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शनिवार, 9 अगस्त 2025

“त्रिवेणी”

औद्योगीकरण, शहरीकरण विकास के मानक हैं.., 

जंगल भी हरित नहीं ईंट -पत्थरों के बनते जा रहे है 


यह सब देख कुदरत भी मौन न रह कर मुखरित होना सीख गई ।


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काँच से पानी में भीगी संकरीली-सर्पीली ,कच्ची पक्की सड़क

और बर्फ़ की सफेद पोशाक में लिपटे पर्वतों के साथ दरख़्त 


खूबसूरती का भयावह रुख़ यह भी- “बस घाटी में जा गिरी ।”


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                                  पत्तियाँ चिनार की (अंतस् की चेतना) से


        

6 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ... कमाल की त्रिवेनियाँ हैं ...

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    1. सादर नमस्कार सहित बहुत बहुत आभार नासवा जी !

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  2. उत्तर
    1. सादर नमस्कार सहित बहुत बहुत आभार अनीता जी !

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  3. अपने मोह में अंधे अब हम जंगल को भी ईट - पत्थरों से सजा रहे है , हैरान की बात तो यह है कि इसके दुष्परिणामों को जानकर भी हम अनजान बने हुए है ।

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    1. सत्य कथन प्रिया जी ! काश समय रहते मानव जागरूक हो जाए ।आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार एवं सादर नमस्कार!

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"