सुख दुख का साझी
समय -घट
परछाई सा जीवन में
चलता रहा मेरे साथ
समय के साथ
पीछे रह गईं स्वाभाविक
प्रवृतियाँ..,
अंक में जुड़ते गए मौन और धैर्य
मेरे भीतर का अनुभूत
समय..,
दरिया बन बहता गया
सृजनात्मकता में
अक्षरांकन की इस यात्रा में
मेरा वजूद
कई बार रोया कई बार मुस्कुराया
काग़ज़ और कलम की
यायावरी में
कई पड़ावों के बाद जैसे मैंने
ख़ुद को खो कर खुद को पाया
***
बहुत सुंदर सफर , यूँही जारी रहे ...
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सहित सादर नमस्कार प्रिया जी !
हटाएंख़ुद को खोकर जो ख़ुद को पा लेता है फिर कुछ और पाने को नहीं रहता
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सहित सादर नमस्कार अनीता जी !
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर मंगलवार 22 जुलाई 2025 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
सादर आभार सहित सादर नमस्कार आदरणीय रवीन्द्र सिंह भाई जी 🙏
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर आभार सहित सादर नमस्कार सर !
जवाब देंहटाएंमेरे भीतर का अनुभूत
जवाब देंहटाएंसमय..,
दरिया बन बहता गया
सृजनात्मकता में
शुक्र है सृजनात्मक रही और साथ ही मौन और धैर्य
फिर खुद को तो पाना ही था....
बस खुद का साथ बना रहे।
ऊर्जात्मक प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक किया हार्दिक आभार सहित सादर नमस्कार सुधा जी !
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