दायरे हैं कुछ
जो बाँध रखे हैं जतन से
अपने आस-पास
उनमें डूब कर
अपनी अलग सी दुनिया में
जीने का आनंद
गूंगे के गुड़ सरीखा है
जो महसूस तो होता है
मगर..
बयान नही होता
उन दायरों में सेंध
असह्य पीड़ा भरती है
दिलोदिमाग में
अपने सुकून की खातिर
फिर से एक नई कोशिश
और..
उम्र का एक कीमती हिस्सा
निकल जाता है
चटके दायरों के
खाँचें भरने में
चिंतन तो यही कहता है-
'सर्वे भवन्तु सुखिनः'
या फिर
'वसुधैव कुटुम्बकम'
ऐसे समय में
सांसारिक व्यवहारिकता
की खातिर याद आती है
'निदा फ़ाज़ली' की एक ग़ज़ल
जो गूंजती है कानों में
'जगजीत सिंह जी'आवाज में
गुड़ की मिठास सी..
"दो और दो का जोड़ हमेशा चार कहाँ होता है
सोच समझ वालों को थोड़ी नादानी दे मौला'
***
"दो और दो का जोड़ हमेशा चार कहाँ होता है
जवाब देंहटाएंसोच समझ वालों को थोड़ी नादानी दे मौला'
क्या बात कही है आपने मीना जी,ज्यादा समझदारी भी अच्छी नहीं होती।
और जहाँ तक बात "दायरे" की है तो उसका बंधन भी जरुरी होता है।
सीख देती लाज़बाब रचना,सादर नमन आपको
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से आभार कामिनी जी।
हटाएंवाह!बहुत सुंदर सराहनीय सृजन दी।
जवाब देंहटाएंसोच समझ वालों को थोड़ी नादानी दे मौला।
मन को छूते भाव।
सादर
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से आभार अनीता जी।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 14 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसांध्य दैनिक मुखरित मौन में रचना साझा करने के लिए सादर आभार यशोदा जी।
हटाएंसही कहा है कि नादाँ लोग रिश्ते निबाह लेते हैं . सोच समझ वाले ही हैं जो कुछ ज्यादा समझदार बने रहते हैं . बहुत बार दायरे खींचने भी पड़ जाते हैं , गुड़ की सी मिठास भी चिंतन मनन से आ जाती है . सुन्दर रचना .
जवाब देंहटाएंआपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से असीम आभार मैम ।
हटाएंबहुत सुन्दर और भावप्रवण।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धित करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से असीम आभार सर।
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से असीम आभार सर।
हटाएंजब तक दायरे हैं तब तक सेंध लगती ही रहेगी, जिस दिन असीम हो जाएगा मन का आकाश, तब कोई पीड़ा नहीं छू पाएगी, तब कोशिश नहीं होगी सुकून भरने की, सुकून छलक-छलक कर बहेगा, और तब घटित होगा, वसुधैव कुटुंबकम स्वत: ही
जवाब देंहटाएंनिशब्द और मंत्रमुग्ध हूँ आपकी समझाइश भरी प्रतिक्रिया के लिए । हृदयतल से असीम आभार अनीता जी🙏🙏
हटाएं"दो और दो का जोड़ हमेशा चार कहाँ होता है
जवाब देंहटाएंसोच समझ वालों को थोड़ी नादानी दे मौला'
बहुत ही सुंदर सीख देती रचना,मीना दी।
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से असीम आभार ज्योति जी ।
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-3-21) को "धर्म क्या है मेरी दृष्टि में "(चर्चा अंक-4007) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
चर्चा मंच के आमन्त्रण के लिए हृदय से आभार कामिनी जी।
हटाएंअद्भुत मीना जी ,
जवाब देंहटाएंजिंदगी की जोड़ गणित से इतर होती है सच कहा आपने।
बहुत गहरे एहसास संजोए सुंदर सृजन।
आपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से असीम आभार कुसुम जी ।
हटाएंबहुत ही बेहतरीन रचना सखी 👌
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सखी !
हटाएं"दो और दो का जोड़ हमेशा चार कहाँ होता है
जवाब देंहटाएंसोच समझ वालों को थोड़ी नादानी दे मौला'
आपकी कविता और यह संदेश... कमाल के हैं...
साधुवाद 🙏
आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया से सृजन का मान बढ़ा । हार्दिक आभार वर्षा जी 🙏🌹🙏
हटाएंबेहद खूबसूरत रचना,उसमे चार चाँद लगाती हुई निदा फ़ाजली की दो पंक्तियाँ,दोनों ही कमाल के है मीना जी, ढेरों बधाई हो, नमन
जवाब देंहटाएंआपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया से सृजन का मान बढ़ा । हार्दिक आभार ज्योति जी🙏🌹🙏
हटाएंउन दायरों में सेंध
जवाब देंहटाएंअसह्य पीड़ा भरती है
दिलोदिमाग में
निदा फ़ाजली की गजल की खूबसूरत लाइनों के साथ बहुत ही सुन्दर एहसासों से सजी लाजवाब कृति....
वाह!!!
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से आभार सुधा जी।
हटाएंसुन्दर एहसासों से सजी लाजवाब गजल
जवाब देंहटाएंनिदा फ़ाज़ली जी की ग़ज़ल चार चाँद लग जाते हैं जगजीत सिंह जी आवाज में..वाकई में यह ग़ज़ल बहुत सुन्दर है ।
हटाएंहार्दिक आभार अनुज ।
बहुत खूब ... एक नया दार्शनिक अंदाज़ दिखाई दे रहा है आपका इस रचना में ... जीवन के अनुभव का दस्तावेज़ ऐसे ही इकठ्ठा होते हैं ....
जवाब देंहटाएंजी सत्य कथन!! जीवन अनुभव की शिक्षा सतत सीख देती हैं । आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
हटाएं