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शनिवार, 14 जून 2025

“त्रिवेणी”


मंजिल की खोज की धुन में

निकल पड़ा सफ़र पर ज़िद्दी मन


इतना निकला आगे कि अब खुद की तलाश में है ।



***

14 टिप्‍पणियां:

  1. आभार सहित सादर नमस्कार शिवम जी !

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  2. आभार सहित स्नेहिल नमस्कार सुधा जी !

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  3. बहुत बढ़िया! कई बार ऐसा होता है न कि मंज़िल की तलाश में इतना आगे बढ़ जाते हैं कि रास्ते में खुद को ही पीछे छोड़ देते हैं। खुद की पहचान धुंधली हो जाती है, लेकिन रास्ते में जो हम बदलते जाते हैं, जो खुद को कहीं पीछे छोड़ आते हैं, वही तो असली कहानी है। अब समझ आता है कि मंज़िल से ज़्यादा जरूरी है खुद को साथ लेकर चलना। ये लाइनें सच में झकझोर देती है, जैसे कोई आईना दिखा गया हो।

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  4. स्वागत एवं सादर आभार आपका 🙏

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  5. सच में ... उम्दा ! काश हम अपनी आपाधापी में यों न उलझते कि आईना में अपना अक्स देखकर भी पहचान न पाते ।

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  6. सुन्दर प्रतिक्रिया से सृजन का मान बढ़ा ।हृदयतल से हार्दिक आभार एवं सादर नमस्कार प्रिया जी !

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  7. आभार सहित सादर नमस्कार सर !

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"