Followers

Copyright

Copyright © 2023 "मंथन"(https://www.shubhrvastravita.com) .All rights reserved.

रविवार, 4 अप्रैल 2021

कई दिनों से...

        

कई दिनों से...

अक्षरों के ढेरी से

 तलाश रही हूँ

कुछ अनकहा सा..

जिसमें भावों की

मज्जा का अभाव न हो

संवेदनाओं के

वितान में..

प्राणों का वास हो

भूसे के ढेर से

 सुई की तरह

 बस..

उन्हीं की खोज में हूँ

 ऐसे समय में

सिमट रहा है

 मन कच्छप सदृश

तृष्णा के 

अनन्त सागर से

नहीं जानती 

यह पड़ाव...

एकाग्र और स्थितप्रज्ञ

भाव का 

प्रार्दुभाव है 

या फिर..

उद्देश्यहीनता का 

अंतहीन सिलसिला

***

【चित्र : गूगल से साभार】

36 टिप्‍पणियां:

  1. सिमट रहा है

    मन कच्छप सदृश

    तृष्णा के

    अनन्त सागर से

    नहीं जानती

    यह पड़ाव...

    एकाग्र और स्थितप्रज्ञ

    भाव का

    प्रार्दुभाव है

    या फिर..

    उद्देश्यहीनता का

    अंतहीन सिलसिला, मन की सुंदर अनुभूतियों को शब्दों में बयां कर गई आपकी ये अनूठी रचना ।सादर नमन ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना भरी सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ।जिज्ञासा जी हार्दिक आभार आपका।

      हटाएं
  2. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से हार्दिक
      आभार सर।

      हटाएं
  3. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से हार्दिक
      आभार ज्योति जी।

      हटाएं
  4. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 04 अप्रैल 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" मेरे सृजन को शामिल करने के लिए सादर आभार यशोदा जी।

      हटाएं
  5. कई दिनों से...

    अक्षरों के ढेरी से

    तलाश रही हूँ

    कुछ अनकहा सा..

    जिसमें भावों की

    मज्जा का अभाव न हो

    संवेदनाओं के

    वितान में..

    प्राणों का वास हो

    भूसे के ढेर से

    सुई की तरह

    बस..

    उन्हीं की खोज में हूँ
    बहुत खूब कहा मीना जी,बेहतरीन रचना हमेशा की तरह , हार्दिक शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से स्नेहिल आभार ज्योति जी।

      हटाएं
  6. रचना मनन करने योग्य है मीना जी । मनन ही कर रहा हूं पढ़कर ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ..हृदयतल से आभार जितेन्द्र जी।

      हटाएं
  7. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से हार्दिक
      आभार शिवम् जी।

      हटाएं
  8. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 05-04 -2021 ) को 'गिरना ज़रूरी नहीं,सोचें सभी' (चर्चा अंक-4027) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चर्चा मंच पर मेरे सृजन को शामिल करने के लिए सादर आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह जी।

      हटाएं
  9. बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से स्नेहिल
      आभार अनीता जी।

      हटाएं
  10. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से हार्दिक
      आभार सवाई सिंह राजपुरोहित जी।

      हटाएं
  11. उत्तर
    1. आपकी प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ..हृदयतल से सादर आभार सर ।

      हटाएं
  12. वाह मीना जी...कुछ अनकहा सा..

    जिसमें भावों की

    मज्जा का अभाव न हो

    संवेदनाओं के

    वितान में..

    प्राणों का वास हो

    भूसे के ढेर से

    सुई की तरह

    बस..ये जो शब्द है ना 'बस' ..यही तो बस नहीं होता...बहुत खूब ल‍िखा मन को झंकृत करने वाला

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी उर्जावान प्रतिक्रिया सदैव मनोबल संवर्द्धन करती है अलकनंदा जी । हृदयतल से हार्दिक आभार ।

      हटाएं
  13. अंतहीन सिलसिला में ही बिना तलाशे मोती भी मिलता है इस कृति के सदृश । अति सुन्दर कथ्य और सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सराहना से सृजन को मान मिला और मुझे अपार हर्ष ।

      हटाएं
  14. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से हार्दिक
    आभार भारती जी!

    जवाब देंहटाएं
  15. आत्म मंथन करती नये चिंतन लिए सारगर्भित रचना मीना जी आपकी रचनाएं नाशक के तीर हैं।
    बहुत सुंदर सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  16. आपकी सुन्दर और स्नेहिल प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ कुसुम जी ! हार्दिक आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  17. नहीं जानती
    यह पड़ाव...
    एकाग्र और स्थितप्रज्ञ
    भाव का
    प्रार्दुभाव है
    या फिर..
    उद्देश्यहीनता का
    अंतहीन सिलसिला

    दुविधायुक्त असमंजस की मानसिक दशा का काव्यात्मक आख्यान... साधुवाद प्रिय मीना जी 🙏

    जवाब देंहटाएं
  18. वर्षा जी सृजन सार्थक हुआ आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया से
    हृदयतल से स्नेहिल आभार आपका🙏

    जवाब देंहटाएं
  19. कुछ कहा-कुछ अनकहा, मन की अनुभूतियों को शब्दों में पिरोया गया लाज़बाब सृजन मीना जी,सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से हार्दिक
      आभार कामिनी जी!

      हटाएं
  20. खुद से उलझते मन की प्रगाढ़ अनुभुतियों की सशक्त अभिव्यक्ति प्रिय मीना जी | अच्छा लगा पढ़कर | हार्दिक शुभकामनाएं आपके लिए |

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय रेणु जी सृजन सार्थक हुआ आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया से हृदयतल से स्नेहिल आभार आपका🙏

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"