अपने में खोया
कुछ जागा कुछ सोया
एकाकी मन
बंजारा बन...
ठौर अपना सा ढूँढे
अब जाए कहाँ
कहने को यहाँ
किसे समझे अपना
असमंजस में डूबा..
बावरा मन मुझसे पूछे
सांसारिक बंधन
नादान न समझे
अलबेला मन
माया में उलझे
शावक सा भागे
देखे ना आगे
रोकूँ इसको कैसे...
कोई राह नहीं सूझे
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