सुख दुख का साझी
समय -घट
परछाई सा जीवन में
चलता रहा मेरे साथ
समय के साथ
पीछे रह गईं स्वाभाविक
प्रवृतियाँ..,
अंक में जुड़ते गए मौन और धैर्य
मेरे भीतर का अनुभूत
समय..,
दरिया बन बहता गया
सृजनात्मकता में
अक्षरांकन की इस यात्रा में
मेरा वजूद
कई बार रोया कई बार मुस्कुराया
काग़ज़ और कलम की
यायावरी में
कई पड़ावों के बाद जैसे मैंने
ख़ुद को खो कर खुद को पाया
***
बहुत सुंदर सफर , यूँही जारी रहे ...
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सहित सादर नमस्कार प्रिया जी !
हटाएंख़ुद को खोकर जो ख़ुद को पा लेता है फिर कुछ और पाने को नहीं रहता
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सहित सादर नमस्कार अनीता जी !
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