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मंगलवार, 29 मार्च 2022

न जाने क्यों…

 


न जाने क्यों…

तुम्हारी याद मेरे  मन के

 दरवाज़े पर

पछुआ पवन सी

दस्तक देने लगी है 

तुम्हारे घर का आंगन

नींद में भी

मेरी स्मृतियों में 

जीवन्त हो उठता है


मैंने कभी…

तुम्हारे घर में कोई 

पूजाघर तो नहीं देखा 

लेकिन

उपले थापते वक़्त 

तुम्हारे कंठ से

गुड़ की मिठास से भरे

मांड राग में 

भजन बहुत सुने हैं 


न जाने क्यों …

वक़्त के साथ अब सब कुछ 

बदल सा गया है

 मगर

मेरे लिए तुम्हारे 

घर का आंगन 

स्वप्न में सजीव हो कर

पूजाघर जैसा ही बन गया है


🍁🍁🍁

शनिवार, 26 मार्च 2022

घर में फूल की क्यारी रखना..


मुझ से न दोस्ती रखना ।

चालें न दोधारी रखना ।।


वार न करना पीठ पीछे से ।

इतनी सी होशियारी रखना ।।


 न करना  मीठी सी बातें ।

तंज की धार करारी रखना ।।


महक चाहिए यदि जीवन में ।

घर में फूल की क्यारी रखना ।।


 सुखद सफ़र की इच्छा है तो ।

बढ़िया साझेदारी रखना ।।

 

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शनिवार, 19 मार्च 2022

“मुक्तक”


अपनी करनी अपनी भरनी अपने हाथ में ,

दोषारोपण क्यों करना किसी पर बेबात में ॥

संसार में सर्वगुण परिपूर्ण कोई भी कहाँ है ,

फिर क्यों लीक पीटना किसी भी हालात में ॥

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मंद तारों की ज्योत ढलती रात की मानिंद ,

सोच गुम है भूसे के ढेर में सुई की मानिंद ॥

ऐसे जीवन का भी होना क्या होना जो ,

 खर्च हो रहा जेब के सिक्कों की मानिंद ॥

🍁


नकारने से हम नाकाबिल नहीं हो जाते ,

बिना श्रम के लक्ष्य हासिल नहीं हो जाते ॥

क्यों नहीं रख पाते सकारात्मक सोच और ,

जीत  की स्पर्धा में शामिल  नहीं हो जाते ॥

🍁


 स्व को मिटा जब किसी और के हो जाओगे ,

मिलेगी ख़ुशी जो किसी मासूम को हँसाओगे ॥

जीत का हर्ष क्या ? हार का दर्द क्या ?

खो कर खुद को खुद के करीब आ पाओगे ॥


🍁


***








शुक्रवार, 11 मार्च 2022

“त्रिवेणी”



जलती-बुझती रोशनियों को साफ़ आसमान से

निहार रहा है  तारों के साथ दूज का चाँद 


छोटी-छोटी ख़्वाहिशें भी आसमां सा साथ माँगती हैं 


🍁


विचारों के निर्वात की स्थिति में शून्य में डूबा मन

चंचल बच्चे सा अनुशासनहीनता की चादर ओढ़


भरी दोपहरी में नंगे पाँवों तपती रेत में घूमता है ।


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एक जैसी प्रकृति होती हैं

खरपतवार और स्मृतियों की


जितना हटाओ उतनी ही बढ़ती जाती हैं ।


🍁


निर्बल और आम आदमी की परेशानी जताती है 

कुछ लोगों की भयावह लिप्सा की भूख  


आदिकाल से होते युद्ध इस बात की गवाही देते हैं ।


🍁

शनिवार, 5 मार्च 2022

सूरज से बादल हटे न होते….,

सूरज से बादल हटे न होते

अंधेरे ही रहते उजाले न होते


राहें कभी इतनी आसां न होती

जो तुम साथ चल रहे न होते


माझी पहुँचाता नाव पार कैसे

लहरें ही होती किनारे न होते


गिरना संभलना सीख पाते कैसे

गिरे और संभल कर चले न होते


सच कहना सुनना होता ही अच्छा 

तो रिश्ते यूं बनते बिगड़ते न होते


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