मंगल मोद मनाये
कुछ हँस ले कुछ गाए
नये साल में...
भूलें जो दुःस्वप्न सरीखा था
जो भी था
सब अपना था
आशा के दीप जलाए
नये साल में..
प्रकृति का खिला
अंग-प्रत्यंग
सृष्टि का दिखा
अभिनव सा रंग
बंद घरों में रह कर सीखा
जीने का एक नया ढंग
खुल जाएँ आंगन-द्वार
नये साल में…
समय के बहते दरिया में
आए कब ठहराव यहाँ...
था वो भी कल
जो बीत गया
वो भी है कल
जो आएगा
सब अच्छा हो इस बार
नये साल में..
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【 चित्र-गूगल से साभार 】