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सोमवार, 22 नवंबर 2021

आत्म चिंतन

 


कांटें हैं पथ में फूल नहीं

चलना इतना आसान नहीं

यही सोच कर मन मेरा

 संभल संभल पग धरता है

मन खुद ही खुद से डरता है 


तू पेंडुलम सा  झूल रहा

बस मृगतृष्णा में डूब रहा

कल आज कभी भी हुआ नही

फिर क्यों इतनी जिद्द करता है

मन खुद से क्यों छल करता है


कल हो जाएंगे पीत पात

नश्वर तन की कैसी बिसात

समय चक्र रुकता नही

बस आगे आगे चलता है

मन यह कैसी परवशता है 


***




बुधवार, 17 नवंबर 2021

“क्षणिकाएं”

दूर से आती …,

‘विंड चाइम्स‘ की 

घंटियों की आवाज़

बंद कमरे में भी बता जाती हैं

हवाओं का रुख...

संकेत देना कुदरत का

और फिर

संभल कर चलना 

खुद का काम है

***

उलझनों के चक्रव्यूह से

बाहर निकलने लगी हैं 

अब स्त्रियां…,

तारीफ़ करते इनके पति

 सीधे सच्चे 

साधक लगते हैं ।

साफगोई

बड़प्पन की प्रथम सीढ़ी है ।।

***

शून्य से ...

निर्वात में डूबी अभिव्यक्ति, 

विराम चाहती है ।

विचार….,

मन आंगन के नीलगगन में,

खाली बादल से विचरते हैं ।

सोमवार, 8 नवंबर 2021

"नदी"



न जाने क्यों..,
बहती नदी 
मुझे इन दिनों
थमी-थमी सी लगती है 
लगता है ...
तटस्थता ओढ़े वह
मंथर गति से 
बढ़ी जा रही है
किनारे-किनारे
उसकी अप्रत्याशित सी 
खामोशी…,
उद्विग्नता के बावजूद
‘अंगद के पांव सी‘अपनी
पराकाष्ठा लिए स्थिर है

***

बुधवार, 3 नवंबर 2021

दीपावली [ हाइकु ]

                                          🪔

ऋतु हेमन्त~

घर-घर सजती

दीपमालिका ।

🪔

दीपक ज्योति~

तम दूर भगाए

राग द्वेष का ।

🪔

शोभा अपार ~

रंगोली- तोरण से

गृह द्वारों की ।

🪔

पावन पर्व ~

मन मोद मनाएं

हर्षें व गाएं ।

🪔

दीप पर्व की

हार्दिक शुभेच्छाएँ

मित्र वृन्द को ।

🪔

🙏🙏