कई बार बीते लम्हों की
पुनरावृत्ति
समय की उस
दहलीज़ पर
ला खड़ा करती है
इन्सान को
जहाँ वह कल को आज के साथ जीता
वक़्त के साथ
तत्वचिन्तक बन जाता है
अतीत के गर्भ में जब
क्षोभ आँसुओं के सागर के साथ
एकमेक हो
बहते सोते सा उबल पड़ा था
तब धीरज ने धीरे से कहा -
“खारे सागर के उस पार मीठे पानी का दरिया बहता है”
लेकिन
आज का सच कहता है कि-
“सबके दिलों में अपने -अपने “अचल” बसते हैं”
जो दरकते हैं
तो तकलीफ़ों के साथ
कोरी टीस का ही सृजन करते हैं ॥
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