उलझी हुई “जिग्सॉ पजल” लगती है जिन्दगी
जब इन्सान अपनी समझदारी के फेर में
रिश्तों को सहूलियत अनुसार खर्च करता है ।
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सुनामी की लहरों सरीखी है लिप्सा की भूख
कल ,आज और कल का कड़वा सच
युद्धों का पेट मानवता को खा कर भरता है ।