Followers

Copyright

Copyright © 2023 "मंथन"(https://www.shubhrvastravita.com) .All rights reserved.

सोमवार, 24 अप्रैल 2017

“यूं ही”

बिना बताए,चुपचाप चले आना ।
दबे पाँवों आके,यूं ही चौंकाना ।।

नासमझी सी बातें,इशारों में समझाना ।
किताबों में बेतरतीब से,ख़तों को छुपाना ।।

उजली चाँदनी रातें,तारों संग बिताना।
बेगानों की महफिल में, बेवजह मुसकुराना ।।

बेमतलब बेमकसद,झूठी-मूठी बातें बनाना‎ ।
कहाँ सीखा यूं ही,बेकदरों से दिल लगाना ।।

XXXXX

मंगलवार, 18 अप्रैल 2017

"तुम"

ऐसा नही कि कभी तुम्हारी याद‎ आई  ही नही , आई ना.., जब कभी किसी कशमकश में उलझी , कभी खुद के वजूद की तलाश हुई । सदा तुम्ही तो जादू की झप्पी बनी , कभी फोन पर , तो कभी प्रत्यक्ष‎ रूप‎ में । तुम , तुम हो इसका अहसास सदा तुम्हारी अनुपस्थिति में‎ हुआ जटिल परिस्थितियों‎ में‎ घिरी होने के बाद भी तुम्हारी सधी चाल और चेहरे को देखकर  यही लगा कि तुम्हें यकीन है कि कैसे पार पाना है विषम और कठिन परिस्थितियों‎ से ।

                                     मैं जब भी परेशान हुई सदा तुमने‎ हौंसला दिया मुझे सदा यही  लगा कि हर समस्या का हल है तुम्हारे पास । मैं तुम‎ से कुछ कहूँगी अगले ही पल तुम जैसे कोई जादुई छड़ी घुमाओगी और परेशानी फुर्र से उड़ जाएगी पक्षी‎ की तरह । बचपन से बड़पन तक सदा अलाहद्दीन का चिराग समझा तुम्हे , कल पहली बार कहा तुम‎ से --- ‘अगले जन्म में …., यदि होता है तो मैं‎ तुम्हारा‎ ही कोई भाई- बहन‎ बन कर तुम जैसा बन कर जीना चाहूँगी ।’

                                  हँसते हुए मानो यह भी तुम्हें पता हो तुमने कहा था ---- ‘ देखो ऊपर वाले ने जो करना है वो उसे ही करने दो वो उसी काम है हम सीमाओं में बँधे प्राणी हैं‎ । और हाँ तुम कहाँ आज भावनाओं में बह रही हो तुम्हारी अपनी सीमाएँ और बंधन हैं  याद है ना देशों की अपनी अपनी सीमाएँ होती हैं सभी अपनी सीमाओं में रहे तो अच्छा है ।’

                        मेरे मोह को सीमाओं में बाँध कर कितनी सहजता और निर्लिप्तता के साथ सब कुछ दरकिनार कर एक सन्यासी की तरह आगे बढ़‎ गई तुम ।

                                        XXXXX

शनिवार, 15 अप्रैल 2017

"संस्कार‎"

( 1 )
सुबह और शाम खुली हवा में घूमना बचपन से ही बहुत प्रिय रहा है मुझे । इसका कारण शायद पहले खुले आंगन‎ और खुली‎ छत वाले घर में रहना रहा होगा । शहर में आ कर अपना यह शौक  मैं‎ अपने घर के पास बने पार्क में घूम‎ कर पूरा कर लेती हूँ । शाम के समय अक्सर‎ बच्चे‎ बास्केट बॉल या फुट‎बॉल खेलते मिल जाते हैैं । एक दिन बच्चों‎ के ग्रुप के बीच एक औरत खड़ी मोबाइल पर कुछ करती दिखाई‎ दी,  दो राउंड पूरे होने के बाद भी उसे वहीं‎ खड़े देखकर कुछ अजीब‎ सा लगा कि क्यों बच्चों‎ का रास्ता‎ रोके खड़ी है दूर‎ खड़ी होकर भी बात कर ही सकती है मगर सार्वजनिक‎ जगह जो ठहरी  । उसका उपयोग करने का सब का समान हक है यहाँ‎ वर्जना अस्वीकार्य है ।

( 2 )
कुछ ही देर में माहौल अन्त्याक्षरी जैसा हो गया बच्चों‎ का झुण्ड एक तरफ और महिला दूसरी तरफ मगर जो कानों ने सुना वह अप्रत्याशित था , बच्चे‎ ---  “But aunty , we are  seniors .और महिला बराबर टक्कर दे रही ही थी----  O…, excellent . listen me you are also kids. गर्मा गर्म बहस सुन कर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँची  कि महिला का बेटा जो उन बच्चों‎ से बेहद छोटा था बास्केट बॉल खेलना चाह रहा था  जिसके चलते  बड़े बच्चों‎ को परेशानी हो रही थी‎ और समस्या यह थी कि दोनों पक्षों‎ में से पीछे हटने के कोई तैयार नही था ।

( 3 )
घर की तरफ लौटती मैं सोच रही थी कि संस्कार कहाँ कम थे और अधिकार भाव के लिए सजगता कहाँ अधिक‎ थी । Morality के मानदण्ड पर तो दोनों पक्ष ही गलत थे ऐसे में रहीम जी का दोहा ----छमा बड़ेन को चाहिए ,छोटन को उत्पात ………….।। याद आते ही बच्चों‎ का पलड़ा भारी हो गया ।

XXXXX

मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

“मन”


मानता ही नही मन,
बस पीछे की ओर दौड़ता है ।
पहली बारिश में‎ गिरी पानी की बूंदें,
बूंदों की नमी चेहरे पे खोजता है ।
धरती पे बिछी ओलों की चादर
गीली हथेली में‎ ठिठुरन को खोजता है ।
मानता ही नही मन,
बस पीछे की ओर दौड़ता है ।
आँगन में झुकी आम के पेड़ की डाली,
नई शाखों में पुरानी बौर ढूंढ़ता है ।
मानता ही नही मन,
बस पीछे की ओर दौड़ता है ।

XXXXX

शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

"क्षणिकाएँ"

(1)
सीधी सरल बातें
शब्दों की जुगलबंदी में ढल कर
कभी गीत तो कभी‎ कविता बन कर
मन को बहला जाती हैं‎ ।
यही बातें जब सतसइयां के दोहरे बन कर
तीर का काम करती हैं तो
तुलसीदास जी से
रामचरित मानस लिखा जाती हैं ।।

(2)
आँखों के कोर गीले से हैं
मन का कोई कोना भी भीगा ही होगा ।
जुबान पर इतना रूखापन
लगता है, मुद्दतों से पानी नही बरसा ।।


XXXXX

रविवार, 2 अप्रैल 2017

"राधा-कृष्ण"(हाइकु)

राधिका संग
झूठी रार मचाई
कृष्ण कन्हाई।

नील गगन
तारों की छाँह तले
नैना भटके।

चाँदनी रात
शबनमी बयार
मौन खटके।

कुछ बोलो ना
अपनेपन संग
मन की बातें।

कदम्ब तले
जमुना तट पर
नेह बरसे।

XXXXX