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शनिवार, 7 नवंबर 2020

"संवेदनाएँ"

                          

 नये अर्थ दे कर

दर्द...

जिंदगी को मांजता है

अंधेरों से डर कर

भागती जिंदगी की

अंगुली थाम..

ला खड़ा करता है

धूप-छाँव की 

आँख-मिचौली के

आँगन में...

वक्त के साथ

जड़ पड़ी

संवेदनाओं का कोई 

मोल नहीं होता

बस...

नीम बेहोशी में

अनीस्थिसिया सूंघे 

मरीज सी…

अभिव्यक्ति के 

नाम पर बेबस सी 

कसमसाती 

महसूस तो होती हैं

अभिव्यक्त ही

नहीं होती


***

18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर सृजन। बाकी संवेदनाएं कभी खोना नहीं चाहिए।

    जवाब देंहटाएं
  2. सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार शिवम् जी ।

    जवाब देंहटाएं
  3. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया द्वारा उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार सर.

      हटाएं
  4. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 9 नवंबर 2020 को 'उड़ीं किसी की धज्जियाँ बढ़ी किसी की शान' (चर्चा अंक- 3880) पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रविष्टि के लिंक को चर्चा में सम्मिलित करने के लिए सादर आभार रविंद्र सिंह जी ।

      हटाएं
  5. वक्त के साथ

    जड़ पड़ी

    संवेदनाओं का कोई

    मोल नहीं होता...
    अभिव्यक्ति ही इन संवेदनाओं को जीवित कर सकती है !!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सत्य कथन मीना जी ! आपकी उपस्थिति सदैव मनोबल संवर्द्धन करती है । हृदयतल से सस्नेह आभार।

      हटाएं
  6. अत्यंत भावपूर्ण...
    बेहतरीन रचना...

    जवाब देंहटाएं
  7. मन को छूती बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय मीना दी ।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी उपस्थिति सदैव मनोबल संवर्द्धन करती है । हृदयतल से सस्नेह आभार अनीता!

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"