सूरज
***
अज्ञात से ज्ञात की ओर का अधिगम हर किसी को कहाँ नसीब।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन।
नई रचना
हार्दिक आभार आभार रोहित जी ।
हटाएंसुंदर सृजन...
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आभार विकास जी ।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 10 मार्च 2021 को साझा की गई है......"सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" परआप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं"सांध्य दैनिक मुखरित मौन में"सृजन को साझा करने हेतु सादर आभार 🙏
हटाएंबहुत अच्छी रचना है यह मीना जी । सहज अभिव्यक्ति ऐसी ही होती है । काश ऐसा सचमुच हो पाए !
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार जितेन्द्र जी ।
हटाएंबेहतरीन।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आभार शिवम् जी।
हटाएंबहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंशिव त्रयोदशी की बहुत-बहुत बधाई हो।
आपको भी परिवार सहित शिव त्रयोदशी की की बहुत बहुत बधाई सर! उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु सादर आभार 🙏
हटाएंबेहतरीन रचना सखी
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सखी ।
हटाएंबहुत ही सुंदर सृजन सराहनीय सृजन।
जवाब देंहटाएंमन को मोहता।
सादर
सराहना भरी स्नेहिल उपस्थिति के लिए हार्दिक आभार अनीता जी ।
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति,मीना दी।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ज्योति जी ।
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक ११-०३-२०२१) को चर्चा - ४,००२ में दिया गया है।
जवाब देंहटाएंआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
चर्चा मंच पर सृजन को साझा करने हेतु हार्दिक आभार दिलबाग सिंह जी ।
हटाएंज्ञात से अज्ञात की और बढ़ते कदम और उफ़क की लालिमा . बहुत कुछ समेटा इस रचना में .
जवाब देंहटाएंआपकी अनमोल प्रतिक्रिया से लेखनी सफल हुई । हार्दिक आभार मैम ।
हटाएंउस पार के..
जवाब देंहटाएंअज्ञात को ज्ञात करने
के लिये
एक सम्मोहन है
जो अक्सर
देता है मुझे आमन्त्रण
अज्ञात को जानने की इच्छा और उत्सुकता.....इधर के बंधनों में बंधकर उस पार की चाह......सिंदूरी सूरज का डूबना ....जीवन का सांंध्यकाल...
बहुत ही चिन्तनपरक... लाजवाब सृजन।
आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से लेखनी सफल हुई । हार्दिक आभार सुधा जी । सस्नेह ।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सर ।
हटाएंमहाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं मीना जी।
जवाब देंहटाएंआपके शब्दों का जादू सम्मोहित करता है सदा लगता है इसमें कुछ और है जो ढूंढने की जिज्ञासा रहती है,जैसे उफ़ुक़ के पार का सिंदुरी सूरज।
अभिनव।
आपको भी महाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं कुसुम जी । आपकी स्नेहिल उपस्थिति सदैव हर्ष प्रदान करती है। सराहना भरी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।
हटाएंसागर के उस पार
जवाब देंहटाएंजहां उफ़ुक़ पर
डूब रहा है सिंदूरी सूरज
जीवनदर्शन समेटे, चिन्तनपरक... लाजवाब सृजन।सुधा जी ने इसके मर्म को भलीभांति समझा दिया।
बस यही जीवन है,सादर नमन मीना जी
सारगर्भित सराहना भरी स्नेहिल प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ । हार्दिक आभार कामिनी जी ।
हटाएंमहाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंआपको भी महाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं सर🙏
हटाएंआपके ब्लॉग पर फौलोर्स का गेजेट नहीं लगा है . मेल से फौलो तो किया है लेकिन कई बार मेल देख नहीं पाते . प्रयास रहेगा कि निरंतर आपके ब्लॉग पर आते रहें .
जवाब देंहटाएंआदरणीया संगीता जी,
हटाएंसादर नमस्कार ! आपको 74 फोटोज के नीचे छोटे से blue box में follow लिखा है उसको press करना है।अगले ऑप्शन में फिर follow के विकल्प को press करना है । मैंने आपको फॉलो कर रखा है । आपकी नजरों मे आती रहूँगी🙏😊
बिलकुल आपको नज़र में रखेंगे . आज फ़ॉलो कर लिया है कल दिख नहीं रहा था तो इ मेल से किया था :)
हटाएंआपके स्नेह से अभिभूत हूँ 🙏😊 बहुत बहुत आभार 🙏😊
हटाएंलहरों संग
जवाब देंहटाएंखिसका रही है
उनका अस्तित्व
बस एक जिद्द है
जिसके बल पर
कितने सुन्दर भावो को बिम्बो के माध्यम से सहेजा है। सुन्दर प्रस्तुति।
महाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाओं सहित हार्दिक आभार अनुज संजय जी ।
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत भावों की अविरल अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार जिज्ञासा जी सुन्दर सराहना भरी प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंबहुत अच्छी कविता ।हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सर!
हटाएंजो अज्ञात है वो तो उफुक के पास भी ज्ञात नहीं होने वाला ... ये एक मृग तृष्णा है जो बस आकर्षित करती है ...
जवाब देंहटाएंआपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ । हार्दिक आभार नासवा जी।
हटाएंबहुत ही खूबसूरत, आप तो लिखती ही कमाल का है, मन को भा गई मीना जी,पंथी हूँ मैं इस पथ का....
जवाब देंहटाएंढेरों बधाई हो, शुभ प्रभात
सुप्रभात ज्योति जी, आपकी मनोबल संवर्द्धन करती उर्जावान प्रतिक्रिया के लिए स्नेहिल आभार ।
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