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गुरुवार, 27 सितंबर 2018

"वक्त"

वक्त मिला है आज , कुछ अपना ढूंढते हैं ।
करें खुद से खुद ही बात , अपना हाल पूछते  हैं ।।

कतरा कतरा वक्त , लम्हों  सा बिखर गया ।
फुर्सत में खाली हाथ , उसे पाने को जूझते हैं ।।

दौड़ती सी जिंदगी , यकबयक थम गई ।
थके हुए से कदम , खुद के निशां ढूंढते हैं ।।

गर्द सी जमी है ,  घर के दर और दीवारों पर  ।
मेरे ही मुझ से गैर बन , मेरा नाम पूछते हैं ।।

ज़िन्दगी की राह में , देखने को मिला अक्सर ।
दोस्त ही दुश्मन बन  , दिल का चैन लूटते हैं ।।

XXXXX

शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

“तृष्णा”

अभिव्यक्ति शून्य , भावों से रिक्त ।
तृष्णा से पंकिल , ढूंढता असीमित ।।

असीम गहराइयों में , डूबता-तिरता ।
निजत्व की खोज में ,रहता सदा विचलित ।।

दुनियावी गोरखधंधों से , होता बहुत व्यथित ।
सूझे नही राह कोई , हो गया भ्रमित ।।

मृगतृष्णा में फंसे , तृषित हिरण सा ।
मरु लहरियों के जाल से , है बड़ा चकित ।।

तृष्णा में लिपटा , खुद को छलता ।
मेरा मन अपने आप में , होता सदा विस्मित ।।

XXXXX

गुरुवार, 20 सितंबर 2018

"लघु कविताएं"

( 1 )

तुम्हारे और मेरे बीच
एक थमी हुई झील है
जिसकी हलचल
जम सी गई है ।
जमे भी क्यों नहीं…..,
मौसम की मार से
धूप की गर्माहट
हमारे नेह की
आंच की मानिंद
बुझ सी गई है ।
 ( 2 )

सांस लेने दो इस को
शब्दों पर बंधन क्यों
यह नया सृजन है
कल-कल करता निर्झर
अनुशासनहीन  नहीं
मंजुलता का प्रतीक है
 
      XXXXX

रविवार, 16 सितंबर 2018

"कब तक”

नैन हमारे तकते राहें ,जाने तुम आओगे कब तक ।
जाओ तुम से बात करें क्यों , साथ हमारा दोगे कब तक ।।

ना फरमानी फितरत पर हम , बोलो क्योंकर गौर करेंगे ।
तुम ही कह दो जो कहना है , हम से और लड़ोगे कब तक ।।

बेमतलब यूं दुख देने का , हुनर कहाँ  से तुमने पाया ।
मेरी तो आदत ऐसी ही , तुम ये बात कहोगे कब तक ।।

छोड़ो हठ  करने की आदत  , काम कई हैं करने  बाकी ।
घर अपना है जग अपना है , तुम ये सब समझोगे कब तक ।।

जीवन नैया बिन नाविक के , बोलो पार करोगे कैसे ।
बहते दरिया के पानी को , बाँधों से रोकोगे कब तक ।।
XXXXX

शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

"हिन्दी दिवस"

अपने स्कूली दिनों से अब तक “हिन्दी दिवस”  बड़ी धूमधाम से मनाते देखा है । कुछ वर्षों के शिक्षण काल में हिन्दी के प्रचार-प्रसार पर बल देने की बात भी कही है मगर वैश्वीकरण के जमाने में पश्चिमी देशों की ओर रूझान रखने वाले लोगों के यहां बच्चों की मातृभाषा के रूप में अंग्रेजी के बढ़ते चलन को भी देख और महसूस कर रही हूँ ।विकासवादी और आधुनिकतावादी नजरिया कोई बुराई नही है मगर उसके पीछे भागते हुए अपनी संस्कृति और भाषा की अवमानना बुरी लगती है । आजादी के इतने वर्षों बाद भी  हिन्दी को राष्ट्रभाषा का सम्मान न देना मन में चुभन पैदा करता है ।

चलिए हम सब आज ,
हिन्दी में बात करते हैं
१४ सितम्बर का नाम ,
हिन्दी दिवस रखते हैं
करें कुछ सभाएं ,
दिखाएं कुछ ठसक अपनी
आती तो नहीं फिर भी,
बस थोड़ी- थोड़ी समझते हैं

समझते क्यों नहीं है आप …,
बूढ़ी हो गई है हिन्दी
आ गया जनरेशन गैप ,
कब समझेगी ये जिद्दी
बोलने में भी बड़ी जटिल,
कोई समझेगा कितना
साल भर चलता है ना काम,
तो एक दिन शोर क्यों इतना

करते हैं कोरी बातें ,
मान कहाँ हम भी करते हैं
क्यों अपने घरों में सारे ,
इसे अलग थलग रखते  हैं
छोड़े़ फलसफों की बात ,
बात मुद्दे की करते हैं
जो सब करते हैं आज
काम हम भी वही करते हैं

हिन्दी दिवस है आज
हिन्दी में बात करते हैं

XXXXX

सोमवार, 10 सितंबर 2018

"जल”

हरहराता ठाठें मारता
प्रकृति का वरदान है जल ।
जीवन देता प्यास बुझाता
नद-निर्झर में बहता है जल ।।

जो ये बरसे मेघ बन कर
खिले धरा दुल्हन बन कर ।
उस अम्बर का इस धरती पर   
छलके ये अनुराग बन कर ।।

सीप म़ें मोती मोती की आब
जीवन का  मधु राग है जल ।
गम से टूटे बांध जो दिल के
तो आँखों से बहता है जल ।।

तोड़े सीमा तो बने प्रलय
मर्यादा में अभिराम है जल ।
बिन इसके तो शून्य जगत है
सृष्टि का आधार है जल ।।

XXXXX

गुरुवार, 6 सितंबर 2018

"मैं कौन हूँ’

मन में अभी एक ख्याल आया ।
कौन हूँ , क्या हूँ , ये सवाल आया ।।
खोजा तो पाया स्वयं को बड़ा विशाल ।
नारी रूप में मेरा अस्तित्व बेमिसाल।।

बाबुल के आंगन तितली सी
मेघों की चपला बिजली सी ।
साजन के घर लगती ऐसी ।
देव धरा पर लक्ष्मी जैसी ।।

तन्वगिनी  से नाम लिए हैं ।
सुख अपने सब वार दिये हैं ।।
नेह सुधा की गागर पकड़े ।
त्याग सभी बेनाम किये हैं ।।



सबके दिलों को जानती मैं ।
रिश्तों की कड़ियाँ बाधंती मैं ।।
तिनका-तिनका जोड़ कर ।
बिखरा  घर संवारती मैं ।।


शिशु की प्रथम पाठशाला देती मैं संस्कार ।
मेरा हृदय धरा सम करूणा का मैं भण्डार ।।
इस धरा पर ईश्वर का दिया एक उपहार ।
खुद से मेरा खुद के द्वारा प्रथम साक्षात्कार ।।
                    XXXXX

रविवार, 2 सितंबर 2018

“भ्रमर गीत”

सभी साथियों को भगवान श्री कृष्ण जी के जन्म दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाइयाँ । कभी सूरदास जी के पद खुद पढ़ते तो कभी पढ़ाते जहाँ मन अधिक रमा वो थे भ्रमर गीत । इन पदों में कृष्ण का वियोग और गोपियों का उपालम्भ उद्धव जी के आगे सम्पूर्ण तार्किकता के साथ खूब छलका  । आज खुद लिखने बैठी तो गोप-गोपियों के साथ नन्द -यशोदा और राधा की मौन वेदना पुनः मन में साकार हो उठी । एक प्रयास मेरा भी भ्रमर गीत के बहाने बांकेबिहारी को कुछ शिकवे गिले करने का ।
        
      “भ्रमर गीत”

वृन्दावन की कुँज गली
कृष्ण बिना सुनसान पड़ी
कब आएँगे कृष्ण कन्हाई
पूछ रही वृषभान कुँवरि
  
तुम बिन सूनी सारी गलियाँ
राह देखती थक गई अखियाँ
सूने कूल कदम्ब किनारे
ब्रज का मधुवन तुम्हें पुकारे

हो तुम तो निर्मोही सांवरे
संगी साथी सभी बिसारे
नन्द यशोदा बाट निहारे
सूने उनके सांझ-सकारे

मथुरा के वैभव में क्या है
निश्छल सा संसार यहां है
ग्वाल-बाल संग तेरी गैया
जीवन का आधार यहां है

भेजा निर्गुण ब्रह्म का ज्ञानी
सगुण प्रेम की रीति न जानी
माखन मिश्री खा कर कान्हा
कहाँ से सीखी कड़वी बानी

हम तो केवल तुम को जाने
सुख दुख का सहभागी मानें
सांसों में तुम बसे हमारे
उद्धव को हम क्यों पहचाने

ये तो दीखे भ्रमर सरीखा
ज्ञानयोग का भरे खलीता
जाने आया कौन देश से
इसका तो मीठा भी फीका
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