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गुरुवार, 6 नवंबर 2025

“समय और जीवन”

समय निर्बाध 

तय करता रहा अपनी  यात्रा 

और..,

जीवन आकंठ डूबा रहा अपनी आपाधापी में

जी लेंगे अपनी जिन्दगी भी

 फुर्सत मिलने पर…,

जैसे जीवन साल भर की

कतर-ब्योंत का बजट हो

आम आदमी की सोच यही तो रहती है 

लेकिन…

समय की गति कहाँ रूकती है सोचों के मुताबिक़ 

वक्त मिलने तक ..,

वक्त के दरिया में बह जाता है

 न जाने कितना ही पानी

सांसारिकता कब समझ पाती है 

सृष्टि के नियम

 सिक्के के पहलुओं की तरह बँधे हैं 

समय और जीवन

समय पर न साधने पर फिसल जाते हैं 

रेत के कणों जैसे बन्द मुट्ठी से ।


***

 

12 टिप्‍पणियां:

  1. समय को कौन बांध सका है?और जीवन तो समय के पार जाकर मिलता है, ऐसे में मानव जीवन भर एक अच्छे समय की उम्मीद में समय गुज़ारता जाता है

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    1. स्वागत सहित हार्दिक धन्यवाद अनीता जी !

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शनिवार 08 नवंबर , 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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    1. स्वागत सहित सादर धन्यवाद आदरणीय दिग्विजय अग्रवाल जी !

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  3. जीवन जीने के लिए हर लम्हा सही समय , पर समय की कद्र न करना ही दुख का कारण बन जाता है ।

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    1. स्वागत सहित हार्दिक धन्यवाद प्रिया जी !

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  4. स्वागत सहित हार्दिक धन्यवाद हरीश जी !

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  5. हम हमेशा सोचते रहते हैं कि ज़िंदगी को “बाद में” जी लेंगे, पहले ये काम निपटा लूं, फिर फुर्सत में सब कर लूंगा। लेकिन फुर्सत कभी आती ही नहीं। समय अपनी रफ्तार में भागता रहता है और हम बस पीछे-पीछे हांफते रहते हैं।

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  6. सारगर्भित समीक्षा के लिए हार्दिक धन्यवाद आपका 🙏

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"