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शुक्रवार, 27 सितंबर 2019

"मुक्तक"

"मुक्तक"
( 1 )
मानव की यह आदत पुरानी है नई नहीं है ।।
सीखा नहीं कल से कुछ क्या ये सही है ।।
दिवास्वप्नों में खोया यह भी नही जानता ।
आने वाले कल की नींव आज पर धरी है ।।
(2)
तीखे तंज सहन करना सीख लोगे ।
समझो आधी दुनियां जीत लोगे ।।
वक्त सीखा देता है जीने का ढंग ।
मार्ग के कंटक भी स्वयं बीन लोगे ।।
(3)
सज़दे में झुकता सिर ऐसे शूरवीरों के आगे
कर देते तन-मन न्यौछावर मातृभूमि आगे
जन्म-मृत्यु के चक्र में बंधा हुआ हर कोई
मृत्यु भी नमन करती ऐसे वीरों के आगे
★★★

रविवार, 22 सितंबर 2019

"खुशी"

अपना वजूद भी इस दुनिया का एक हिस्सा है उस पल को महसूस करने की खुशी , आसमान को आंचल से बाँध लेने
का  हौंसला , आँखों में झिलमिल - झिलमिलाते  सपने और आकंठ हर्ष आपूरित आवाज़ -
                                        “ मुझे नौकरी मिल गई है , कल join करना है वैसे कुछ दिनों में exam भी हैं……, पर
मैं सब संभाल लूंगी।” कहते- कहते उसकी आवाज
शून्य में खो सी गई । मुझे खामोश देख
वो फिर चहकी - “ मुझे पता है आप
अक्सर मुझे लेकर चिन्तित होती हो , मैंंने सोचा सब से
पहले आप से खुशी बाँटू। “
                  मैं सोच रही थी अधूरी पढ़ाई , गोद में बच्चा , घर की जिम्मेदारी और ढेर सारे सामाजिक दायित्व । ये भी नारी का एक रुप है कभी बेटी , कभी पत्नि तो कभी जननी । हर रूप में अनथक परिश्रम करती है और अपना अस्तित्व कायम रखने के लिए अवसर की तलाश में रहती है ।अवसर मिलते ही पल्लवित होती है अपनी  पूर्ण सम्पूर्णता के साथ।
                   दमकते चेहरे और उसके बुलन्द हौंसलों को देखकर मुझे बेहद खुशी हुई और यकीन हो गया कि एक दिन फिर वह निश्चित रूप सेे इस से भी बड़ी खुशी मुझसे बाँट कर मुझे चौंका देगी ।

XXXXX

गुरुवार, 19 सितंबर 2019

"ठौर"

 
तिनका तिनका जोड़ 
तरु शाखाओं के बीच
बड़े जतन से उन्होंने
बनाया अपना घर

सांझ ढलते ही पखेरू
अपना घर ढूंढ़ते हैं
 यान्त्रिक मशीन ने
कर दी उनकी बस्ती नष्ट
टूटे पेड़ों को देख कर
विहग दुखित हो सोचते हैं

उनके घर की नींव पर
बहुमंजिल भवन बनेंगे
हर शाख घरों से पटी होगी
कंक्रीट के जंगल में
हर जगह मनु के घर होंगे

विकलता पर कर नियन्त्रण
पंछी दल चिन्तन करता है
सामर्थ्य हीन मानव
अपने दम पर कब पलता है
हम ढूंढे ठौर कोई
यह वही कदम धरता है 

सामर्थ्य सबल है अपना
हम और कहीं रह लेंगे
रहने दो इसे यहीं पर
हम नई ठौर कर लेंगे

★★★★★














               





                 














शुक्रवार, 13 सितंबर 2019

"खामोशी"

खामोशी का मतलब
बेज़ारी नही होता
और मूर्खता तो कभी नही
कुदरत ने  हमें बख़्शी है
बोलने के लिए एक जुबान
और सुनने को  दो कान

सुनना और सुन कर गुनना
अहम् अंश हैं जीवन के
नीरवता में फूटता संगीत
देता सीख व्यवहार की
और फूंकता है प्राण
सुप्तप्राय: नीरस मन में

एकांत की शांति में
 द्रुम-लताओं के बीच से
बहता मंद समीर
कानों में रस घोलता
पखेरुओं का मीठा कलरव
मोती सदृश बरखा की बूँदें
धरा पर जब
मद्धिम मद्धिम गिरती हैं
बस खामोशियाँ 
गुनगुनाने लगती हैं

★★★★★
(चित्र-गूगल से साभार)











शुक्रवार, 6 सितंबर 2019

"पहेली"

जिन्दगी की पहेली
रेशमी लच्छियों सी
उलझी-उलझी मगर
अहसासों में मखमली

पहेली तो पहेली है
जितना प्रयास करो
समझने और सुलझाने का
उलझती ही चली जाती है
उसके बाद इन्सान न तो
गौतम बुद्ध बन पाता है
और न आम इन्सान ही रह पाता है

गौतम बुद्ध….
वो तो सिद्धार्थ थे
राजा शुद्धोधन के पुत्र
रोज की रोटी की फिक्र से दूर…
वक्त ही वक्त था
चिन्तन और मनन की खातिर

आम आदमी के पास
चिन्तन-मनन की खातिर
वक्त कहाँ होता है ??
भागते-दौड़ते….
यूं ही कट जाती है जिन्दगी
गत और आगत की जुगत में

और हाँ… .,
वक्त जब हाथ में आता है
तो वक्त और जिन्दगी..
दोनों का छोर 
इन्सान के हाथों से
ना चाहते हुए भी
मुठ्ठी से बन्द बालू रेत सा
फिसल सा जाता है 

★★★★★












रविवार, 1 सितंबर 2019

"जीवन'

 
मीठे अहसास
ऊषा किरण 
खिलती कलियाँ
वर्षा की बूंदें
उगता सा जीवन
अभिनन्दन करना
सीखो ना ....

कभी खट्टा सा
कभी मीठा सा
कड़वेपन का
अहसास लिए
अनुभूत क्षणों का
                            मिश्रित स्वाद
कभी चखने से 
यूं डरो ना…

देखो सब के
अपने पल हैं
कुछ हँसते से
कुछ रूठे से
 लहरों जैसा
गिरता उठता
मेघपुष्प सा
है जीवन
बाँहों में इसे
समेटो ना….

सोचें मेरी कुछ
पगली सी
तुम कुछ भी कहो
पर अपनी सी
रो कर जी लो
या कि हँस कर
जीना होगा
तुम को जीवन
फिर हँस कर 
इसको जी लो ना….

★★★★★