संभल कर चल !
सांझ के साये में...,
सांझ के साये में
घूमते हैं नर-पिशाच
तेरे संभले डग
और तेरी बुद्धिमता…,
तेरा रक्षा कवच है
खुद पर कर यकीन
तेरा यकीन ही
देगा तुझे ताकत
महिषासुरमर्दिनी सी …,
जानती तो है तू !
दोधारी तलवार है
तेरी जिन्दगी…
अबला है तो...
रोती क्यों हैं ?
सबला है तो
बेलौस क्यों है ?
शतरंज की बिसात
जैसी है जिन्दगी
जरा सी अनदेखी
पलट देती है बिसात
चंद हमदर्दी के अल्फाज़
और फिर…
वही ढाक के तीन पात
★★★