अभी-अभी तो राह मिली थी
एक-दूजे को जानें कितना
एक जन्म छोटा लगता है
नेह गहरा सागर के जितना
अनुमानों की राह पकड़ के
पर्वत पार करेंगे कैसे
चंद दिनों के संग साथ से
हमराही हम होंगे कैसे
घर- आंगन के हर कोने से
स्मृतियों के तो तार जुड़े है
कौन तार गठरी में बाँधू
सब के सब अपने लगते हैं
इसमें अलग बात कौन सी
दुनिया की यह रीत पुरानी
कठिन लगी होगी यह मुझको
पर जीवन की यही कहानी
***
अनुमानों की राह पकड़ के
जवाब देंहटाएंपर्वत पार करेंगे कैसे
चंद दिनों के संग साथ से
हमराही हम होंगे कैसे
बहुत सुंदर भवाभिव्यक्ति मीना जी,सादर नमन
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार कामिनी जी । सादर वन्दे!
हटाएंबहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सर !
जवाब देंहटाएंजी हाँ मीना जी। जीवन की कहानी है तो यही।
जवाब देंहटाएंसृजन को सार्थक करती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार जितेन्द्र जी !
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (28-9-21) को "आसमाँ चूम लेंगे हम"(चर्चा अंक 4201) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
सृजन को मंच की चर्चा में सम्मिलित कर मान देने के लिए हार्दिक आभार कामिनी जी!
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना मंगलवार २८ सितंबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
पाँच लिंकों का आनन्द पर सृजन को साझा कर मान देने के लिए हार्दिक आभार श्वेता जी!
हटाएंघर- आंगन के हर कोने से
जवाब देंहटाएंस्मृतियों के तो तार जुड़े है
कौन तार गठरी में बाँधू
सब के सब अपने लगते हैं
अत्यंत हृदयस्पर्शी पंक्तियों से सुसज्जित रचना..
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार.
हटाएंवाह बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार.
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सर !
हटाएंशानदार लेखन।
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार संदीप जी!
जवाब देंहटाएंअनुमानों की राह पकड़ के
जवाब देंहटाएंपर्वत पार करेंगे कैसे
चंद दिनों के संग साथ से
हमराही हम होंगे कैसे
बस चंद दिनों का संग साथ ही है
यही है जीवन की कहानी...प्रेम में हैं तो छोटी सी लगती और नफरतों और मुसीबतों में पल भी भारी पड़ता।
बहुत ही हृदयस्पर्शी लाजवाब सृजन।
वाह!!!
घर- आंगन के हर कोने से
जवाब देंहटाएंस्मृतियों के तो तार जुड़े है
कौन तार गठरी में बाँधू
सब के सब अपने लगते हैं...जीवन के अहसासों का अनूठा और सार्थक मंथन।
जवाब देंहटाएंघर- आंगन के हर कोने से
स्मृतियों के तो तार जुड़े है
कौन तार गठरी में बाँधू
सब के सब अपने लगते हैं... बहुत सुंदर सृजन।
सादर
बहुत सुंदर ❤️
जवाब देंहटाएंसुंदर, सार्थक रचना !........
जवाब देंहटाएंMere Blog Par Aapka Swagat Hai.
बहुत ही हृदयस्पर्शी लाजवाब सृजन मीना जी
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