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मंगलवार, 7 सितंबर 2021

"रिक्तता"

                      

 ताकती परवाज़े भरती

 चील को..

बोझिल,तन्द्रिल दृग पटल मूंद

लेटकर…, 

धूप खाती रजाईयों पर

 शून्य की गहराईयों में

 उतरना  चाहती हूँ


लिख छोड़ी है

 एक पाती तुम्हारे नाम 

 पढ़ ही लोगे 

मेरे मन की बात

जे़हन में ताजा है मेरी

कितनी याद..

तुम्हारी आँखों में

उस बेलिखी इब़ारत को

देखना चाहती हूँ


ख़फा हूँ खुद से ही

ना जाने क्यों..

नाराजगी की वजह

कुछ तो रही होगी

फुर्सत मिलेगी तो

वहीं 'वजह' 

ढूंढना चाहती हूँ


***

【चित्र :- गूगल से साभार】




35 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 8 सितंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
    !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. "पांच लिंकों का आनन्द" में रचना साझा करने के लिए हार्दिक आभार पम्मी जी।

      हटाएं
  2. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सर।

      हटाएं
  3. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (08-09-2021) को चर्चा मंच      "भौंहें वक्र-कमान न कर"     (चर्चा अंक-4181)  पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।--
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चर्चा मंच पर सृजन को चर्चा में सम्मिलित करने के लिए सादर आभार सर । कल की चर्चा में अवश्य उपस्थिति रहेगी ।

      हटाएं
  4. सरलता में झांकती है वेदना,
    सुंदर हृदय स्पर्शी भाव गहरे तक उतरते ।
    अभिनव सृजन,थोड़े में बहुत कुछ कहता।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयस्पर्शी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली । हार्दिक आभार कुसुम जी!सस्नेह वन्दे!

      हटाएं
  5. बेलिखी इबारत को लफ्ज़ देना कितना मुश्किल है न । फिर भी बेहद खूबसूरत लफ़्ज़ों में बयां किया है आपने । उम्दा नज़्म ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन सार्थकता मिली । हार्दिक आभार अमृता जी! सस्नेह वन्दे !

      हटाएं
  6. ख़फा हूँ खुद से ही

    ना जाने क्यों..

    नाराजगी की वजह

    कुछ तो रही होगी

    फुर्सत मिलेगी तो

    वहीं 'वजह'

    ढूंढना चाहती हूँ

    और वजह नहीं मिलती ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी स्नेहिल उपस्थिति हेतु हार्दिक आभार मैम! सस्नेह वन्दे ।

      हटाएं
  7. ख़फा हूँ खुद से ही

    ना जाने क्यों..

    नाराजगी की वजह

    कुछ तो रही होगी

    फुर्सत मिलेगी तो

    वहीं 'वजह'

    ढूंढना चाहती हूँ..मन में डोलते भावों को सुंदर शब्दों को पिरोती खूबसूरत रचना ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार जिज्ञासा जी!

      हटाएं
  8. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  9. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आलोक सर।

    जवाब देंहटाएं
  10. तुम्हारी आँखों में

    उस बेलिखी इब़ारत को

    देखना चाहती हूँ

    जवाब देंहटाएं
  11. ना खुद से खफा हो ए दोस्त
    प्रेम की बाकी है इब्तिदा अभी।
    ख़फ़ा हैं फिर भी आ कर छेड़ जाते हैं तसव्वुर में

    हमारे हाल पर कुछ मेहरबानी अब भी होती है

    लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से


    तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से



    ना खुद से खफा हो ए दोस्त
    प्रेम की बाकी है इब्तिदा अभी।
    ख़फ़ा हैं फिर भी आ कर छेड़ जाते हैं तसव्वुर में

    हमारे हाल पर कुछ मेहरबानी अब भी होती है

    लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से


    तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से

    ना खुद से खफा हो ए दोस्त
    प्रेम की बाकी है इब्तिदा अभी।
    ख़फ़ा हैं फिर भी आ कर छेड़ जाते हैं तसव्वुर में

    हमारे हाल पर कुछ मेहरबानी अब भी होती है

    लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से


    तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से




    ना खुद से खफा हो ए दोस्त
    प्रेम की बाकी है इब्तिदा अभी।
    ख़फ़ा हैं फिर भी आ कर छेड़ जाते हैं तसव्वुर में

    हमारे हाल पर कुछ मेहरबानी अब भी होती है

    लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से


    तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से

    ना खुद से खफा हो ए दोस्त
    प्रेम की बाकी है इब्तिदा अभी।
    ख़फ़ा हैं फिर भी आ कर छेड़ जाते हैं तसव्वुर में

    हमारे हाल पर कुछ मेहरबानी अब भी होती है

    लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से


    तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से




    ना खुद से खफा हो ए दोस्त
    प्रेम की बाकी है इब्तिदा अभी।
    ख़फ़ा हैं फिर भी आ कर छेड़ जाते हैं तसव्वुर में

    हमारे हाल पर कुछ मेहरबानी अब भी होती है

    लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से


    तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से












    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार वीरेन्द्र जी इतनी सुन्दर नज़्म साझा करने हेतु । सादर आभार आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु ।

      हटाएं
  12. वाह! खूबसूरत दृश्य का चित्रण किया है आपने, इस वजह को ढूँढने के लिए ही तो उस रब ने धरती पर भेजा है

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    उत्तर
    1. सृजन का मान बढ़ाती इतनी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए लिए आभारी हूँ अनीता जी ।

      हटाएं
  13. ख़फा हूँ खुद से ही

    ना जाने क्यों..

    नाराजगी की वजह

    कुछ तो रही होगी

    फुर्सत मिलेगी तो

    वहीं 'वजह'

    ढूंढना चाहती हूँ
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ज्योति जी ।

      हटाएं
  14. ख़फा हूँ खुद से ही

    ना जाने क्यों..

    नाराजगी की वजह

    कुछ तो रही होगी

    फुर्सत मिलेगी तो

    वहीं 'वजह'

    ढूंढना चाहती हूँ

    बहुत सुंदर..

    जवाब देंहटाएं

  15. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार विकास जी!

    जवाब देंहटाएं

  16. लिख छोड़ी है
    एक पाती तुम्हारे नाम
    पढ़ ही लोगे
    मेरे मन की बात
    जे़हन में ताजा है मेरी
    कितनी याद..
    बहुत खूब!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ऊषा जी ।

      हटाएं
  17. शब्द-शब्द बोल उठा है पढ़ ही लोगे मेरे मन की बात...
    बहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी सृजन आदरणीय मीना दी।
    सादर

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    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए स्नेहिल आभार अनीता जी !

      हटाएं
  18. खुद से नाराज्गो की वजह खोत्जा आसान तो होता है पर मन उसे मानना नहीं चाहता ... वो यूँ होता है न कभी कभी बस यूँ ही गुस्सा आता है ...

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  19. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सर।

      हटाएं
  20. ख़फा हूँ खुद से ही

    ना जाने क्यों..

    नाराजगी की वजह

    कुछ तो रही होगी

    फुर्सत मिलेगी तो

    वहीं 'वजह'

    ढूंढना चाहती हूँ

    खफा हुए कि कोई आकर मना ले पर उन्हें खबर न हुई
    खफा ही रहे उम्र भर पर अब खफा की वजह ही पता नहीं
    वाह!!!!

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"