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शनिवार, 3 दिसंबर 2022

॥ जीवन बस यूँ ही चलता है ॥



सागर की बहती लहरों सी ,

सोचों पर कब वश चलता है ।

दुर्गम वन के दावानल में  सूखे पीले पत्तों सा ,

व्याकुल उर पल पल जलता है ।


जीवन बस यूँ ही चलता है ॥


तारों की झिलमिल में आँखें ,

स्वर्णिम सी भोर को तकती हैं ।

जुगनू सी कोई आस किरण बस प्रति पल पलती रहती है ,

दिन मंथर -मंथर ढलता है ।


जीवन बस यूँ ही चलता है ॥


खामोशी से बुनता रहता, 

स्वप्न महल के नींव-कंगूरे ।

सच की धरती पर टकरा कर रहे सभी आधे-अधूरे ,

मन अपने से छल करता है ।


जीवन बस यूँ ही चलता है ॥


***

42 टिप्‍पणियां:

  1. Almust read post! Good way of describing and pleasure piece of writing. Thanks!

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  2. छल करता मन , भ्रम में रहता है , जीवन यूँ ही चलता है ।
    सुंदर अभव्यक्ति ।।

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    1. आपकी सराहना से सृजन सार्थक हुआ, हार्दिक आभार आ. दीदी ! सादर सस्नेह वन्दे !

      हटाएं

  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०४-१२-२०२२ ) को 'सीलन '(चर्चा अंक -४६२४) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. चर्चा मंच पर सृजन को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार अनीता जी !

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  4. आदरणीया मीना जी, नमस्ते 🙏❗️
    व्याकुल उर में पलती आशा की किरणे सच की धरातल पर टकराकर आधे अधूरे मन से छल करता रहता है. सुन्दर भाव! साधुवाद!
    मेरी रचना "मैं ययावारी गीत लिखूँ," मेरे ब्लॉग पर पढ़ने की बाद ब्लॉग पर ही दिए गए लिंक पर भी मेरी आवाज़ में दृश्यों की संयोजन की साथ अवश्य देखें और सुनें... सादर ❗️--ब्रजेन्द्र नाथ

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    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक किया सादर आभार आदरणीय मर्मज्ञ सर 🙏

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  5. चलते रहने का नाम ही जीवन है , सुन्दर पंक्तियाँ
    जय श्री कृष्ण जी !

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    1. सादर आभार सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु । जय श्री कृष्ण 🙏

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  6. दार्शनिक भाव लिए बहुत ही सुंदर रचना मीना जी , सच मन कितनी बार स्वयं को ही छलता है।
    ये रचना मुझे मेरी एक बहुत पुरानी रचना की याद दिला गई।
    बहुत सुंदर सृजन।
    अभिनव श्र्लाघनीय।

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    1. आपकी सारगर्भित सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार कुसुम जी !

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  7. आपकी लिखी रचना सोमवार 5 दिसंबर 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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    उत्तर
    1. पाँच लिंकों का आनन्द की कल की प्रस्तुति में सृजन को सम्मिलित करने के लिए हृदयतल से आभार आदरणीया दीदी ! सादर सस्नेह वन्दे 🙏

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  8. उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक किया सादर आभार 🙏

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  9. जीवन बस यूंही चलता है..सचमुच..बहुत त सुन्दर गीत.

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    उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक किया सादर आभार 🙏

      हटाएं
  10. उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक किया सादर आभार 🙏

      हटाएं
  11. उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक किया सादर आभार 🙏

      हटाएं
  12. खामोशी से बुनता रहता,
    स्वप्न महल के नींव-कंगूरे ।
    सच की धरती पर टकरा कर रहे सभी आधे-अधूरे ,
    मन अपने से छल करता है ।…बहुत खूब!

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    उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक किया सादर आभार 🙏

      हटाएं
  13. उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक किया सादर आभार 🙏

      हटाएं
  14. सागर की बहती लहरों सी ,

    सोचों पर कब वश चलता है ।

    आपकी इस सोच से तो आपकी कलम ऐसे अप्रतिम और अनमोल सृजन करती है।
    जीवन सत्य को उजागर करती बहुत ही सुन्दर सृजन मीना जी 🙏

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    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक किया सादर आभार कामिनी जी 🙏

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  15. उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक किया सादर आभार अनीता जी 🙏

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  16. जीवन संदर्भ पर रची गई दार्शनिक बोध लिए सुंदर कविता ।बधाई मीना जी ।

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  17. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक किया सादर आभार जिज्ञासा जी 🙏

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  18. वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर गीत

    सागर की बहती लहरों सी ,

    सोचों पर कब वश चलता है ।

    दुर्गम वन के दावानल में सूखे पीले पत्तों सा ,

    व्याकुल उर पल पल जलता है ।
    बहुत लाजवाब।



    जीवन बस यूँ ही चलता है ॥

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    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक किया सादर आभार जिज्ञासा जी 🙏

      हटाएं
  19. जीवन को लेकर बहुत शानदार लिखा मीना जी, वाह क्‍या खूब कहा है कि ''तारों की झिलमिल में आँखें ,

    स्वर्णिम सी भोर को तकती हैं ।

    जुगनू सी कोई आस किरण बस प्रति पल पलती रहती है ,

    दिन मंथर -मंथर ढलता है ।''...वाह

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  20. आपकी ऊर्जावान स्नेहिल उपस्थिति के लिए हृदयतल से आभार अलकनन्दा जी 🙏

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  21. Hey,
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  22. बहुत ही लाजवाब सृजन,मीना दी।

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    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक किया हार्दिक आभार ज्योति जी 🙏

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  23. दिगम्बर नासवा24 दिसंबर 2022 को 7:34 am बजे

    सच है जीवन यूँ ही चलता है …
    कभी ऊँच कभी नीच इस माया भरे संसार में हिलोरें लेता जीव … ये सब न भी करे तो और क्या है जो कर सकता है इंसान … लाजवाब रचना …

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  24. सारगर्भित सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार नासवा जी 🙏

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"