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सोमवार, 20 जून 2022

“पाती”


कोने मे तुम खड़े अकेले

क्यों राहें देखा करते हो

मेरे प्रिय निकेत ! शायद तुम 

मुझको ही ढूँढा करते हो


घूमे निशि दिन यूंही अकारण 

गंतव्य का नहीं निशान 

अंतहीन राहों पर चलना

एक बटोही की पहचान 


पाखी दल लेकर आते 

भाव भरे तेरे संदेश

समझ कर अनजान बन फिर

उर करता है बहुत क्लेश 


मेरे जैसे ही तुम भी हो

इतना खुद ही समझ लोगे

उड़ने को जो पंख मिले हैं

बंधन में क्योंकर जकड़ोगे  


गगनचुंबी परवाज़ें भरने

पंछी करे लक्ष्य संधान

मानव भी तो पंछी जैसा

रखता है उद्देश्य महान


***

सोमवार, 13 जून 2022

“मन विहग”


सुख- दुख में साथी सच्चा

सखा मेरे बालपन का

व्यथा में भरता मधुरता

जीवन में रस घोलता है 


मन विहग कब बोलता है 


जागे हृदय की सुप्तता

बिखरती बन रिक्तता

उड़ने की ख़ातिर विकल सा

अपने परों को तौलता है 


मन विहग कब बोलता है 


शून्य जगती तल है सारा

तृष्णा में बंध मारा-मारा

रेत के सागर में मीठे

जल की आस मे दौड़ता है 


मन विहग कब बोलता है 


 ***

गुरुवार, 2 जून 2022

“क्षणिकाएँ”


बारिशों में गुमटी पर

पकती चाय है जिन्दगी

घूँट-घूँट पीने का

आनन्द ही कुछ और है ।


जिन्दगी भी कई बार

 अदरक इलायची वाली

चाय बन जाती है 

जिसमें मिठास छोड़

सब कुछ सन्तुलन में है । 


उलझे माँझे सी होती हैं 

कई बार बातें…,

सुलझने की जगह

टूट जाती हैं  या फिर

सुलझाने वाले को ही

 ज़ख़्मी कर बैठती हैं 


***