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गुरुवार, 23 फ़रवरी 2017

"क्षणिकाएँ"

( 1 )
कागज़ और कलम का रिश्ता
जब भी जुड़ता है , जीवन को एक अर्थ देता है ।
कभी यह बड़ा नामचीन  तो कभी
बड़ी गुमनामी झेलता है ।
( 2 )
आज कल हर तरफ
मछली बाजार  सा सजा है ।
कान फोड़ू शोर कायम है
और काम की बात ही गायब है ।
   
( 3 )
मन ने आज कुछ नया करने की ठानी है ।
अर्द्ध चन्द्र को धरती पे ला  और उसकी नौका बना ।
उफनते समुन्दर में कश्ती चलानी है ।

XXXXX

सोमवार, 20 फ़रवरी 2017

"मुश्किल"

तृषित कारवां ,पंकिल सरुवर
प्यास बुझाना आसान नही
मुश्किल सा है ।

तपती धूप में , गर्म रेत पर
नंगे पैरों का सफर आसान नही
मुश्किल सा है ।

बँधी आँखें , दूरस्थ मंजिल
लक्ष्य भेदना आसान नही
मुश्किल सा है ।

निर्गुण भक्ति, गूंगे का गुड़
स्वाद बताना आसान नही
मुश्किल सा है ।

XXXXX

       

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2017

“बचपन”

पहली बारिश की छम-छम
गीली माटी की खुश्बू
इस सौंधी सी सैकत से
कुछ सृजन करें मैं और तू ।

नन्हे हाथों से थपक-थपक
कभी घर कभी मंदिर बनता था
छोटे-छोटे तिनकों से
कभी तोरणद्वार सजता था ।

गुड्डे-गुड़िया की शादी में
कितना पकवान बनता था
टूटी नीम की टहनी  से
उस घर का  आंगन सजता था ।

बारिश का पानी गढ्डों में
उस गाँव का ताल बनता था
कागज की  छोटी सी  कश्ती
बजरे संग चप्पू चलता था ।

ये सब बचपन की बातें हैं
छुटपन में ही खो जानी है
कद बढ़ता है हम बढ़ते हैं
ये बातें फिर बेमानी है ।

XXXXX

शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

"कशमकश"

छन्द अलंकारों से सजी कविता
मुझे सोलह श्रृंगार युक्त दुल्हन
तो कभी बोन्सई की
वाटिका समान लगती है ।

कोमलकान्त पदावली और
मात्राओं-वर्णों की गणना
उपमेय-उपमान ,
यति-गति के नियम
भाषा सौष्ठव सहित
छन्दों की संकल्पना ।

कोमल इतनी की छूने से
मुरझा जाने का भरम पलता है
नर्म नव कलिका सी
टूट जाने का डर लगता है ।

मुझे कविता कानन में
बहती बयार तो कभी
निर्मल निर्झर समान लगती है
नियम में बाँधू तो जटिल आंकड़ों की
संरचना जान पड़ती  है ।

XXXXX

शनिवार, 4 फ़रवरी 2017

“हवाएँ”

हवाएँ नीरव सी फिज़ा में
निस्तब्ध पेड़ों की पत्तियों को
जब छू कर  गुजरती हैं तो
कानों में कुछ कहती हैं ।

हवाएँ जब बाँस के झुरमुटों से
गुजरती हैं तो बाँसुरी की
मादक  तान  बनकर
सांसों में महक भरती है ।

समुद्र  की गिरती -उठती
लहरों से करती हैं अठखेलियाँ
कभी जलतरंग सी बजती
कभी नाहक शोर करती हैं ।

जीर्ण भग्नावशेषों से गुजरती ये
तन में सिहरन भरती
ना जाने कितनी दास्तानों का जिक्र
अपनी उपस्थिति संग करती हैं ।

×××××

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2017

"तस्वीरें"

तस्वीरें बोलती  हैं  कभी फूलों और पत्तियों में , कभी इन्सानी चेहरों में  तो कभी ऐतिहासिक स्मारकों में और जीर्ण भग्नावशेषों में । मुझे प्रकृति का हर रुप तस्वीरों के माध्यम से बोलता दिखाई देता है । कुछ ऐसी तस्वीरें जो मेरे मन के बहुत करीब हैं …..,सोचा अपने विचारों के साथ -साथ इनको भी आप सब से साझा कर लूं ।