स्वयं की खोज का सफ़र
अकेले ही
तय करता है इन्सान
अपने अंतस् में उतर कर
पहचान पाते हैं हम
अनुभूत जीवन का सच
बाहर-भीतर,पास-दूर
भ्रम है दृष्टि का
कई बार बहुत कुछ
समझने के बाद भी
बहुत कुछ
छूट जाता है समझ के लिए
चिराग़ तले अँधेरा है
यह बात भला..,
चिराग़ को भी कहाँ पता होती है
समय का स्पर्श
साँचें में ढालता है सबको
परिवर्तन ..
हलचल पैदा करने के साथ
कुछ नया भी रचता है
***
हलचल पैदा करने के साथ
जवाब देंहटाएंकुछ नया भी रचता है
करता तो है न हलचल
शानदार
आपकी उपस्थिति ने सृजन को मान दिया , हार्दिक आभार सहित धन्यवाद । सादर नमस्कार आ. यशोदा जी !
हटाएंबहुत सुंदर शब्दों में आपने अंतर की यात्रा का चित्रण किया है, ऊर्जा जब एक धारा में बहने लगती है तब रास्ते रोशन होते जाते हैं
जवाब देंहटाएंआपके सुन्दर और सारगर्भित विचारों से सृजन को मान मिला ।हार्दिक आभार सहित धन्यवाद अनीता जी ! सादर नमस्कार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार सहित धन्यवाद प्रिया जी ! सादर नमस्कार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और अभिव्यक्ति दी।
जवाब देंहटाएं'परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है'
सोदाहरण
जानता,समझता तो है मन
पर जाने क्यों
आत्मसात कर सत्य
'पहले जैसा' के जाल से
मुक्त क्यों न हो पाता है?
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १५ जुलाई २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
यही तो माया है..,सब कुछ समझते बूझते “पहले जैसा” का मोह कहाँ हटता है मन से ? सुन्दर सारगर्भित पंक्तियों ने सृजन को मान दिया । हार्दिक आभार सहित धन्यवाद श्वेता जी ! स्नेहिल नमस्कार ! पाँच लिंकों का आनन्द मंच पर रचना साझा करने के लिए भी आभार सहित धन्यवाद ।
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रतिक्रिया से सृजन को मान मिला, बहुत-बहुत आभार सहित धन्यवाद एवं सादर नमस्कार सर !
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार सहित धन्यवाद हरीश जी ! सादर नमस्कार !
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रतिक्रिया से सृजन को मान मिला, बहुत-बहुत आभार सहित धन्यवाद एवं सादर नमस्कार सर !
हटाएंकई बार बहुत कुछ
जवाब देंहटाएंसमझने के बाद भी
बहुत कुछ
छूट जाता है समझ के लिए
बहुत सटीक
गहन अनुभूति से उपजी बहुत ही सारगर्भित रचना ।
आपकी उपस्थिति सदैव मेरी लेखनी को ऊर्जा प्रदान करती है सुधा जी ! बहुत-बहुत आभार सहित धन्यवाद एवं स्नेहिल नमस्कार!
जवाब देंहटाएंअपने अंतस् में उतर कर
जवाब देंहटाएंपहचान पाते हैं हम .........
भ्रम है दृष्टि का...............
समय का स्पर्श
साँचें में ढालता है सबको
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सुन्दर सृजन
सुन्दर प्रतिक्रिया से सृजन को मान मिला, बहुत-बहुत आभार सहित धन्यवाद एवं सादर नमस्कार अनुज !
हटाएंसच है की खुद को तलाश अकरने अंतस तक जाना होता है ...
जवाब देंहटाएंयह तलाश अकेले ही करनी होती है ...
सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन को मान मिला, बहुत-बहुत आभार सहित धन्यवाद एवं सादर नमस्कार नासवा जी !
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