उम्र भर की तलाश
अपना घर..
कितनी बार कहा-
ओ पागल!
यह तेरा अपना ही घर है
हक जताना तो सीख
समझती कहाँ है
समझ का दायरा बढ़ा
तभी से..
दादा का घर..नाना का घर..
उनकी जगह
पापा और मामा ने ली
ब्याह के बाद
श्वसुर और पति ने..
अपना तो कभी
कुछ हुआ नहीं
पहली बार जब उसने
लाड़ से कहा-
यह तेरा अपना घर..
तेरी मेहनत का फल
तब से किंकर्तव्यविमूढ़
सी खड़ी है
अधिकार जताने की
किताब कभी पढ़ी नहीं
और न ही मिली कभी सीख
बस एक जिद्द थी
मेरा क्यों नहीं..
पीढिय़ों से लड़ रही है
निजता की खातिर
आज यहाँ.. कल वहाँ
और अब..
अधिकार भाव
के शस्त्र को उसने
स्वेच्छा से रख दिया
एक कोने में...
गाड़िया लुहारों की मानिंद
***
मन की बात लिखी है आपने इस कविता के माध्यम से। बेहतरीन 👌
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न त्वरित प्रतिक्रिया के लिए हृदय से बहुत बहुत आभार शिवम् जी .
हटाएं
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
02/11/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
रचना को पांच लिंकों का आनंद में शामिल करने के लिए हार्दिक आभार कुलदीप ठाकुर जी ।
हटाएंअधिकार भाव
जवाब देंहटाएंके शस्त्र को उसने
स्वेच्छा से रख दिया
एक कोने में...
गाड़िया लुहारों की मानिंद
सच, गाड़िया लुहारों की तरह ही तो है स्त्रियों की जिंदगी.... पर आज स्त्री अपने उस शस्त्र को खोज रही है जो स्वेच्छा से रख दिया था उसने किसी कोने में !
सार्थक अभिव्यक्ति मीना जी।
आपकी व्याख्यायित प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता और मान मिला। सस्नेह हार्दिक आभार मीना जी!
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 01 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं"सांध्य दैनिक मुखरित मौन" में मेरी रचना को साझा करने के लिए हार्दिक आभार दिव्या जी!
हटाएंनारि की वेदना की मार्मिक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंरचना के मर्म को स्पष्ट करती प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली । सादर आभार सर ।
हटाएंजिस विषय को आपने कविता के माध्यम से रेखांकित किया है, वो भारतीय समाज की सबसे दुःखदायी बिंदु है, जहाँ एक महिला अपना सर्वस्व देने के बाद भी निर्वासित होती है क्योंकि उसका ख़ुद का कोई घर नहीं होता, मैं अपनी विवाहिता इंजिनियर बेटी से हमेशा कहता हूँ कि ज़िन्दगी में ख़ुद के नाम का घर ज़रूर ख़रीदना और दो पैसे ज़रूर ज़मा करना - - लेकिन सब भाग्य की बात है, समाज को इस विषय पर ज़रूर सोचना चाहिए - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंजी बहुत बहुत आभार मेरे नजरिए को सहमति भरा मान देने के लिए...आपकी स्नेहिल ख्वाहिश जरूर पूरी हो 🙏🙏
हटाएंमन को छूती बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।क्या कहूँ कहने में असमर्थ हूँ बहुत सी औरतों की पीड़ा ने घेर लिया है।ख़ुद का कहना स्वार्थ होगा।
जवाब देंहटाएंसादर
आपका सस्नेह आभार अनीता!वे बहुत सी औरतें जो आज भी इस पीड़ा में हैं वे सजग हो..अपने लिए प्रेरित हो ..दिल से यही अभिलाषा है ताकि समाज में समरसता का भाव बने।
हटाएंहमारी पीढ़ी की उन नारियों को जिन्हें अपना मान-स्वाभिमान समझ में आने लगा था उन्हें छत की इस पीड़ा की अनुभूति ज्यादा हुई... नयी पीढ़ी की नारी ज्यादा सचेत हैं क्योंकि वे ज्यादा स्वालम्बी हैं अतः अब छत की चिंता कम करने की आवश्यकता है.... बल्कि अब रिश्तों में विश्वास की कमी ज्यादा पायी जा रही है..
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया दी 🙏 आपका चिंतन यथार्थ के धरातल पर गहराई लिए है। नई पीढ़ी के लिए एक मोर्चा और बढ़ गया है जिसका संकेत भी किया है आपने। आपकी प्रतिक्रिया ने सृजन का मान बढ़ाया । पुनः बहुत बहुत आभार दी🙏
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार 3-11-2020 ) को "बचा लो पर्यावरण" (चर्चा अंक- 3874 ) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
---
कामिनी सिन्हा
प्रविष्टि के लिंक को चर्चा में सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार कामिनी जी ।
हटाएंपहली बार जब उसने
जवाब देंहटाएंलाड़ से कहा-
यह तेरा अपना घर..
तेरी मेहनत का फल
तब से किंकर्तव्यविमूढ़
सी खड़ी है.... बेहद हृदयस्पर्शी रचना मीना जी।
हृदय से बहुत बहुत आभार अनुराधा जी ।
हटाएंस्वयं की शक्ति को कमतर आंकने का अभिशाप स्वयं के लिए ?
जवाब देंहटाएंमहिला वर्ग की कई बार अनदेखी और उपेक्षित रवैये के कारण हृदय व्यथित हो जाता है अमृता जी । बहुत बहुत आभार आपके सशक्त हस्ताक्षर के लिए ।
हटाएंस्त्री की पीड़ा को मुखरित करने हेतु बधाई 💐🍁💐
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता मीना जी 🙏
स्नेह सहित,
- डॉ. वर्षा सिंह
आपकी सुन्दर सी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया ने मेरा मनोबल संवर्द्धन कर लेखनी का मान बढ़ाया..हार्दिक आभार वर्षा जी.🙏🙏
हटाएंहृदयस्पर्शी कविता... सही कहा आपने... अपना अक्सर होता ही कहा हैं...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार विकास जी ।
हटाएंबहुत अच्छी कविता
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार सर!
हटाएंBahut hi Sundar laga.. Thanks..
जवाब देंहटाएंदिवाली पर निबंध Diwali Essay in Hindi
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