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शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

“तृष्णा”

अभिव्यक्ति शून्य , भावों से रिक्त ।
तृष्णा से पंकिल , ढूंढता असीमित ।।

असीम गहराइयों में , डूबता-तिरता ।
निजत्व की खोज में ,रहता सदा विचलित ।।

दुनियावी गोरखधंधों से , होता बहुत व्यथित ।
सूझे नही राह कोई , हो गया भ्रमित ।।

मृगतृष्णा में फंसे , तृषित हिरण सा ।
मरु लहरियों के जाल से , है बड़ा चकित ।।

तृष्णा में लिपटा , खुद को छलता ।
मेरा मन अपने आप में , होता सदा विस्मित ।।

XXXXX

24 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना

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  2. तृष्णा में लिपटा , खुद को छलता ।
    मेरा मन अपने आप में , होता सदा अचंभित ।।
    वाह बहुत सुंदर 👌

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    1. सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार अनुराधा जी ।

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  3. उत्तर
    1. स्वागत अनीता जी "मंथन" पर एवं प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार ।

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  4. लाजवाब।
    बस वाह निकलती हैं मुँह से।
    बहुत बहुत बधाई।

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  5. स्वागत आपका "मंथन" पर ,आपके सराहना भरे शब्दों के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

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  6. वाहः बेहतरीन अभिव्यक्ति
    बहुत शानदार

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  7. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 21/09/2018 की बुलेटिन, जन्मदिन पर "संकटमोचन" पाबला सर को ब्लॉग बुलेटिन का प्रणाम “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    उत्तर
    1. "ब्लॉग बुलेटिन" मे मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार शिवम जी ।

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  8. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २४ सितंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  9. "पांच लिंकों का आनन्द" में मेरी रचना को स्थान देकर मान देने हेतु हार्दिक आभार श्वेता जी ।

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  10. भावमय करते शब्‍दों के साथ गजब का लेखन ...आभार ।

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  11. मृगतृष्णा में फंसे , तृषित हिरण सा ।
    मरु लहरियों के जाल से , है बड़ा चकित ।।
    हमकदम के बहाने से तृष्णा पर बहुत ही लाजवाब सृजन प्रिय मीना जी |सस्नेह शुभकामनाएं स्वीकार हों |

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    1. रेणु जी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से धन्यवाद ।

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  12. बहुत सुंदर मीना जी ।
    इंसा क्यों निर्बल होता है,
    तृष्णा में उलझा रहता है
    निज अस्तित्व भी खोता है।
    तृष्णा पर बहुत सटीक अभिव्यक्ति ।

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    1. सराहनीय प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार कुसुम जी ।

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"