चलने का फैसला ले लिया आनन-फानन ..
एक बार मुड़ कर भी देख लिया होता ।
कैसे दरकता है नेह का पुल ।।
***
सूरत और सीरत में एक समान ..
और विमर्श में अहम् भाव भी ।
अर्से के बाद चुम्बक के समान छोर मिले है।।
***
नीरवता में धड़कनों की धमक ..
खाली बर्तन सी बजती है ।
तुम्हारी अनुपस्थिति बहुत खलती है ।
***
बाज़ारों में आगे बढ़ने की होड़ में..
गुणवत्ता की जगह प्रतियोगिता आ गई।
आए भी क्यों ना.., वैश्वीकरण का जमाना है ।
अभिव्यक्ति का ये रूप बहुत सुन्दर है। बढ़िया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार वीरेन्द्र जी!
हटाएंवाह, बहुत बढ़िया लिखा है आपने।
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार शिवम् जी!
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2028...कलेंडर पत्र-पत्रिकाओं में सिमट गया बसंत...) पर गुरुवार 04 फ़रवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनन्द" में सृजन को साझा करने के लिए सादर आभार रवींद्र सिंह जी!
हटाएंबहुत ही सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार मनोज जी!
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सर!
हटाएंबहुत सुंदर त्रिवेणियां मीना जी।
जवाब देंहटाएंत्रिवेणी के प्रतिमान पर खरी उतरती।
भाव सार्थक सुंदर।
सस्नेह।
दिल से आभार कुसुम जी! उत्साहवर्धन करती
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा। स्नेह बनाए रखें , हार्दिक आभार।
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (०४-०२-२०२१) को 'जन्मदिन पर' (चर्चा अंक-३९६७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
चर्चा मंच पर सृजन को सम्मिलित करने हेतु बहुत बहुत आभार अनीता जी!
हटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रस्तुति।
सादर।
सराहना भरे वचनों के लिए हार्दिक आभार सधु चन्द्र जी!
हटाएंसभे नु सुनर सुनर
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती सराहना हेतु सादर आभार प्रिय दी 🙏🙏
हटाएंबाज़ारों में आगे बढ़ने की होड़ में..
जवाब देंहटाएंगुणवत्ता की जगह प्रतियोगिता आ गई।
सटीक, सुंदर रचना 🌹🙏🌹
आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से लेखनी को सार्थकता मिली...हार्दिक आभार शरद जी🙏🌹🙏
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन हेतु सादर आभार सर!
हटाएंनीरवता में धड़कनों की धमक ..
जवाब देंहटाएंखाली बर्तन सी बजती है ।
तुम्हारी अनुपस्थिति बहुत खलती है ।
क्या बात है !!बहुत खूब मीना जी ,दिल को छूती पंक्तियाँ ,सादर नमन
आपकी हृदयस्पर्शी सराहना से लेखन सार्थक हुआ कामिनी जी !असीम आभार ।
हटाएंजी हाँ मीना जी, वैश्वीकरण का ज़माना है जिसमें सच्चाई और जज़्बात दोनों को ही ढूंढ़ना बड़ा मुश्किल है ।
जवाब देंहटाएंलेखन को सार्थकता देती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार जितेन्द्र जी!
हटाएंसोचने को विवश करती उपयोगी रचना।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती सराहना हेतु सादर आभार सर!
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन हेतु सादर आभार सर!
हटाएंचलने का फैसला ले लिया आनन-फानन ..
जवाब देंहटाएंएक बार मुड़ कर भी देख लिया होता ।
कैसे दरकता है नेह का पुल ।।
वाह!!!
जाने वाले को किसी दरकन की परवाह कहाँ
बहुत ही लाजवाब त्रिवेणी।
आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से लेखनी को सार्थकता मिली...हार्दिक आभार सुधा जी!
हटाएंवाह....बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार उर्मिला सिंह जी!
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन
बधाई
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सर!
जवाब देंहटाएंपावन त्रिवेणी में खूब डुबकी लगवाया है । अति सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया पा कर हर्षित हूँ । बहुत बहुत आभार अमृता जी!
हटाएंकमाल की रचना, बहुत ही सुंदर , बधाई हो मीना जी नमन
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ज्योति जी!
हटाएंसस्नेहाभिवादन🙏
जवाब देंहटाएंसूरत और सीरत में एक समान ..
और विमर्श में अहम् भाव भी ।
अर्से के बाद चुम्बक के समान छोर मिले है।।
वाह ! कमाल के विचार, कमाल की अभिव्यक्ति।
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु स्नेहिल आभार मीना जी!
जवाब देंहटाएं