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सोमवार, 24 जनवरी 2022

"पहाड़"


मुझे अच्छे लगते हैं

 पहाड़….,

इनके अनन्य सखा

चीड़ -चिनार और देवदार

अठखेलियां करते हुए

देते हैं मौन आमन्त्रण

अपने पास आने का

  

भोर के धुंधलके में

पहाड़ों से झांकती

 ऊषा का सौन्दर्य

शीशी में बंद इत्र की महक सा

 मुझे बाँधता है अपने 

सम्मोहक आकर्षण में


सुदूर घाटी में जब बजाता है

कोई चरवाहा बांसुरी 

तो झूमने लगती है 

पूरी वादी तब ये...

अचल और स्थितप्रज्ञ 

साधक से खड़े रहते हैं

अपनी ही धुन में मग्न

निर्विकार और निर्लिप्त 


उतुंग शिखरों पर

पहने धवल किरीट

मुझे खींचते हैं 

अपनी ओर…,

 दबाए सीने में

असीमित हलचल

सदियों से सभ्यताओं के

संरक्षक और संवर्द्धक

सरहदों के रक्षक हैं

पहाड़ … ।।


***

[चित्र:- गूगल से साभार]

शनिवार, 15 जनवरी 2022

"सांझ"


बच्चन जी की कविता "साथी सांझ लगी होने" पढ़ते हुए स्वत: ही मन में उठे भावों को रुप देने का प्रयास एक कविता के रुप में ...


गोताखोर बनी शफरियां

खेल रहीं दरिया जल में

मन्थर लहरें डोल रही हैं ढलते सूरज के संग में

अब रात लगी होने


नेह के तिनके जोड़ गूंथ कर

नीड़ बसाया खग वृन्दों ने

एक - एक कर उड़े सभी वो विचरण करने नभ में

रिक्त लगे नीड़ होने


पंचभूत की बनी यह काया

जीवन आनी जानी माया

एक सूरज डूबे दरिया में और एक मेरे मन में

पाखी लौट चलें सोने !!


***

[ चित्र :-गूगल से साभार ]










शनिवार, 1 जनवरी 2022

"बादल"

आज किस यक्ष का

संदेशा ले आए बादल !

शीत ऋतु की

खिली-खिली भोर में

बड़े इधर-उधर मंडरा रहे हो 


रात भर जाग कर

लैपटॉप पर काम करती

कोई विरहिणी

अभी अभी सोयी होगी 

बंद खिड़की पर

तुम्हारी दस्तक…,

मुझे नहीं लगता

उसके कानों तक गई होगी 


वैसे तुम चाहो तो

अपनी उपस्थिति के चिन्ह 

उसकी खिड़की पर 

छोड़ सकते हो 

बुद्धिमती है वो

सब कुछ जान लेगी

सूर्य के आगमन से पूर्व

जागी तो 

तुषार कणों में निहित

 गूढ़ सन्दर्भ पहचान लेगी


अच्छा लगता है 

तुम्हें देख कर तुम अब भी

परोपकार करते हो

कभी दूत बन कर

कभी रिमझिम बरस कर

धरा वासियों की झोली

असीम सुख से भरते हो


***

🙏💐🙏  नववर्ष मंगलमय हो... हार्दिक शुभकामनाएँ🙏💐🙏