नये अर्थ दे कर
दर्द...
जिंदगी को मांजता है
अंधेरों से डर कर
भागती जिंदगी की
अंगुली थाम..
ला खड़ा करता है
धूप-छाँव की
आँख-मिचौली के
आँगन में...
वक्त के साथ
जड़ पड़ी
संवेदनाओं का कोई
मोल नहीं होता
बस...
नीम बेहोशी में
अनीस्थिसिया सूंघे
मरीज सी…
अभिव्यक्ति के
नाम पर बेबस सी
कसमसाती
महसूस तो होती हैं
अभिव्यक्त ही
नहीं होती
***
बहुत सुंदर सृजन। बाकी संवेदनाएं कभी खोना नहीं चाहिए।
जवाब देंहटाएंसारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार शिवम् जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया द्वारा उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार सर.
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 9 नवंबर 2020 को 'उड़ीं किसी की धज्जियाँ बढ़ी किसी की शान' (चर्चा अंक- 3880) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
प्रविष्टि के लिंक को चर्चा में सम्मिलित करने के लिए सादर आभार रविंद्र सिंह जी ।
हटाएंवक्त के साथ
जवाब देंहटाएंजड़ पड़ी
संवेदनाओं का कोई
मोल नहीं होता...
अभिव्यक्ति ही इन संवेदनाओं को जीवित कर सकती है !!!
सत्य कथन मीना जी ! आपकी उपस्थिति सदैव मनोबल संवर्द्धन करती है । हृदयतल से सस्नेह आभार।
हटाएंअत्यंत भावपूर्ण...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना...
हार्दिक आभार शरद जी !
हटाएंमन को छूती बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय मीना दी ।
जवाब देंहटाएंसादर
आपकी उपस्थिति सदैव मनोबल संवर्द्धन करती है । हृदयतल से सस्नेह आभार अनीता!
हटाएंGreat work
जवाब देंहटाएंBEST RAJASTHAN GK
Thank you Nutan .
हटाएंवाह !बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार अनुज ।
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार सखी.
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