Copyright

Copyright © 2024 "मंथन"(https://www.shubhrvastravita.com) .All rights reserved.

गुरुवार, 13 जून 2024

“प्राकृतिक सुषमा”


बर्फ की कम्बल ओढ़े 

पर्वत श्रृंखलाओं  की

गगनचुंबी चोटियाँ ..,

 सिर उठाये 

 मौज में खड़े त्रिशंकु वृक्ष 

जिधर नज़र पसारो

 मन्त्रमुग्ध करता.., 

अद्भुत और अकल्पनीय 

प्रकृति  का सौंदर्य 

मन को समाधिस्थ करता है ।

किसी  पहाड़ की 

खोह से ..,

कल-कल ,छल-छल

मोतियों सा बिखरता

काँच सरीखा पानी 

आँखो के साथ मन

 तृप्त करता है ।

कंधों पर  अटकी  टोकरियाँ 

बोझ से लदे

फूल से मुस्कुराते आनन

सुन्दरता के प्रतिमान गढ़ते हैं ।

शहरी परिवेश में पला-पढ़ा

 गर्वोन्नत- आत्ममुग्ध मनुष्य  

 अपनी ही नज़र के मूल्यांकन में

शून्य हो जाता है

 जब..,

उर्ध्वमुखी पहाड़ों और

अधोमुखी घाटियों में 

देवदूत सरीखे बादल 

धीरे-धीरे उतरते देखता हैं ।


***









12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 15 जून 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने हेतु बहुत बहुत आभार यशोदा जी ! सादर वन्दे!

      हटाएं
  2. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार सर ! सादर वन्दे!

    जवाब देंहटाएं
  3. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार सर ! सादर वन्दे!

    जवाब देंहटाएं
  4. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार सर ! सादर वन्दे!

    जवाब देंहटाएं
  5. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार मनोज भाई ! सादर वन्दे!

    जवाब देंहटाएं
  6. धन्यवाद सहित सादर आभार ज्योति जी !

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"