Followers

Copyright

Copyright © 2023 "मंथन"(https://www.shubhrvastravita.com) .All rights reserved.

रविवार, 28 फ़रवरी 2021

"अब"


जिद्दी सा हो गया मन

अब कहीं लगता ही नहीं

घर तो मेरा अपना है 

मगर अपना लगता नहीं


सारी सोचें बेमानी सी है

लफ्ज़ों में बयां होती कहाँ हैं

की बहुत कहने की कोशिश

ढंग कोई जँचता नहीं


दिल की जमीन पर

घर की नींव धरी है

नटखट सा कोई गोपाल

अब वहाँ हँसता नहीं


स्मृतियों की वीथियाँ

 भी हो रही हैं धूमिल

साथ का कोई संगी-साथी

अब वहाँ रहता नहीं


खाली-खाली सी बस्ती है

खाली चौक- चौपाल

परदेसी से इस आंगन में

अब कोई बसता नहीं 


***

बुधवार, 24 फ़रवरी 2021

"गुलमोहर"

                       


नवनिर्माण की नींव

और ऊसर सी जमीन पर

पूरी आब से इतरा रहे हो

किसके प्रेम में हो गुलमोहर

बड़े खिलखिला रहे हो


बिछड़े संगी साथी

मन में खलिश तो रही होगी

टूटी भावनाओं की किर्चें

तुम्हें चुभी जरूर होंगी

बासंती बयार के जादू में

बहे जा रहे हो

किसके प्रेम में हो गुलमोहर

बड़े मुस्कुरा रहे हो


आज और कल की

दहलीज़ पर

मन कैसा सा हो गया है

चिंतन-मनन का पलड़ा

पेंडलुम सा बन गया है

अच्छा है तुम…,तुम हो

अपनी ही किये जा रहे हो

किसके प्रेम में हो गुलमोहर

बड़े इठला रहे हो 


***




गुरुवार, 18 फ़रवरी 2021

"पल"

                           


कभी अनजाने 

कभी पहचानने 

सांझ- सकारे

दृग बाट निहारे

मेरे मोहक अभिलाषित से पल!


आशा की बंदनवारें

मुक्त हृदय से

स्वागत मे तेरे

बाँह पसारे

मेरे मौन और मुखरित से पल!


कभी नीलकंठ बन 

मिलूं शुभ्र गगन में

 कभी राजहंस बन 

नीलम सी झील में

मेरे झंकृत मन के शोभित से पल!


तुम अपरिभाषित 

और  असीमित

तेरी प्रत्याशा में

दिन-दिन गिनती मैं

मेरे सीमित और चिरप्रतीक्षित से पल!

 

★★★



















                           

शनिवार, 13 फ़रवरी 2021

"एक कहानी"



बहुत पुरानी एक कहानी ।

ज्यों बहते दरिया का पानी ।।


संदली सी हुईं फिज़ाएं ।

उम्र की ऐसी रवानी ।।


अक्सर उनका जिक्र सुना ।

हर जगह पर मुँह जुबानी ।।


दृग करते महफिल में बातें ।

नादानी की एक निशानी  ।।


वक्त ने फिर बदली करवट।

 नज़रें भी बन गई सयानी ।।


***

बुधवार, 10 फ़रवरी 2021

"क्षणिकाएँ"

                       

उसने कहा था---

मैं आत्मा हूँ उसकी

मेरे से ही उसकी

 सम्पूर्णता है

मैं जीये जा रही हूँ

अपनी अपूर्णता के साथ

ताकि…

मैं उसकी सम्पूर्णता बनी रहूँ

---

 बाल्टी भर

 धूप ढकी रखी है

एक कोने में…

अंधेरा घिर आए तो

छिड़क लेना…

रोशनी में...

मन का आंगन हँस देगा

---

देख कर भी किसी की

अनदेखी करना

भले ही …

किसी की नजरों में

सभ्यता का दायरा होगा

छलना को तो यह...

अपना कौशल ही लगता है


***


बुधवार, 3 फ़रवरी 2021

"त्रिवेणी"

                 



चलने का फैसला ले लिया आनन-फानन  ..

एक बार मुड़ कर भी देख लिया होता ।


 कैसे दरकता है नेह का पुल ।।


***


सूरत और सीरत में एक समान ..

और विमर्श में अहम् भाव भी  ।


अर्से के बाद चुम्बक के समान छोर मिले है।।


***


नीरवता में धड़कनों की धमक ..

खाली बर्तन सी बजती  है ।


तुम्हारी अनुपस्थिति बहुत खलती है ।


***


बाज़ारों में आगे बढ़ने की होड़ में.. 

गुणवत्ता की जगह प्रतियोगिता आ गई।


आए भी क्यों ना.., वैश्वीकरण का जमाना है ।