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मंगलवार, 21 जनवरी 2025

“क्षणिकाएँ”

समय रहते मोह भंग का

अहसास 

हो जाना अच्छी बात है  इससे 

शेष सफ़र

तय करने में आसानी रहेगी 

आख़िरकार ..,

 मंज़िल पाने का लक्ष्य भी तो

 जन्म के साथ ही

 तय हो जाया करता है 


*

तथ्य चाहे जो भी रहे हो 

सत्य का शाश्वत होना

जग ज़ाहिर सी बात है

 फिर भी.., न जाने क्यों ..?

इस फ़लसफ़े को 

नज़रअंदाज़ कर के

जीने की राह..,

आसान हो जाया करती है 


*

बुधवार, 1 जनवरी 2025

त्रिवेणी ( समय )

जीवन की राहों में कड़वी निम्बौरियाँ ही नहीं होती

 मीठे फलों की झरबेरियाँ भी होती हैं  बस ..,


 समय की आँच पर पके क्षण धैर्य की माँग करते हैं ।


🍁


तुम आए ..,साथ रहे.., किसी ने तुम्हे समझा.., किसी ने नहीं , 

तुम्हे अलविदा कह , तुम्हें ही बाँट , तुम्हारा स्वागत करते हैं…,


समय तुम बहुत अच्छे हो , हमारी ग़लतियाँ माफ़ करते हो ।


🍁

 

सोमवार, 30 दिसंबर 2024

“दिल चाहता है”

बर्फ गिरी है पहाड़ों पर..,

अपनी गठरी की गाँठ

 खोल कर रख दी 

कुदरत ने…,

अतिथियों के स्वागत में

चीड़ और सनोबर

बर्फ से ढक कर भी

 इठला रहे हैं 

कहीं-कहीं…,

ब्यूस की टहनियाँ 

मुस्कुरा कर हिला रही है 

डाली रूपी हाथ 

फ़ुर्सत कहाँ हैं खुद पर जमी 

बर्फ हटाने की..,

यह काम तो अपने आप कर देंगी

हवाएँ..,

दिल चाहता है कि

इन्सान और प्रकृति का रिश्ता 

अनन्त काल तक यूँ ही

चलता रहे …,!

 

🍁

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2024

“क्षणिकाएँ“

धूप खुल कर हँसी हैं

कई दिनों के बाद 

ठिठुरन से अकड़ी कोंपलें 

अभी-अभी अँगड़ाई के मूड में 

आईं ही थीं कि..,

वह नटखट लड़की सी 

जा छिपी बादल की गोद में 

🍁

माना खूबसूरती में गुलाब का 

कोई सानी नहीं ..,

मगर उसकी महक अब

कहीं खो सी गई है

 शायद इसीलिए आजकल

अपनी आँखें…,

गुलमोहर को ढूँढती हैं 

🍁



मंगलवार, 26 नवंबर 2024

“वक़्त”

मैंने बचपन से कहा -

“चलो ! बड़े हो जाए !”

उसने दृढ़ता से जवाब दिया - 

ऐसा मत करना ! 

अगर हमारे बीच 

बड़प्पन की दरार आई तो 

एक दिन खाई बन जाएगी 

 तुम्हें पता तो है -

खाई को पाटना तुम्हारे और मेरे लिए

कितना मुश्किल हो जाएगा 

क्योंकि..,

“गया वक़्त दुबारा नहीं लौटता ।”


🍁


शुक्रवार, 15 नवंबर 2024

हाइकु

क्षिlतिज पार -

शक्रचाप को देख 

रवि मुस्काया ।



हरी दूब में -

तिनके बटोरती

नन्ही गौरैया ।



रिक्त गेह में -

नीम पर चहके

नव जीवन ।



प्यासा पपीहा -

ताके नभ की ओर

भरी धूप में ।



ढलती साँझ -

सागर की गोद में

सोया सूरज ।


***

बुधवार, 6 नवंबर 2024

“जीवन “



कभी-कभी सोचती हूँ 

जीवन क्या है ?

एक रंगहीन सा 

ख़ाली कैनवास …,

जिसको जन्म से साथ लेकर 

पैदा होता है इन्सान

समय के साथ..,

अनुभवों से लबरेज़ 

अनगिनत रंग भरी  कटोरियाँ 

उम्र भर..,

इसके  फलक पर निरन्तर 

ढुलकती रहती हैं 

और फिर…,

तैयार होती है -

कुदरत की अद्भुत,अकल्पनीय 

आर्ट-गैलरी ..,

जिसमें समाहित है 

अपने आप में विविधताओं से परिपूर्ण 

अनेकों लैण्डस्केप..,

 प्रकृति में यह प्रक्रिया अनवरत

बिना रूके , बिना गतिरोध 

चलती रहती है 

शायद..,

इसी का नाम जीवन है 


***