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रविवार, 26 सितंबर 2021

अभी-अभी...

                     


अभी-अभी तो राह मिली थी

एक-दूजे को जानें कितना

एक जन्म छोटा लगता है

 नेह गहरा सागर के जितना


अनुमानों की राह पकड़ के

पर्वत पार करेंगे कैसे

चंद दिनों के संग साथ से

हमराही हम होंगे कैसे


घर- आंगन के हर कोने से 

स्मृतियों के तो तार जुड़े है

कौन तार गठरी में बाँधू

सब के सब अपने लगते हैं


इसमें अलग बात कौन सी

दुनिया की यह रीत पुरानी

कठिन लगी होगी यह मुझको

पर जीवन की यही कहानी


***

24 टिप्‍पणियां:

  1. अनुमानों की राह पकड़ के

    पर्वत पार करेंगे कैसे

    चंद दिनों के संग साथ से

    हमराही हम होंगे कैसे

    बहुत सुंदर भवाभिव्यक्ति मीना जी,सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार कामिनी जी । सादर वन्दे!

      हटाएं
  2. जी हाँ मीना जी। जीवन की कहानी है तो यही।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सृजन को सार्थक करती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार जितेन्द्र जी !

      हटाएं
  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (28-9-21) को "आसमाँ चूम लेंगे हम"(चर्चा अंक 4201) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सृजन को मंच की चर्चा में सम्मिलित कर मान देने के लिए हार्दिक आभार कामिनी जी!

      हटाएं
  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार २८ सितंबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. पाँच लिंकों का आनन्द पर सृजन को साझा कर मान देने के लिए हार्दिक आभार श्वेता जी!

      हटाएं
  5. घर- आंगन के हर कोने से

    स्मृतियों के तो तार जुड़े है

    कौन तार गठरी में बाँधू

    सब के सब अपने लगते हैं

    अत्यंत हृदयस्पर्शी पंक्तियों से सुसज्जित रचना..

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार.

      हटाएं
  6. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार.

      हटाएं
  7. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार संदीप जी!

    जवाब देंहटाएं
  8. अनुमानों की राह पकड़ के

    पर्वत पार करेंगे कैसे

    चंद दिनों के संग साथ से

    हमराही हम होंगे कैसे

    बस चंद दिनों का संग साथ ही है
    यही है जीवन की कहानी...प्रेम में हैं तो छोटी सी लगती और नफरतों और मुसीबतों में पल भी भारी पड़ता।
    बहुत ही हृदयस्पर्शी लाजवाब सृजन।
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
  9. घर- आंगन के हर कोने से
    स्मृतियों के तो तार जुड़े है
    कौन तार गठरी में बाँधू
    सब के सब अपने लगते हैं...जीवन के अहसासों का अनूठा और सार्थक मंथन।

    जवाब देंहटाएं

  10. घर- आंगन के हर कोने से

    स्मृतियों के तो तार जुड़े है

    कौन तार गठरी में बाँधू

    सब के सब अपने लगते हैं... बहुत सुंदर सृजन।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  11. सुंदर, सार्थक रचना !........
    Mere Blog Par Aapka Swagat Hai.

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत ही हृदयस्पर्शी लाजवाब सृजन मीना जी

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"