Copyright

Copyright © 2025 "मंथन"(https://www.shubhrvastravita.com) .All rights reserved.

रविवार, 12 अक्टूबर 2025

“गर्भनाल”


दिन की गठरी से चुरा कर 

थोड़ा सा समय..,

अपने लिए रखने की आदत 

एक गर्भनाल से

 बाँध कर रखती रही है 

 हमें..,

जब से तुम्हारे समय की गठरी की

 गाँठ खुली है 

हम एक-दूसरे के लिए अजनबी

 से हो गए हैं

 पलट कर देखने पर हमारा 

जुड़ाव …,

अब तो बीते जमाने की

बात भर लगने लगा है 



***



8 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. विचाराभिव्यक्ति हेतु सादर धन्यवाद प्रिया जी !

      हटाएं
  2. बदलते हुए समय की दास्तान

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. विचाराभिव्यक्ति हेतु सादर धन्यवाद अनीता जी !

      हटाएं
  3. मन बींध गये शब्द... गहन भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी।
    सादर।
    ------
    नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १४ अक्टूबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बहुत आभार सहित धन्यवाद श्वेता पांच लिंकों का आनन्द में सम्मिलित करने हेतु ! आपकी हौसला अफ़ज़ाई मेरे लिए अनमोल है ,सस्नेह ..,

    जवाब देंहटाएं
  5. सुन्दर सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद सर !

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"