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सोमवार, 20 फ़रवरी 2023

ऐसा न था नाम कोई..,


आ गई फिर से दुबारा,

भूली बिसरी याद कोई।

कह सके हम जिसको अपना,

ऐसा न था नाम कोई॥


सपनों की सी बात लगती,

 वे आंगन वे गली-कूँचे।

देख कर अब लोग हम से,

नाम के संग काम पूछे॥

स्वजनों से दूर जा कर,

स्वयं की पहचान खोई।

कह सके हम जिसको अपना,

ऐसा न था नाम कोई॥


अल्हड़ हँसी से गूँज उठते,

आँगन , छज्जे और चौबारे।

मक्कड़जालों से भरे हैं,

जीर्ण शीर्ण सब हुए बेचारे॥

धुआँ- धुआँ सा हो गया मन,

आँखें लगती खोई-खोई।

कह सके हम जिसको अपना, 

ऐसा न था नाम कोई॥


***

बुधवार, 1 फ़रवरी 2023

“पुनरावृत्ति”

 

( Click by me )

कई बार बीते लम्हों की

 पुनरावृत्ति

समय की उस

 दहलीज़ पर 

ला खड़ा करती है 

इन्सान को 

जहाँ वह कल को आज के साथ जीता 

वक़्त के साथ 

तत्वचिन्तक बन जाता है 

अतीत के गर्भ में जब 

क्षोभ आँसुओं के सागर के साथ 

एकमेक हो

 बहते सोते सा उबल पड़ा था

तब धीरज ने धीरे से कहा -

“खारे सागर के उस पार मीठे पानी का दरिया बहता है”

लेकिन 

आज का सच कहता है कि-

“सबके दिलों में अपने -अपने “अचल” बसते हैं”

जो दरकते हैं

 तो तकलीफ़ों के साथ 

कोरी टीस का ही सृजन करते हैं ॥


***