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मंगलवार, 14 मार्च 2023

“मैत्री”


सूरज की सोहबत में

लहरों के साथ दिन भर

गरजता उफनता रहा 

समुद्र ..

साँझ तक थका-मांदा 

जलते अंगार सा वह जब

जाने को हुआ अपने घर

 तो..

बिछोह की कल्पना मात्र से ही

बुझी राख सा धूसर 

हो गया सारे दरिया का

 पानी …

चलते -चलते मंद स्मित के साथ 

सूरज ने स्नेहिल सी सरगोशी की

बस..

रात , रात की ही तो बात है 

मैं फिर आऊँगा

माणिक सी मंजूषा में कई रंग लिए

कल..

हम फिर से निबाहेंगे वही

अनादि काल से चली आ रही 

 परिपाटी ।


***

शुक्रवार, 3 मार्च 2023

“त्रिवेणी”


आँगन की माटी और छत की मुँडेरों से

गौरैयाओं के परिवार कहीं खो गए है ..,


लुप्त प्रजाति की सूची में प्रेम अब सबसे ऊपर है 

                  

🍁


फ़ुर्सत के पलों में तेरे गली-कूचों में 

भटकता फिरता है़ ख़ामोश मन..,


उम्र भर के नेह की बात जो ठहरी ।


🍁


तुमसे मिलना ख़्वाबों में ही हुआ करेगा

बिछड़ते वक़्त यह सोचा नहीं था..,


मुद्दतें हुईं अपने बीच के सभी पुल ढहे ।


🍁


सोमवार, 20 फ़रवरी 2023

ऐसा न था नाम कोई..,


आ गई फिर से दुबारा,

भूली बिसरी याद कोई।

कह सके हम जिसको अपना,

ऐसा न था नाम कोई॥


सपनों की सी बात लगती,

 वे आंगन वे गली-कूँचे।

देख कर अब लोग हम से,

नाम के संग काम पूछे॥

स्वजनों से दूर जा कर,

स्वयं की पहचान खोई।

कह सके हम जिसको अपना,

ऐसा न था नाम कोई॥


अल्हड़ हँसी से गूँज उठते,

आँगन , छज्जे और चौबारे।

मक्कड़जालों से भरे हैं,

जीर्ण शीर्ण सब हुए बेचारे॥

धुआँ- धुआँ सा हो गया मन,

आँखें लगती खोई-खोई।

कह सके हम जिसको अपना, 

ऐसा न था नाम कोई॥


***

बुधवार, 1 फ़रवरी 2023

“पुनरावृत्ति”

 


कई बार बीते लम्हों की

 पुनरावृत्ति

समय की उस

 दहलीज़ पर 

ला खड़ा करती है 

इन्सान को 

जहाँ वह कल को आज के साथ जीता 

वक़्त के साथ 

तत्वचिन्तक बन जाता है 

अतीत के गर्भ में जब 

क्षोभ आँसुओं के सागर के साथ 

एकमेक हो

 बहते सोते सा उबल पड़ा था

तब धीरज ने धीरे से कहा -

“खारे सागर के उस पार मीठे पानी का दरिया बहता है”

लेकिन 

आज का सच कहता है कि-

“सबके दिलों में अपने -अपने “अचल” बसते हैं”

जो दरकते हैं

 तो तकलीफ़ों के साथ 

कोरी टीस का ही सृजन करते हैं ॥


***




गुरुवार, 26 जनवरी 2023

“प्रभात बेला”

 


ऊषा रश्मि  की चंचल चितवन,

देख धरा मुस्कुराई ।


सिमटी - ठिठुरी तुषार चादर,

रवि ने ली अंगड़ाई ।


भ्रमर पुंज की गुनगुन सुनकर,

कलियाँ भी इठलाई ।


द्विज वृन्दों की मिश्रित सरगम,

नव जागृति ले लाई ।


विटप ओट कूदा मृग शावक,

पात शाख लहराई ।


तीखी तीर सी शीत समीरण,

धूप कुनकुनी छाई ।


गणतन्त्र की बेला अति शुभ, 

साथी बहुत बधाई ।


🍁


🌹🙏गणतन्त्र दिवस एवं बसन्त पञ्चमी की हार्दिक

शुभकामनाएँ 🌹🙏

जय हिन्द !! जय भारत !!


गुरुवार, 19 जनवरी 2023

“धूप”

हाथ बढ़ा कर 

तुषार की मलमल सी

 चादर से ..,

छन कर आती

उजली हँसी सी धूप को

 अँजुरी में भर कर 

रखना तो चाहती हूँ अपने आस-पास

लेकिन..,

भोर की भाग-दौड़

और व्यस्त सी दिनचर्या से

चुरा के फ़ुर्सत के दो पल

मैं जब तक..,

पहुँचती हूँ खिड़की के पास

 तब तक ..,

वह भी नाराज सखी सी 

चली जाती है 

इमारतों के झुण्ड

या फिर ..,

पेड़ों के झुरमुट की ओट में ..॥ 


***



रविवार, 8 जनवरी 2023

“क्षणिकाएँ”


लोकल ट्रेन के मुसाफ़िरों की तरह

इमारतों की भीड़ में

खड़े हैं कुछ पेड़ 

किंकर्तव्यविमूढ़ और सहमे से

बढ़ती भीड़ को देख कर

तय नहीं कर पा रहे कि अब 

कितना और सिमटे ॥


***


अक्सर मैं 

हाथ की लकीरों में

तुम्हें ढूँढा करती हूँ 

क्या पता …,

गूगल मैप की तरह इनमें 

तुम्हारी कोई 

निशानदेही कहीं मिल ही जाए ॥


***


चाँद भी रचता है 

कविताएं..

जब धवल चाँदनी में लिपटा

उतरता है , 

नीलमणि सी जलराशि में

तब ..

लहर लहर में 

खिल उठते हैं 

नीलकमल सरीखे शब्द ॥


***