औद्योगीकरण, शहरीकरण विकास के मानक हैं..,
जंगल भी हरित नहीं ईंट -पत्थरों के बनते जा रहे है
यह सब देख कुदरत भी मौन न रह कर मुखरित होना सीख गई ।
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काँच से पानी में भीगी संकरीली-सर्पीली ,कच्ची पक्की सड़क
और बर्फ़ की सफेद पोशाक में लिपटे पर्वतों के साथ दरख़्त
खूबसूरती का भयावह रुख़ यह भी- “बस घाटी में जा गिरी ।”
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पत्तियाँ चिनार की (अंतस् की चेतना) से
वाह ... कमाल की त्रिवेनियाँ हैं ...
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार सहित बहुत बहुत आभार नासवा जी !
हटाएंसुंदर व सार्थक लेखन
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार सहित बहुत बहुत आभार अनीता जी !
हटाएंअपने मोह में अंधे अब हम जंगल को भी ईट - पत्थरों से सजा रहे है , हैरान की बात तो यह है कि इसके दुष्परिणामों को जानकर भी हम अनजान बने हुए है ।
जवाब देंहटाएंसत्य कथन प्रिया जी ! काश समय रहते मानव जागरूक हो जाए ।आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार एवं सादर नमस्कार!
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