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शनिवार, 30 अप्रैल 2022

“जंगली फूल”



यहाँ-वहाँ ,कहीं भी…,

उग आती हैं छिटपुट 

घास की गुच्छियाँ

उनकी बेतरतीब सी

 शाखों के बीच

गाढ़े रंगों से सराबोर 

मुँह निकाल झांकता है 

इक्का-दुक्का जंगली फूल

सोचती हूँ…,

रईसी के ठाठ में पलते

गुलाब और उसके संगी-साथी

उसकी जिजीविषा

और बेफ़िक्री की आदत से

ईर्ष्या भी करते ही होंगे

एक अलग सी ठसक

और…,

कहीं भी , कभी भी

सड़क - किनारे…,

झोपड़ी के पिछवाड़े 

गोचर भूमि में

किसी पहाड़ की 

चट्टानों के बीच

चार पत्तियों वाली

घास की गुच्छियों में

खिलखिलाता सा 

खिल उठता है जंगली फूल 


***





शनिवार, 23 अप्रैल 2022

“त्रिवेणी”



दूध की धार सी ..,निर्मल आसमान में..

कभी-कभी ही दिखती है आकाश गंगा ।


सुकून के पल उससे होड़ करना सीख गए हैं ॥

🍁


तुम आए और बिना द्वार पर दस्तक दिये…

खामोशी से ही अलविदा कह लौट भी गए  ।


रुकते तो जीवन राग सप्त सुरों में गा उठता ॥

🍁


गलत पते पर भेजी शुभेच्छाएं कभी-कभी…

 सही जगह भी पहुँच जाया करती है ।


सच्चे दिल की दुआ कभी असफल नहीं होती ॥

🍁

मंगलवार, 12 अप्रैल 2022

“जीवन”


संकल्पों के साथ 

शून्य से आरम्भ

 यात्रा पथ पर 

चलना है अनवरत

इस अनदेखे सफ़र का

न गंतव्य दिखता है 

और न समापन


चलते-चलते

कब उद्देश्य निरुद्देश्य से

लगने लगते हैं

और…कब…, सफ़र

 अन्तिम पड़ाव पर 

आ खड़ा होता है 

भान ही नहीं होता


मानें या ना मानें

शून्य से आरम्भ 

और..

शून्य पर ख़त्म 

असमंजस में लिपटे

यात्रा पथ पर चलना ही

जीवन की

शाश्वत परिभाषा है


***

मंगलवार, 5 अप्रैल 2022

“मेघ“

           


अम्बर में घिर आए घन

पछुआ चलती सनन सनन 


मेघों ने छेड़ा जीवन राग

पुष्पों में खिल आए पराग

हर्षित धरती का हर कण

 पछुआ चलती सनन सनन


नाचे मयूर हिय उठे हिलोर

गरज तरज घन हुए विभोर

जड़-जंगम पावस में प्रसन्न 

पछुआ चलती सनन सनन 


वर्षा से जन -जन का मन ख़ुश 

लो ! खिला गगन में इन्द्र धनुष 

अब बाल - वृन्द भी हुआ मगन

पछुआ चलती सनन सनन


***