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शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

"शिव स्तुति"

श्रावण मास…., भगवान शिव की आराधना का पावन महिना । शिव भक्त पूरे माह श्रद्धा से  भोले भण्डारी का पूजन-अर्चन करते हैं , पवित्र नदियों से कांवड़ लाकर जलाभिषेक करते हैं । कांवड़ियों  के “बम बम लहरी” “जै जै शिव शंकर” नाद से शिव मंदिर और कांवड़ियों के यात्रा पथ गुंजायमान हो उठते हैं । देवों के देव त्रिनेत्र धारी भगवान शिव को समर्पित एक छोटी सी स्तुति -------

करुणानिधि हो , जगपालक हो ।
विनती सुन लो , शिव शंभु प्रभो ।।

निज जान कृपा , रखना प्रभु जी ।
कर जोरि खड़े , करते विनती ।।

तुम ही जग की , रचना करते ।
भव सागर पार , लगा सकते ।।

अपराध क्षमा ,करना शिव जी ।
तुम दीनबन्धु , शशिशेखर जी ।

विषपान किया उपकार किया ।
देवों को अभय का दान दिया ।।

प्रकृति के रक्षक , पशुपतिनाथ ।
गौरी शंकर , हम तेरे दास ।।

निज सेवक जान , कृपा करना ।
आशीष सदा , हम पर रखना ।।


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रविवार, 22 जुलाई 2018

"मनाही"

हम मिलें यह इजाजत नही है
आप से तो शिकायत नहीं है

नक्श दिल से मिटाये हमारे ।
फिर हमें भी लगावट नहीं है ।।

इश्क  करना बुराई  कहां है ।
हम करें यह इनायत नही है।।

क्यों रखे  यूं अजनबी निगाहें ।
आप से  तो अदावत नहीं है ।।

तुम कहो दास्ताने  मुहब्बत ।
हम सुने तो शराफत नही  है ।।
 
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बुधवार, 18 जुलाई 2018

"सेदोका”

        (1)

अंजुरी भर
रंग छिड़क दिये
कोरे कैनवास पे
उभरा अक्स
ओस कणों से भीगा
जाना पहचाना सा

(2)

धीर गंभीर
झील की सतह सा
सहेजे विकलता
मन आंगन
कितना  उद्वेलित
सागर लहरों सा

  (3)

तुम्हारा मौन
आवरण की ओट
कहानी कहता है
एक लक्ष्य है
अर्जुन के तीर सा
चिड़िया के चक्षु सा


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बुधवार, 11 जुलाई 2018

"प्रहरी"

सरहद के रक्षक वीर ,
चैन से कब सोते हैं ।
हम जीते
अमन के साथ ,
ये सीमाओं पर होते हैं ।।

घनघोर अंधेरों में भी ,
ये दुर्गम पथ पर होते हैं ।
रखते निज देश का मान ,
चैन दुश्मन का खोते हैं ।।

बोले जय हिन्द की बोली ,
खा के सीमा पर गोली ।
देते अपना बलिदान ,
खेल अपने खून से होली ।

हे मेरे देश के वीर !
तुझ को मेरा अर्चन है ।
मेरी आंखों का नीर ,
श्रद्धा से तुझे अर्पण है ।।

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सोमवार, 9 जुलाई 2018

"नाराजगी"

समझे न जो कोई बात उसे समझायें कैसे ।
दिल में दबी बात लबों तक लायें कैसे ।।

सच और झूठ का फर्क है बहुत मुश्किल ।
जो सुने न मन की बात उसे सुनायें कैसे ।।

नाराज़गी तो ठीक , अजनबियत की कोई वजह ।
नाराज़  है जो बिना बात उसे मनायें कैसे ।।

बेपरवाही , अनदेखी ,बेकदरी जज़्बातों की ।
टूटे अगर यकीन उसे दिलायें कैसे ।।

मंजिल और राहें एक मगर सोचें जुदा जुदा ।
नादानियों के दौर में अब निभायें कैसे ।।

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बुधवार, 4 जुलाई 2018

"उम्मीद"

काली घटा घिरी अम्बर पे ।
पछुआ पवनें चली झूम के ।।
हर्षित किसान चला खेत पे ।
करता  चिन्तन अपने मन में ।।

नाचे मोर कुहके कोयलिया ।
बैलों के गले रुनझुन घंटियां ।।
घर भर में हैं छाई खुशियां ।
अब के सीजन होगा बढ़िया ।।

मानसून बढ़िया निकलेगा
मेहनत होगी खेत हँसेगा
साहूकार का कर्ज चुकेगा ।
यह साल अच्छा गुजरेगा ।।

हैं हम सब के साझे सपने
गैर नहीं यहां सब हैं अपने ।
खुशियों से ये पलछिन बीते
सावन से तो जुड़ी उम्मीदें ।।

हाथ जोड़ कर करे प्रार्थना
प्रकृति माँ से यही याचना ।
भूमि पुत्र हो हर्षित मन से
अब के सावन झूम के बरसे ।।

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रविवार, 1 जुलाई 2018

"परामर्श"

इतने गर्वीले कैसे हो चन्द्र देव ?
कितना इतराते हो पूर्णिमा के दिन ।

क्या उस वक्त याद नहीं रहते बाकी के पल छिन ?
पूरे पखवाड़े कलाओं के घटने बढ़ने के दिन ।

सुख-दुःख , हानि-लाभ तो सबके साथ चलते हैं ।
तुम्हारी देखा देखी में सीधे इन्सान भी इतरते हैं ।।

तुम तो देवता ठहरे , सब कुछ झेल लेते हो ।
हम इन्सानों को , दर्प की गर्त में ढकेल देते हो ।।

चंचलता छोड़ो देव तुम मान करो कुछ देवत्व का ।
फिर सीखेंगे हम भी निज अहं त्याग करने का ।।

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