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सोमवार, 27 नवंबर 2023

“क्षणिकाएँ”

“स्त्रियाँ”


अपनी उपस्थिति 

दर्ज करवाने की चाह में कि - 

“मैं भी हूँ ..”,

 उनका मौन मुखर 

होते होते रह जाता है 

और..,

अवसर मिलने तक

अभिव्यक्ति गूंगेपन का

सफ़र तय कर लेती है 

 

*


“प्रेम”

 

भग्नावशेषों और चट्टानों 

की देह पर अक्सर 

उगा दीखता है प्रेम

सोचती हूँ…,

अमरता की चाह में

 अपने ही हाथों प्रेम को

लहूलुहान..,

 कर देता है आदमी


*

शनिवार, 4 नवंबर 2023

“महक”


नींबू की पत्तियों की महक थी

 या...,

भूरी बालू  मे पड़ी  सावनी रिमझिम की

हाथ में खुरपी थामे 

वह समझ नहीं पाई


तभी एक जोड़ी निर्विकार आँखों ने 

मानो …,

मन ही मन सरगोशी की

सुनो ! 

इस पेड़ के नींबू तुम्हारे गाँव आया करेंगे 

तुम्हें बहुत पसन्द है ना..?


मन की बात पर

मन ही मन यक़ीन कर

वह आसमान की तरफ़ मुँह कर के

मुस्कुरा दी..,


सावन यूँ ही

आते-जाते रहे..,

नींबू के साथ उसकी पत्तियों का

 सौंधापन भी वैसे ही 

 महकता रहा ..,


मगर सुना है !

तब से..

 उसने अपने  खाने की थाली से

नींबू का स्वाद  हटा दिया है ।


***

सोमवार, 16 अक्तूबर 2023

“त्रिवेणी”

महंगाई के ग्राफ़ सा बढ़ता शहर और

कहीं किसी कोने से गुजरती एक कच्ची सी गली..,


न जाने कितने गाँव समाये है इसके वजूद में ।


***


जीवन की धुरी होने के बाद भी

न जाने क्यों ठहरी ठहरी लगती हैं…,


स्त्रियाँ मुझे झील सरीखी लगती हैं ।


***


विषम समय में मित्र से बड़ा कोई शत्रु 

और शत्रु से बड़ा कोई मित्र नहीं होता..,


गहरे भेदी आपद में दुख का कारण बनते हैं ।


***

रविवार, 1 अक्तूबर 2023

“क्षणिकाएँ “

निरभ्र गगन में..,

 अपनी धुन में मगन

वह अकेला ही..,

भर रहा था  परवाज़ें 

देखते ही देखते..,

साथी जुड़ते चले गए 

और..,

कारवाँ बनता गया 


*


सुना है…,

उनकी लिस्ट में अपना

नाम नहीं है 

 दुनियादारी की परिपाटी 

कहती है कि..,

रस्म अदायगी तो अब

अपनी तरफ से भी बनती है 

निभाने की परम्परा 

सभ्य होने की परिचायक है ।


*


अपरिचित आंगन में

गुलाब की कलम सी हैं

लड़कियाँ..,

जमीन से जुड़ाव में

थोड़ा वक्त लगता है 


*

गुरुवार, 14 सितंबर 2023

“अभिव्यक्ति”

 

मेरे चिन्तन की प्रथम किरण, 

हिन्दी भाषा सर्वस्व मेरी।

“माँ” स्वरूपा प्रथम उच्चारण,

जननी व बाल सखी मेरी॥


आंग्ल हुए जब शीश किरीट,

व्यापारी के छद्म वेष में।

आपद में बनी संगिनी तुम,

कष्ट हारिणी संवाद सूत्र में॥


 आर्यावर्त का रोम रोम,

आजन्म रहेगा तेरा ऋणी।

उपकार करें कैसे विस्मृत,

 बिन तेरे लगे शून्य धरिणी॥


सतत प्रवाह महासागर सा,

आँचल विस्तार गगन जैसा।

आगन्तुक का स्वागत करती,

आतिथेय कहाँ होगा ऐसा ॥


धर्म संस्कृति आचार-विचार,

कोटिशः कण्ठ चिर संगिनी है।

भारत भू की भाषा महान,

हिन्दी मेरी अभिव्यक्ति है॥


*

रविवार, 3 सितंबर 2023

“परिवर्तित परिवेश”

 

परिवर्तित परिवेश को

 देख कर हैरान हूँ

चाहे कोई कहे कुछ भी

मैं तुम्हारे साथ हूँ


मेरी नज़रों के समक्ष

समय के सागर में

अब तक…

बह गया कितना ही

 पानी..

जान कर अनजान हूँ


आस लिए चक्षुओं में

मायूसी का काम क्या

क्यों डरूँ किसी बात से 

 नहीं तेरा विश्वास क्या

घट रहा है क्या कहाँ पर

देख कर हैरान हूँ 


समर कितना शेष मेरा

तुम को तो है सब पता

कौन से दिन किस घड़ी में

होगी पूरी साधना

तुम से निर्मित विचित्र सृष्टि का

अति सूक्ष्म अनुभाग हूँ


***

मंगलवार, 15 अगस्त 2023

“त्रिवेणी”




तुम्हारे अपनेपन की महक सांसों में भरते ही

तन का रोम -रोम मन ही मन कह उठता है..,


जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ।


🍁


 💐🙏स्वतंत्रता दिवस की सभी विद्वजनों को हार्दिक बधाई 💐🙏

                   !!जय भारत!!