झरें होंगे चाँदनी मे ,
हरसिंगार...
निकलेंगे अगर घर से,
तो देख लेंगे ।
नीम की टहनी पर,
झूलता सा चाँद..
मिला फिर से अवसर,
तो देखने की सोच लेंगे।
शूल से चुभें,
और द्वेष से सने..
आ गिरे सिर पर ,
वो पल तो झेल लेंगे।
जिन्दगी छोटी सी,
और उलझनें हजार..
फुर्सत से बैठेंगे कभी,
तो गिरहें खोल लेंगे।
कैसे करनी है पार,
जीवन की नैया...
बनेंगे मांझी और सोचेंगे,
तो हल खोज लेंगे।
***
【चित्र : गूगल से साभार】
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (31-03-2021) को "होली अब हो ली हुई" (चर्चा अंक-4022) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
मित्रों! कुछ वर्षों से ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। परन्तु प्रसन्नता की बात यह है कि ब्लॉग अब भी लिखे जा रहे हैं और नये ब्लॉगों का सृजन भी हो रहा है।आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके। चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं हो भी नहीं रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
चर्चा मंच पर कल की प्रस्तुति में रचना सम्मिलित करने हेतु सादर आभार सर 🙏
हटाएं
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 31 मार्च 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
पांच लिंकों का आनन्द पर रचना साझा करने हेतु हार्दिक आभार पम्मी जी 🙏
हटाएंवाह 👌
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार शिवम् जी।
हटाएंवाह!हर बंद गज़ब का लिखा है।
जवाब देंहटाएंजिन्दगी छोटी सी,
और उलझनें हजार..
फुर्सत से बैठेंगे कभी,
तो गिरहें खोल लेंगे।
कैसे करनी है पार,
जीवन की नैया...
बनेंगे मांझी और सोचेंगे,
तो हल खोज लेंगे।..वाह!
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से हार्दिक आभार अनीता जी।
हटाएंझरें होंगे चाँदनी मे ,
जवाब देंहटाएंहरसिंगार...
निकलेंगे अगर घर से,
तो देख लेंगे ।
बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ। बिल्कुल सहमत हूँ कि हमारी जिज्ञासा ही नहीं जगती कभी कि किसी की चंद तारीफ करें और जरा सी जीवंतताओं को उकेरें।
आनन्द आ गया।।।।
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया। ।।।
सृजन को सार्थकता प्रदान करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभारी हूँ आदरणीय 🙏
हटाएंजिन्दगी छोटी सी,
जवाब देंहटाएंऔर उलझनें हजार..
फुर्सत से बैठेंगे कभी,
तो गिरहें खोल लेंगे।...बहुत सुंदर, भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से हार्दिक आभार
हटाएंजिज्ञासा जी ।
जिन्दगी छोटी सी,
जवाब देंहटाएंऔर उलझनें हजार..
फुर्सत से बैठेंगे कभी,
तो गिरहें खोल लेंगे।
और मांझी बन जीवन की नैया पार कर ही लेंगे ।।
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ।
सृजन को सार्थकता प्रदान करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभारी हूँ आ.संगीता जी🙏
हटाएंवाह! मीना जी ,कितना खूबसूरत सृजन!नमन आपकी लेखनी को 🙏🏻
जवाब देंहटाएंफुर्सत में बैठेगें कभी तो ,गिरहें खोल लेगें ...वाह !अद्भुत ..मन को बहुत भा गई आपकी रचना ।
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली । हृदयतल से आभार शुभा जी 🙏
हटाएंबहुत बहुत सुंदर मीना जी, इतनी प्यारी उम्दा ग़ज़ल नुमा रचना मन विभोर हो गया ।
जवाब देंहटाएंअभिनव अभिराम।
सृजन को सार्थकता प्रदान करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार कुसुम जी ।
हटाएंवाह.....लाज़बाब भावपूर्ण सृजन ,ढेरों शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से हार्दिक आभार
हटाएंआ. उर्मिला जी ।
वाह मीना जी , बहुत खूब लिखा कि ''शूल से चुभें,
जवाब देंहटाएंऔर द्वेष से सने..
आ गिरे सिर पर ,
वो पल तो झेल लेंगे।''...सकारात्मकता से ओतप्रोत रचना
आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ..हार्दिक आभार अलकनंदा जी।
हटाएंज़िन्दगी मिएँ जो होना होता है वो होता है ... हरसिंगार भी झरते हैं ... जीवन पार भी होता है ...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना ...
सृजन का मर्म स्पष्ट करती प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार नासवा जी ।
हटाएंकैसे करनी है पार,
जवाब देंहटाएंजीवन की नैया...
बनेंगे मांझी और सोचेंगे,
तो हल खोज लेंगे।
सुन्दर कविता....
हार्दिक आभार विकास जी ।
हटाएंजिन्दगी छोटी सी,
जवाब देंहटाएंऔर उलझनें हजार..
फुर्सत से बैठेंगे कभी,
तो गिरहें खोल लेंगे।
सार्थक सृजन...
यही तो ज़िन्दगी है, हज़ार उलझनों वाली छोटी सी ज़िन्दगी.... गिरहें खोलने की फ़ुरसत चाह कर भी नहीं मिलती...
शुभकामनाओं सहित
सस्नेह,
डॉ. वर्षा सिंह
आभारी हूँ वर्षा जी..आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से लेखनी का मान बढ़ा ।
हटाएंहर पंक्ति सुंदर। आशा से ओत-प्रोत सृजन। इसके लिए आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंसृजन को सार्थकता प्रदान करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से विरेन्द्र जी।
हटाएंअन्यतम अंतर्दृष्टि अहेतुकी कृपा से ही प्राप्त होती है जो इतनी सूक्ष्मता से देख पाये और दिखा भी दे । बहुत ही सुन्दर कथ्य और शिल्प ।
जवाब देंहटाएंआपकी मान सम्पन्न प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ अमृता जी! हृदय की गहराईयों से असीम आभार ।
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से हार्दिक
हटाएंआभार सर.
झरें होंगे चाँदनी मे ,
जवाब देंहटाएंहरसिंगार...
निकलेंगे अगर घर से,
तो देख लेंगे ।
नीम की टहनी पर,
झूलता सा चाँद..
मिला फिर से अवसर,
तो देखने की सोच लेंगे।
शूल से चुभें,
और द्वेष से सने..
आ गिरे सिर पर ,
वो पल तो झेल लेंगे।
जिन्दगी छोटी सी,
और उलझनें हजार..
फुर्सत से बैठेंगे कभी,
तो गिरहें खोल लेंगे।
कैसे करनी है पार,
जीवन की नैया...
बनेंगे मांझी और सोचेंगे,
तो हल खोज लेंगे।
क्या बात है मीना जी, लाजवाब , ये लेंगे हमारी स्वभाविक सी आदत है, जिसे आपने बहुत ही सलीके के साथ बयां कर दिया,तस्वीर पर ज्यो नजर पड़ी मुझे मेरी याद आई, शरद ऋतु के आने का संकेत है ये हरसिंगार ,बांग्ला भाषा में इसे शिउली कहते है, ये मेरी बड़ी बेटी का नाम है, मेरे बगीचे मे इसके चार पाँच पेड़ है बड़े बड़े, मै सुबह रोज 5-6 बजे फूल तोड़ने अपने बगीचे मे जाती हूँ ,तब ये फूल आपकी तस्वीर की तरह ही घास पर बिखरे रहते है , धूप की रौशनी पड़ते ही ये तुरंत झरने लगते है , इसे बिनने और तोड़ने में घण्टा लग जाता हैं ,मेहनत पड़ती है, मगर सुबह रंगबिरंगे फूलों के साथ बिताया हुआ समय भी खूबसूरत होता है, बहुत ही अच्छा लगा, अपना सा लगा हरसिंगार की पोस्ट देखकर ,मेरी भी यादें जुड़ गई आपकी इस रचना से, हार्दिक बधाई, हार्दिक आभार मीना जी,
शिउली..मेरा भी पसंदीदा नाम है ज्योति जी ! बैंगलोर में जहाँ मैं रहती हूँ वहाँ पेड़ है इसके और अक्सर मॉर्निग वॉक के समय यह दृश्य जो आपने वर्णित किया है सर्दियों में दिखता है । कोरोना के कारण इस सर्दी में बहुत कमी खली इनको देखने की । आपने दिल की बात साझा की ..अपने आपको गर्वित महसूस करती हूँ । आभार शब्द कम लगता है आपके स्नेह के आगे🙏 अब की सर्दियों में जब इन्हें देखूंगी तब आप भी अपने बगीचे के साथ याद आएंगी🙏😊
हटाएंमैं भी मीना जी जब भी शिउली के पेड़ की ओर देखूँगी आप की इस खूबसूरत रचना के साथ आपको भी याद करूँगी, स्नेह को किसी औपचारिकता की जरूरत नहीं ,बस उसे विश्वास चाहिए, वो आप की बातों में स्पष्ट रूप से झलक रहा है ,बेहद खुश हूँ, ये स्नेह यू ही बना रहे। ये दुनिया वाकई खूबसूरत है, हरसिंगार की तरह
हटाएंशब्द ही नहीं हैं ज्योति जी आपके नेह के आगे जो शिउली के रुप में पाया है आपसे.. अभिभूत हूँ आपका अपनत्व पा कर🙏🌹🙏
हटाएंनीम की टहनी पर,
जवाब देंहटाएंझूलता सा चाँद..
बहुत खुब दीदी
हार्दिक आभार अनुज ।
हटाएंगिरहें खोलने की फ़ुरसत मिलती नहीं है मीना जी आज की मसरूफ़ ज़िन्दगी में, ऐसी फ़ुरसत तो निकालनी पड़ती है । छोटे-छोटे पदों वाली इस कविता में आपने (सम्भवतः) समाज की वर्तमान मानसिकता पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है । देखने में तो कविता सरल ही है पर इसके भाव को ठीक से समझने के लिए मुझे फ़ुरसत निकालनी पड़ेगी । आप अत्यन्त प्रतिभाशालिनी हैं । जब भी आपकी कोई रचना पढ़ता हूँ, कुछ-न-कुछ सीखता ही हूँ । अभिनंदन आपका ।
जवाब देंहटाएंआपका सहृदय बड़प्पन है जितेन्द्र जी मान भरे उद्गारों के रूप में🙏 सृजन सार्थक हुआ आप जैसे गुणी व्यक्ति की सराहना से । हृदय की असीम गहराइयों से बहुत बहुत आभार 🙏
हटाएं