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सोमवार, 1 सितंबर 2025

“सीमाएँ”

 बहुत सारे किन्तु-परन्तुओं के 

सानिध्य में

नैसर्गिक विकास अवरूद्ध 

हो जाया करता है 

वैचारिक दृष्टिकोण में अनावश्यक हस्तक्षेप

 चिंतन के दायरों में 

सिकुड़न भर देता है और विचार 

न चाहते हुए भी 

पेड़ की शाख से टूटे पत्तों के समान 

 अपना अस्तित्व खो बैठते हैं 


***


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- "मीना भारद्वाज"