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शनिवार, 12 जुलाई 2025

“परिवर्तन”

स्वयं की खोज का सफ़र 

अकेले ही 

तय करता है इन्सान 

 

अपने अंतस् में उतर कर

पहचान पाते हैं हम 

अनुभूत जीवन का सच


बाहर-भीतर,पास-दूर  

भ्रम है दृष्टि का


कई बार बहुत कुछ 

समझने के बाद भी 

बहुत कुछ 

छूट जाता है समझ के लिए


चिराग़ तले अँधेरा है 

यह बात भला..,

चिराग़ को भी कहाँ पता होती है 


समय का स्पर्श 

साँचें में ढालता है सबको

परिवर्तन ..

हलचल पैदा करने के साथ 

कुछ नया भी रचता है 


***

 

गुरुवार, 3 जुलाई 2025

पत्तियाँ चिनार की (अंतस् की चेतना)


बिखरी कड़ियों को समेटने की श्रृंखला में पत्तियाँ चिनार की (अंतस् की चेतना) मेरा तीसरा  पद्य-संग्रह ,जिसमें सौ-सौ की संख्या में क्षणिकाएँ,त्रिवेणी एवं हाइकु संग्रहित हैं प्रकाशित हुआ है । ब्लॉगिंग संसार के  विज्ञजनों के साथ मेरी बौद्धिक यात्रा का पथ सुखद और सार्थक रहा, इसके लिए  हृदय की असीम गहराइयों के साथ ब्लॉगिंग संसार के सभी साथियों का  आभार एवं धन्यवाद व्यक्त करती हूँ ।प्रकाशित पुस्तक पत्तियाँ चिनार की (अंतस् की चेतना) के कुछ 

अंश -

“क्षणिका”


तिहाई का शिखर छू कर बनना तो था

शतकवीर ..,

मगर  वक़्त का भरोसा कहाँ था ?

कठिन रहा यह सफ़र …,

“निन्यानवें के फेर में आकर चूक जाने की”

बातें बहुत सुनी थीं ।

🍁


“त्रिवेणी”


अच्छा लगता है मुझे सागर तट पर देर तक बैठना

लहरों के शोर और सागर की गर्जन से तादात्म्य रखना.., 


 बाहर-भीतर की साम्यता मेरे भीतर तटस्थता भरती है ।

🍁


“हाइकु”


गोधूलि बेला -

घोंसले में लौटता

पक्षी का जोड़ा ।

🍁


“मीना भारद्वाज”