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बुधवार, 14 मई 2025

“स्मृति-मंजूषा”

 

आज की पोस्ट मेरे लिए कई मायनों में विशेष है औपचारिकताओं से हट कर अपनी बात रखने के लिए, अपनी कल्पना के यथार्थ रूप  “स्मृति-मंजूषा” से आप सभी विद्वजनों का परिचय करवाने के लिए ।

        लिखने -पढ़ने का रूझान मुझ में  बचपन से ही प्रगाढ़ रहा।शब्दों की दुनिया जीवन में सच्ची साथी बन सदा ही परछाई बन कर मेरे साथ चली जिन्हें मैंने कभी साँचे में ढाल कर साकार करने का प्रयास किया तो कभी अवचेतन मन के साथ अपना अविभाज्य बना लिया ॥

        स्कूल में शिक्षण के दौरान “स्कूल-पत्रिका” के संपादक मण्डल में काम करते हुए  कभी सोचा नहीं था कि मैं कभी अपनी पुस्तक के प्रकाशन के बारे में सोचूँगी लेकिन लेखन जगत से जुड़ने के बाद मैंने ऐसा सोचा भी और किया भी । मेरे आरम्भिक लेखन के संकलन को मैंने “निहारिका” के रूप मे संजोया जिसके हाथ में आने के बाद लगा कि गद्य और पद्य साथ न होकर अलग-अलग होना  ज़रूरी  था ।स्कूल पत्रिका की बात और थी  और अपने एकल संग्रह  की बात  और .., ,और इसके बाद एकल संग्रह के प्रकाशन के विचार को लगभग छोड़ सा दिया । 

                   मगर कहते हैं ना कि " साँझ के सूरज को देख पाखी भी अपने आप को समेट नीड़ की तरफ लौटने लगते हैं।” वैसे ही मेरे  मन में भी ख्याल आया कि अपने लिखे को समेट कर पुस्तक के रूप में साकार करने का समय आ गया है ।अपने पढ़ने की किताबों की आलमारी में अपने लिखे का भी स्थान तो बनता ही है,   इसी सोच के साथ अपने ब्लॉग “मंथन” की पिटारी से रचनाओं  के मोती चुन कर  अपनी डिजिटल  डायरी में संकलित कर उसको  13 जुलाई 2019 को पोस्ट   अपनी एक कविता के शीर्षक पर नाम दिया “स्मृति-मंजूषा”!!  अप्रकाशित संकलन के बाद भी काफी काम थे जिससे  प्रूफ़ रीडिंग और प्रकाशन से संबंधित काम जिसको तय करना समय ले रहा था । 

                    तभी एक दिन अपने साझा काव्य संकलन “काव्य-रश्मियाँ” को पढ़ते हुए आदरणीय भाई श्री रवीन्द्र सिंह जी यादव के साथ पुस्तक प्रकाशित होने से पूर्व की चर्चाएँ याद हो आईं ।  उसी समय बने ग्रुप से उनका नम्बर लिया और पुस्तक प्रकाशन के सन्दर्भ में उनसे बात की ।        

          इस पुस्तक को भाषिक सौंदर्य और प्रस्तुति की दृष्टि से सँवारने में आदरणीय भाई श्री रवीन्द्र सिंह जी यादव के योगदान के प्रति मैं कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ उनकी गहन साहित्यिक दृष्टि, सूक्ष्म प्रूफ रीडिंग और सटीक संपादन के साथ लिखी  भूमिका ने इस पुस्तक को एक परिष्कृत रूप प्रदान किया है ।

     अपनी व्यस्त दिनचर्या से पुस्तक प्रकाशन में अपना अमूल्य समय, सहयोग और निर्देशन देने हेतु मैं हृदय से उनका असीम आभार व्यक्त करती हूँ । 


                                          ***

16 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 15 मई 2025 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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    1. पाँच लिंकों का आनन्द में स्मृति-मंजूषा को सम्मिलित करने हेतु सादर आभार सहित सादर नमस्कार आदरणीय भाई श्री रवीन्द्र सिंह यादव जी!

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  2. 'स्मृति मंजूषा' के रूप में आपके काव्य संकलन के प्रकाशन पर बहुत बहुत बधाई मीना जी !

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  3. हार्दिक आभार सहित सादर नमस्कार अनीता जी !

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  4. काव्य संकलन 'स्मृति मंजूषा' के प्रकाशन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मीना जी !

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    1. हार्दिक आभार सहित सादर नमस्कार सुधा जी !

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  5. बहुत बहुत बधाई ... अपने को समेंटने जैसा है किताब का प्रकाशन भी ...

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    1. हार्दिक आभार सहित सादर नमस्कार नासवा जी !

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  6. हार्दिक आभार सहित सादर नमस्कार सर !

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  7. बहुत सुंदर ❤️ हार्दिक शुभकामनाएं 🌻

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  8. हार्दिक आभार सहित सादर नमस्कार शिवम जी !

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  9. बहुत-बहुत-बहुत सारी बधाईयाँ दी।
    'स्मृति-मंजूषा' पुस्तक मैं खरीदना चाहती हूँ मुझे कहाँ आर्डर करना होगा दी? कृपया अपनी पाठिका का मार्गदर्शन करें न दी।
    दी मेरी अशेष शुभकामनाओं के साथ
    सस्नेह।

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    1. दिल से असीम स्नेह के साथ बहुत बहुत बहुत सारा धन्यवाद प्रिय श्वेता!! कृपया अपना address भेजें छोटी बहन को उसकी दी की तरफ से भेंट होगी स्मृति-मंजूषा । सस्नेह!!

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  10. 'स्मृति मंजूषा' काव्य संकलन के प्रकाशन की हार्दिक बधाई दीदी जी

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    1. हार्दिक आभार सहित सादर नमस्कार अनुज!

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"