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मंगलवार, 29 अक्तूबर 2019

"वर्ण पिरामिड"

(1)
है
द्वैत
अद्वैत
मतान्तर
निर्गुण ब्रह्म
घट घट व्याप्त
प्रसून सुवासित
(2) 
 है
सृष्टि
अनन्त
निराकार
परमतत्व
अनहद नाद
आवरण भूलोक
(3)
है
पर्व
अनूप
भाईदूज
रक्षाकवच
बहन का नेह
सर्वकामना पू्र्ति
(4)
है
विश्व
बन्धुत्व
अन्तर्भाव
मूल आधार
परराष्ट्र नीति
महनीय भारत

🌸🌸🌸




मंगलवार, 22 अक्तूबर 2019

"वर्ण पिरामिड'

ओ 
मेरे
दीपक 
हर तम 
सकल हिय
कर ज्योतिर्मय 
हो प्रफुल्लित मन
✳️ ✳️ ✳️ ✳️
माँ
तेरी
ममता
स्नेहाशीष
रक्षा कवच
मेरे जीवन का
तुझ से सम्पूर्णता
✳️ ✳️ ✳️ ✳️

शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2019

"समय "



सांझ की चौखट पर
आ बैठी दोपहरी
कब दिन गुजरा
कुछ भान  नही...
नीड़ों में लौट पखेरु
डैनों में भर
उर्जित जीवन
उपक्रम करते सोने का
वे कब सोये 
फिर कब जागे
पौ फटने तक
अनुमान नही...
गुजरा हर दिन
एक युग जैसा
कितने युग गुजरे
बस यूंहीं
अवचेतन मन को
ज्ञान नही...

★★★★★

सोमवार, 14 अक्तूबर 2019

"शरद पूर्णिमा का चाँद"

"शरद पूर्णिमा का चाँद"
चाँदी जैसी आब लिए
धवल ज्योत्सना की
ऊँगली थाम...
बादलों पर कर सवारी
नीलाम्बर आंगन में
उतरा है अपनी 
पूरी ठसक भरी
सज-धज के साथ
शरद पूर्णिमा का चाँद
रात की सियाही में
कहीं भी..धरती पर उगे
अनगिनत दिपदिपाते
अपने सरीखे दिखते
भाई-बंधुओं के बीच
ठगा सा सोचता है
रूकूं या वापस जाऊँ..

★★★★★

शनिवार, 12 अक्तूबर 2019

"त्रिवेणी"

(1)

गहरे में उतरो तो ही मिलते हैं मोती ।
उथले में तो काई-गारा ही हाथ लगता है ।

उत्कृष्टता वक्त और हुनर मांगती है ।।

(2)

खिड़कियों का अस्तित्व ताजगी से जुड़ा है ।
व्यर्थ आगमन बहिर्गमन के लिए नही ।

अनावश्यक हस्तक्षेप से मर्यादाएं टूटती हैं ।।


                                  (3)

          चलते रहना है अनवरत गंतव्य तक ।
रूकना और मुड़ कर देखना कैसा ?

नदियों का स्वभाव लौटना नहीं होता ।।

★★★★★

रविवार, 6 अक्तूबर 2019

"अलविदा"

अलविदा कहने का वक्त आ ही गया आखिर.. मेरे साथ रह तुम भी खामोशी के आदी हो गए थे । अक्सर हवा की सरसराहट तो कभी गाड़ियों के हॉर्न
कम से कम मेरे को अहसास करवा देते कि दिन की गतिविधियां चल रहीं हैं कहीं । 'वीक-एण्ड' पर मैं अपने मौन का आवरण उतार फेंकती तो तुम भी मेरी ही तरह व्यस्त और मुखर दिखते ।
चलने का समय करीब आ रहा है । सामान की पैकिंग हो रही है सब चीजें सम्हालते हुए मैं एक एक सामान  सहेज रही हूँ । महत्वपूर्ण सामान में तुम से अपने से जुड़ी सब यादें भी स्मृति-मंजूषा में करीने से सजा ली हैं । फुर्सत के पलों में जब मन करेगा यादों की गठरी खोल कर बैठ जाऊँगी.. गाड़िया लुहारों की सी आदत हो गई थी मेरी आज यहाँ तो कल वहाँ । जो आज बेगाना है वह कल अपना सा लगेगा..मुझे भी..तुम्हे
 भी ।  मेरी यायावरी समाप्त हो रही है । ईंट-पत्थरों के जंगल में ढेर सारी बहुमंजिली इमारतों के बीच 'मनी प्लांट' सा मेरा घर प्रतीक्षा कर रहा मेरी..मेरी स्मृतियों में तुम खास रहोगे… सदा सर्वदा..।।

★★★★★

गुरुवार, 3 अक्तूबर 2019

"दृष्टिकोण"

अक्सर पढ़ती हूँ तीज-त्यौहारों के संबन्धित विषयों
के बारे में..अच्छा लगता है भिन्न- भिन्न प्रान्तों के
रीति-रिवाजों के बारे में जानना । इन्द्रधनुषी सांस्कृतिक विरासत है हमारी ..संस्कृति की यही तो खूबी है कि
वह पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है । निरन्तरता में नव-पुरातन
घुल-मिल जाता है मिश्री और पानी की तरह मगर
उसका मूल नष्ट नही होता । इसी संस्कृति से हमारे
आचार विचार पोषित होते हैं । मगर मन खट्टा हो
जाता है जब इस तरह के क्रिया - कलापों की
आलोचनाएँ पढ़ती हूँ । नारी का साज-श्रृंगार
उसकी सुन्दरता के साथ साथ उसकी सम्पन्नता का
प्रतीक है । यही नहीं प्राचीनकाल का इतिहास यदि
चित्रों के माध्यम से समझने और देखने का प्रयास
करें तो पुरूष वर्ग भी महिला वर्ग के समान आभूषणों
से सजा दिखाई देता है ।
बाहरी आक्रमणकारियों के आने के बाद 'सोने की चिड़िया' हमारे देश की स्वर्णिम व्यवस्था चरमराई और
फिर रही सही कमी ब्रिटिशसरस् ने पूरी कर दी । 
आधुनिकता के नाम पर पायल , कंगन और अन्य वस्त्राभूषण को गुलामी या परतंत्रता का प्रतीक मानना ,
व्रत- पूजा पाठ को दकियानूसी विचार मानना  मुझे तो किसी भी नजरिए से तर्क संगत नजर नहीं आता । केवल विरोध करना है तो करना है यह एक अलग पहलू है ।
आज की अधिकांश महिलाएं शिक्षित और परिपक्व सोच रखती हैं यह उनके स्वविवेक पर निर्भर करता है कि
उन्हें क्या करना है ।
व्रत , उपासना , पूजा-अर्चना करना या ना करना उनकी व्यक्तिगत भावना और आध्यात्म से जुड़ाव की भावना है । रीति-रिवाजों के लिए जबरन विचार थोपे जाएँ तो यह अवश्य गलत होगा और इस तरह की बातों का विरोध भी पुरजोर होना चाहिए मगर स्वेच्छा से किये गए सांस्कृतिक और आध्यात्मिक कार्यों की आलोचना अनुचित है ।  हमारे विचार किसी दूसरे के विचारों से मेल खायें या नहीं खायें
यह अलग विषय है लेकिन हमें दूसरों के विचारों का सम्मान अवश्य करना चाहिए ।

★★★★★

मंगलवार, 1 अक्तूबर 2019

"क्षणिकाएँँ"

(1)
मानो या ना मानो 
दिल की धडकनों जैसा
बेशुमार लगाव है तुम से
जेनेटिक प्रॉब्लम की सुनते ही
उसके लिए भी तो यूं ही 
बेहिसाब प्यार छलका था
जैसे तुम्हारे लिए छलकता है
प्रतिदिन… प्रतिपल...
(2)
अजीब सी 
हलचल होती है 
दूध के उबाल सी….
जब कहीं विनम्रता को
                         निर्बलता समझ
                            लिया जाता है
दादुर के वक्ता होने पर
कोयल का मौन
कोयल की कमजोरी नहीं
उसका अपना मूड है
(3)
 रिश्तों में गाढ़ापन हो तो
संबंधों में प्रगाढ़ता होती है 
ठहराव के साथ….,
फिर रक्त का गाढ़ापन
जिन्दगी के लिए
खतरनाक और उसके
ठहराव में बाधा कैसे….,
कला और विज्ञान में
यहीं मूलभूत फर्क है
तथ्यों को सत्यता की खातिर
दोनों के अपने अपने तर्क हैं

                           ✴️✴️✴️