एक अहसास..
सर्द सी छुवन लिये
स्वेटर के रेशों को चीर
समा गया रूह में
सिहरन सी भर कर
न्यूज़ में..
अभी-अभी पढ़ा-
पहाड़ों पर बर्फ़ गिरी है
तभी मैं कहूँ ...
अंगुलियाँ और नाक
यूं सुन्न से क्यों है...
छत पर हवाओं में
घुली ठंडी धूप में
नजर पसारी
तो पाया
गेहूँ की बालियों पर
भी आज…
बरफ की परत जमी है
और सरसों का
मुख मंडल ज़र्द
मगर..
धुला-धुला सा है
लगता तो यहीं है
इस बार के बसंत ने
दस्तक दे दी है
शीत के दरवाजे पर
अचानक ...
एक सूर्य किरण सी
हूक जागी मन में
एक ख़्वाहिश
कि...
कुदरत की
बर्फ़ीली परतों सी
अंतस् में जमी परतें भी
इस बार..
पिघल ही जायें
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