स्वयं की खोज का सफ़र
अकेले ही
तय करता है इन्सान
अपने अंतस् में उतर कर
पहचान पाते हैं हम
अनुभूत जीवन का सच
बाहर-भीतर,पास-दूर
भ्रम है दृष्टि का
कई बार बहुत कुछ
समझने के बाद भी
बहुत कुछ
छूट जाता है समझ के लिए
चिराग़ तले अँधेरा है
यह बात भला..,
चिराग़ को भी कहाँ पता होती है
समय का स्पर्श
साँचें में ढालता है सबको
परिवर्तन ..
हलचल पैदा करने के साथ
कुछ नया भी रचता है
***
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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏
- "मीना भारद्वाज"