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मंगलवार, 23 मई 2023

“पल”



पल !

 मुझे भी चलना है 

तुम्हारे साथ.. 

तुम से कदम मिलाकर

 चल पड़ूँगी 

 इतना भरोसा तो है मुझे 

खुद पर..

मैं तुमसे बस तुम्हारे अस्तित्व का 

दशमांश चाहती हूँ 

वो क्या है ना..?

तुम्हारी ही तरह

 मेरे साझे  भी काम बहुत हैं

चलने से पहले.. 

चुन लेना चाहती हूँ अपनी ख़ातिर

रेशम से भी रेशमी 

रिश्तों के तार

फ़ुर्सत में उन्हें सुलझा कर

 निहायत ही ..

खूबसूरत सी माला 

जो गूँथनी है ।


🍁

सोमवार, 1 मई 2023

“वितान”


वर्षों से

मन की अलगनी पर टंगे 

चंद विचार..

भूली भटकी सोच के

धागों में 

उलझे -पुलझे..

मुझसे अक्सर अपना 

वितान मांगते हैं

जी ने चाहा..

आपाधापी में गुजरते

 वक़्त से 

कुछ लम्हें चुराऊँ 

और उतार दूं इन्हें 

धुंधले पड़े उपेक्षित से 

कैनवास पर..

इनको भी दूं

 तितलियों से उड़ने वाले

 रंगीन पंख ..

मगर हमेशा मन चाहा

कहाँ होता है  ?

बंधनों के आदी 

कहाँ समझते हैं 

पंखों वाली

 चपलता-चतुरता..

पा कर स्वतंत्रता 

 पहली ही स्वच्छन्द उड़ान में

जा उलझते हैं..

गुलाब भरी टहनियों के

आँगन में ।


*

सोमवार, 24 अप्रैल 2023

“समर्पण”


वर्जनाओं की

 देहरी से..


कब बँध कर 

रहती आई हैं

वे सब


मान मिले

 तो ..


अपने आप ही

 बना लेती हैं

 मर्यादाओं के दायरे 


बंधनों में ही ढूँढती हैं 

मुक्ति..


सीमा उल्लंघन से

कब बन जाती हैं 

सुनामी


पता ज़रा देर से ही 

चलता है …


*

शुक्रवार, 7 अप्रैल 2023

“मुखौटे”


बड़ा कठिन है 

‘सब ठीक है’ का

नाटक करना


अनजान होना

जान कर..


व्यथा ढकने के लिए 

मुखौटे पहने

बीते जा रहा है वक़्त 


दम घुटने लगा है

 अब..


जी चाहता है 

पूरी ताक़त से 

चिल्लायें


मगर इस से होना 

क्या है ..


सब की अपनी-अपनी

ढपली

अपना-अपना राग है


सच तो यही है 

कि..


अपनी खामोशी भी

 उन्हें अंतरंगता ही

लगती है 


उलझनों के भंवर

के फेर में ..


कितने ही दिनों से

हम अपरिचितों की तरह

एक ही घर में  


अलग-अलग घर बसाये

 बैठे हैं …!!


*

सोमवार, 27 मार्च 2023

“क्षणिकाएँ”


भोर से सांझ तक .. 

एक आलस भरा दिन

 मुट्ठी से रेत सा

निकल गया..

चलो ! अच्छा है 

ज़िन्दगी के रजिस्टर में

एक दिन और..

दिहाड़ी का पूरा हुआ ।


*


समय की शाख से टूट कर 

एक पल.,,

चुपके से आ गिरा सिरहाने पर

ऐसे समय में

रात की साम्राज्ञी को 

ठाँव कहाँ..

बेचारी बेघर सी भटकती 

रहेगी अब

दृग पटल के इर्द-गिर्द ।


*


मंगलवार, 14 मार्च 2023

“मैत्री”


सूरज की सोहबत में

लहरों के साथ दिन भर

गरजता उफनता रहा 

समुद्र ..

साँझ तक थका-मांदा 

जलते अंगार सा वह जब

जाने को हुआ अपने घर

 तो..

बिछोह की कल्पना मात्र से ही

बुझी राख सा धूसर 

हो गया सारे दरिया का

 पानी …

चलते -चलते मंद स्मित के साथ 

सूरज ने स्नेहिल सी सरगोशी की

बस..

रात , रात की ही तो बात है 

मैं फिर आऊँगा

माणिक सी मंजूषा में कई रंग लिए

कल..

हम फिर से निबाहेंगे वही

अनादि काल से चली आ रही 

 परिपाटी ।


***

शुक्रवार, 3 मार्च 2023

“त्रिवेणी”


आँगन की माटी और छत की मुँडेरों से

गौरैयाओं के परिवार कहीं खो गए है ..,


लुप्त प्रजाति की सूची में प्रेम अब सबसे ऊपर है 

                  

🍁


फ़ुर्सत के पलों में तेरे गली-कूचों में 

भटकता फिरता है़ ख़ामोश मन..,


उम्र भर के नेह की बात जो ठहरी ।


🍁


तुमसे मिलना ख़्वाबों में ही हुआ करेगा

बिछड़ते वक़्त यह सोचा नहीं था..,


मुद्दतें हुईं अपने बीच के सभी पुल ढहे ।


🍁