Followers

Copyright

Copyright © 2023 "मंथन"(https://www.shubhrvastravita.com) .All rights reserved.

बुधवार, 30 दिसंबर 2020

"नये साल में"

                     

मंगल मोद मनाये 

कुछ हँस ले कुछ गाए 

नये साल में...

भूलें जो दुःस्वप्न सरीखा था

जो भी था 

सब अपना था

आशा के दीप जलाए

नये साल में..


प्रकृति का खिला

 अंग-प्रत्यंग

सृष्टि का दिखा 

अभिनव सा रंग

बंद घरों में रह कर सीखा

जीने का एक नया ढंग 

खुल जाएँ आंगन-द्वार

नये साल में…


समय के बहते दरिया में

आए कब ठहराव यहाँ...

था वो भी कल

 जो बीत गया

 वो भी है कल

 जो आएगा

सब अच्छा हो इस बार

नये साल में..

---

【 चित्र-गूगल से साभार 】


गुरुवार, 24 दिसंबर 2020

"यादें"

 


आधी सी रात  में..

धीमे से बादल उतरते ।


मोती सी तुषार बूँदें..

सरसों पर देखी बिखरते ।


ऊन जैसा परस तेरा..

सर्दियों के दिन हठीले ।


चाय की वो चुस्कियाँ..

शीत लहरों में ठिठुरते ।


कहा भरे दिल से विदा...

रोये फिर मुझ से बिछुड़ के ।


 मैं तुम्हें कैसे  बताऊँ...

दिन ये इतने कैसे बीते ।


धूप के बिन लगे देखो ...

दिन भी रोते और बिसूरते ।

--

 【 चित्र :- गूगल से साभार 】


शुक्रवार, 18 दिसंबर 2020

"सांध्यगीत"

                    

धीरे धीरे सांझ उतरी ,

जीवन में गोधूलि बेला ।

रीत जगत की चली आई  ,

जीना चार दिन का खेला ।।


हाथों में हैं नवल पाटल ,

दृग संजोते नई आशा ।

गा के सांध्य गीत कोई ,

भरे मन में नव प्रत्याशा ।।


कौन है  ऐसा जगत में ,

जिसने ना एकांत झेला ।

रीत जगत की चली आ रही ,

जीना चार दिन का खेला ।।


आ रही सागर से लहरें ,

बन के तेरी संगी  साथी ।

करती तन्द्रा भंग तेरी ,

वापस किनारे लौट जाती ।।


तेरे दुख सुख की ये साझी ,

क्यों समझे खुद को अकेला ।

रीत जगत की चली आ रही ,

जीना चार दिन का खेला ।।


जल उठे ये प्रकाश स्तंभ ,

अब क्या  बैठा सोचता है ।

भरा पूरा उपवन सा घर ,

वो तेरी बाट जोहता है ।।


देख विहग घर लौटते हैं ,

कल होगा फिर से सवेरा ।।

रीत जग की चली आ रही ,

जीना चार दिन का खेला ।।


🍁🍁🍁


मंगलवार, 15 दिसंबर 2020

"आँखें"

उस पार बंधी है

लौकिक नैया 

 कौन खिवैया

तम की चादर 

कर पार..

भेद खोलना चाहती हैं


थकन भरी  है

आँखों में

बहुत दिन बीते

चैन से सोये

नींद भरे सागर में 

आँखें खोना चाहती हैं


***


बुधवार, 9 दिसंबर 2020

मुस्कुराहट लबों पर...

                           

मुस्कुराहट लबों पर, सजी रहने दीजिए ।

ग़म की टीस दिल में, दबी रहने दीजिए ।।

 

छलक उठी हैं ठेस से, अश्रु की कुछ बूंद ।

दृग पटल पर ज़रा सी,नमी रहने दीजिए


 राय हो न पाए अगर ,कहीं पर मुक्कमल।

मिलने-जुलने की रस्म,बनी रहने दीजिए ।।


बिगड़ी हुई बात है,कल संवर भी जाएगी ।

लौ है उम्मीद की बस,जली रहने दीजिए ।।


 फूल सी है ज़िंदगी, तो कांटे संग हजार

 कुदरत से बनी लकीर, खिंची रहने दीजिए


***

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2020

"मन"

                          

सांझ की...

दहलीज़ पर

कभी हाँ…

तो कभी ना में

 उलझा …

घड़ी के पेंडुलम सा

स्थिरता..

की चाह में झूलता

स्थितप्रज्ञ मन…


हक के साथ

बोनस में

जो मिल रहा है

उसकी..

चाह तो नहीं रखता

वैसे ही…

मन बेचारा

निर्लिप्त जीव है

तुम्हारी सौगातें

जो भी है...

सब की सब

सिर आँखों पर..


यहाँ..

सारा का सारा

आसमान...

कब और किसको 

मिला है..

यह मन ही 

पागल है...

मिठास की चाह भी 

रखता है..

और वह भी

 खारी सांभर से...


***

【चित्र~गूगल से साभार】


शुक्रवार, 27 नवंबर 2020

"गोधूलि संग हुआ अंधेरा"

गोधूलि संग हुआ अंधेरा

तारों ने  जादू बिखेरा


चाँदनी को साथ ले कर

नभ मंडल में चंद्र चितेरा


विहग की टहकार मध्यम

टहनियों के मध्य बसेरा


नीड़ की रक्षा में व्याकुल

 आए ना कोई लुटेरा

 

रोज के चुग्गे की  चिन्ता

कब होगा सुख का सवेरा


***

【चित्र~गूगल से साभार】

मंगलवार, 17 नवंबर 2020

"राग-द्वेष"

                          

【 चित्र-गूगल से साभार 】


अनुबंध है प्रेम..

प्राण से प्राण के मध्य

ब्रह्माण्ड सा असीमित

बंधनमुक्त

मगर फिर भी..

बंधनों में ही पल्लवित

असंख्य परिभाषाओं से 

अंलकृत..

मगर समय के साथ 

लुप्त प्रजाति की

वस्तु जैसा हो गया है

असीम प्रगाढ़ता

 ही है गहरी कड़वाहट 

की नींव...

किसी राह चलते

 अजनबी को

प्यार और ईर्ष्या

की नज़र से देखना

मुमकिन नहीं

नामुमकिन सा है 


***

शनिवार, 14 नवंबर 2020

"हाइकु"

                               

【गूगल से साभार】

☀️

दिवाली पर्व~

हरे गहन तम

मृतिका दीप ।

☀️

अमा की रात~

जगमग करती

तम मे दीप्ति ।

☀️

कोरोना काल~

दीपक महोत्सव

सादगीपूर्ण ।

☀️

🙏दीपावली महापर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ 🙏       



शनिवार, 7 नवंबर 2020

"संवेदनाएँ"

                          

 नये अर्थ दे कर

दर्द...

जिंदगी को मांजता है

अंधेरों से डर कर

भागती जिंदगी की

अंगुली थाम..

ला खड़ा करता है

धूप-छाँव की 

आँख-मिचौली के

आँगन में...

वक्त के साथ

जड़ पड़ी

संवेदनाओं का कोई 

मोल नहीं होता

बस...

नीम बेहोशी में

अनीस्थिसिया सूंघे 

मरीज सी…

अभिव्यक्ति के 

नाम पर बेबस सी 

कसमसाती 

महसूस तो होती हैं

अभिव्यक्त ही

नहीं होती


***

रविवार, 1 नवंबर 2020

"उम्र भर की तलाश"

                              

उम्र भर की तलाश

अपना घर..

कितनी बार कहा-

ओ पागल!

यह तेरा अपना ही घर है

हक जताना तो सीख

समझती कहाँ है

समझ का दायरा बढ़ा

तभी से..

दादा का घर..नाना का घर..

उनकी जगह

पापा और मामा ने  ली

ब्याह के बाद

श्वसुर और पति ने..

अपना तो कभी 

कुछ हुआ नहीं

पहली बार जब उसने

 लाड़ से कहा-

यह तेरा अपना घर..

तेरी मेहनत का फल

 तब से किंकर्तव्यविमूढ़

 सी खड़ी है

अधिकार जताने की

किताब कभी पढ़ी नहीं

और न ही मिली कभी सीख 

बस एक जिद्द थी

मेरा क्यों नहीं..

पीढिय़ों से लड़ रही है

निजता की खातिर

आज यहाँ.. कल वहाँ

और अब..

अधिकार भाव

के शस्त्र को उसने

स्वेच्छा से रख दिया

एक कोने में...

गाड़िया लुहारों की मानिंद

***







सोमवार, 26 अक्तूबर 2020

"ज्योत्सना का रात पर पहरा लगा सा है"

                               

ज्योत्सना का रात पर , पहरा लगा सा है ।

आसमां का रंग भी , उजला-उजला सा है ।।


पत्तियों  में खेलता ,एक शिउली का फूल ।

डालियों के कान में ,कुछ कह रहा सा है ।।


हट गया  मुखौटा ,जो पहने हुए थे वो ।

तब से मन अपना भी ,कुछ भरा-भरा सा है ।।


दर्द बढ़ जाए जब ,सीमाओं से परे ।

लगता यही कि वक्त ,फिर ठहरा हुआ सा है ।।


हो थमी जिसके हाथों ,अपने समय की डोर ।

आने वाला उसी का कल ,खुशनुमा सा है ।।


***

रविवार, 18 अक्तूबर 2020

"क्षणिकाएं"


जागती आँखों ने

देखे हैं चंद ख्वाब

असामान्य सी 

सामान्य परिस्थितियों में

और मन उनको 

सहेजने की 

जुगत में लगा है

✴️

जिस मोड़ पर

तुम्हें  छोड़ा था

मेरे मुड़ने के बाद भी

जिद्द में...

तुम आज भी वहीं खड़े हो

चलो …

जो भी हुआ अच्छा हुआ

सार्थक हुआ अपना यूं 

बिछड़ना भी...

मुझे हराने की चाह ने

तुम्हे पर्वत बना दिया

और मुझे … 

बहता दरिया

✴️

खुद में खो कर 

खुद के करीब रहना 

अक्सर...

सुकून ही देता है

 सुना है बाहर

अंधेरों की दुनियां 

उजालों पर भारी हैं

✴️✴️✴️

बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

"साथी"

                  


जीवन नहीं मधुमास साथी ।  

कठिन बहुत अभ्यास साथी ।।


सुख-दुख  दोनों जीवन पहलू ।

अब तक का इतिहास साथी ।।


छम-छम बरसें बूंदें घन से ।

मन में फिर भी प्यास साथी ।।


होती नहीं हर चाहत पूरी ।

मत बन इनका दास साथी ।।


गांव बसा यादों का मन में ।

उसमें अपना वास साथी ।।


***

【 चित्र - गूगल से साभार 】



एक बार तरही ग़ज़ल के बारे में पढ़ते हुए राहत इन्दौरी जी की कलम से निसृत - तू शब्दों का दास रे जोगी..पढ़ी जो बाद में -जोग कठिन अभ्यास रे जोगी..में ढलती चली गई . एक अकिंचन प्रयास मेरी ओर से ।