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गुरुवार, 14 सितंबर 2023

“अभिव्यक्ति”

 

मेरे चिन्तन की प्रथम किरण, 

हिन्दी भाषा सर्वस्व मेरी।

“माँ” स्वरूपा प्रथम उच्चारण,

जननी व बाल सखी मेरी॥


आंग्ल हुए जब शीश किरीट,

व्यापारी के छद्म वेष में।

आपद में बनी संगिनी तुम,

कष्ट हारिणी संवाद सूत्र में॥


 आर्यावर्त का रोम रोम,

आजन्म रहेगा तेरा ऋणी।

उपकार करें कैसे विस्मृत,

 बिन तेरे लगे शून्य धरिणी॥


सतत प्रवाह महासागर सा,

आँचल विस्तार गगन जैसा।

आगन्तुक का स्वागत करती,

आतिथेय कहाँ होगा ऐसा ॥


धर्म संस्कृति आचार-विचार,

कोटिशः कण्ठ चिर संगिनी है।

भारत भू की भाषा महान,

हिन्दी मेरी अभिव्यक्ति है॥


*

रविवार, 3 सितंबर 2023

“परिवर्तित परिवेश”

 

परिवर्तित परिवेश को

 देख कर हैरान हूँ

चाहे कोई कहे कुछ भी

मैं तुम्हारे साथ हूँ


मेरी नज़रों के समक्ष

समय के सागर में

अब तक…

बह गया कितना ही

 पानी..

जान कर अनजान हूँ


आस लिए चक्षुओं में

मायूसी का काम क्या

क्यों डरूँ किसी बात से 

 नहीं तेरा विश्वास क्या

घट रहा है क्या कहाँ पर

देख कर हैरान हूँ 


समर कितना शेष मेरा

तुम को तो है सब पता

कौन से दिन किस घड़ी में

होगी पूरी साधना

तुम से निर्मित विचित्र सृष्टि का

अति सूक्ष्म अनुभाग हूँ


***

मंगलवार, 15 अगस्त 2023

“त्रिवेणी”




तुम्हारे अपनेपन की महक सांसों में भरते ही

तन का रोम -रोम मन ही मन कह उठता है..,


जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ।


🍁


 💐🙏स्वतंत्रता दिवस की सभी विद्वजनों को हार्दिक बधाई 💐🙏

                   !!जय भारत!!

सोमवार, 3 जुलाई 2023

“शहर”


अर्वाचीन की गोद में

प्राचीन सजाये बैठा है 

मेरा शहर अपने भीतर

एक गाँव बसाये बैठा है


पौ फटने से पहले ही 

शुरू हो जाती है 

 परिंदों  की सुगबुगाह

पहले बच्चों से लगावट

फिर सतर्कता भरी हिदायत 

 

 घनी शाख़ों के बीच छिपी 

 सुर-सम्राज्ञी जैसे ही

 करती है आह्वान 

निकल पड़ते हैं सारे के सारे 

झुण्डों में…

लेकर नवउर्जित प्राण


अधमुंदी सी मेरी आँखों पर  

जैसे कोई शीतल जल 

छिड़कता है 

इस शहर के सीने में 

दिल नहीं एक सीधा-सादा 

गाँव धड़कता है 


***




बुधवार, 28 जून 2023

“सदा सर्वदा”



शीत-घाम की राह में ,

वक़्त का पहिया चला करे ।

 बन के साहस एक दूजे का ,

सदा सर्वदा साथ चले ॥


झंझावती तूफ़ानों  से ,

क्यो हम भला डरा करें ।

ईश नाम की नैया से ,

मझधारों को पार करें ॥

 

कजरारी काली रातों में ,

तारा बन कर जीया करे ।

वेदनाओं को भूल-भाल कर ,

ख़ुशियों वाली राह चले ॥


मौन संसृति में गूंज उठे जब ,

 रस आपूरित राग घनेरे ।

 साथ  हमारा सदा सर्वदा ,

 क्यों व्यथित मन प्राण तेरे ॥


जैसे तीव्र अग्नि  में तप कर ,

सोना खरा बना रहता  है ।

संघर्षों की राह जीत कर ,

मानव सफल हुआ करता है  ॥


***

मंगलवार, 23 मई 2023

“पल”



पल !

 मुझे भी चलना है 

तुम्हारे साथ.. 

तुम से कदम मिलाकर

 चल पड़ूँगी 

 इतना भरोसा तो है मुझे 

खुद पर..

मैं तुमसे बस तुम्हारे अस्तित्व का 

दशमांश चाहती हूँ 

वो क्या है ना..?

तुम्हारी ही तरह

 मेरे साझे  भी काम बहुत हैं

चलने से पहले.. 

चुन लेना चाहती हूँ अपनी ख़ातिर

रेशम से भी रेशमी 

रिश्तों के तार

फ़ुर्सत में उन्हें सुलझा कर

 निहायत ही ..

खूबसूरत सी माला 

जो गूँथनी है ।


🍁

सोमवार, 1 मई 2023

“वितान”


वर्षों से

मन की अलगनी पर टंगे 

चंद विचार..

भूली भटकी सोच के

धागों में 

उलझे -पुलझे..

मुझसे अक्सर अपना 

वितान मांगते हैं

जी ने चाहा..

आपाधापी में गुजरते

 वक़्त से 

कुछ लम्हें चुराऊँ 

और उतार दूं इन्हें 

धुंधले पड़े उपेक्षित से 

कैनवास पर..

इनको भी दूं

 तितलियों से उड़ने वाले

 रंगीन पंख ..

मगर हमेशा मन चाहा

कहाँ होता है  ?

बंधनों के आदी 

कहाँ समझते हैं 

पंखों वाली

 चपलता-चतुरता..

पा कर स्वतंत्रता 

 पहली ही स्वच्छन्द उड़ान में

जा उलझते हैं..

गुलाब भरी टहनियों के

आँगन में ।


*