धीरे धीरे सांझ उतरी ,
जीवन में गोधूलि बेला ।
रीत जगत की चली आई ,
जीना चार दिन का खेला ।।
हाथों में हैं नवल पाटल ,
दृग संजोते नई आशा ।
गा के सांध्य गीत कोई ,
भरे मन में नव प्रत्याशा ।।
कौन है ऐसा जगत में ,
जिसने ना एकांत झेला ।
रीत जगत की चली आ रही ,
जीना चार दिन का खेला ।।
आ रही सागर से लहरें ,
बन के तेरी संगी साथी ।
करती तन्द्रा भंग तेरी ,
वापस किनारे लौट जाती ।।
तेरे दुख सुख की ये साझी ,
क्यों समझे खुद को अकेला ।
रीत जगत की चली आ रही ,
जीना चार दिन का खेला ।।
जल उठे ये प्रकाश स्तंभ ,
अब क्या बैठा सोचता है ।
भरा पूरा उपवन सा घर ,
वो तेरी बाट जोहता है ।।
देख विहग घर लौटते हैं ,
कल होगा फिर से सवेरा ।।
रीत जग की चली आ रही ,
जीना चार दिन का खेला ।।
🍁🍁🍁
कौन है ऐसा जगत में ,
जवाब देंहटाएंजिसने ना एकांत झेला ।
रीत जगत की चली आ रही ,
जीना चार दिन का खेला ।।
सुन्दर एवं सटीक सृजन......
बहुत बहुत आभार विकास जी ।
हटाएंबहुत सुन्दर सकारात्मक लेखन
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा
आपको अच्छा लगा..लेखन सफल हुआ । हार्दिक आभार दी! सादर...
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार सर .
हटाएंयही कारण है कि हमारे संस्कृति में जगत को लीला कहा गया है और जीवन सच में चार दिनों का खेला ही है । अति सुन्दर कथ्य ।
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रिया सदैव लेखन के प्रति रूझान बढ़ाती है । हृदय से असीम आभार अमृता जी ।
हटाएंजीवन संदर्भ को रेखांकित करती सशक्त कृति..
जवाब देंहटाएंसराहना भरी प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ जिज्ञासा जी ।
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार सर .
हटाएंमीना जा हेशा की तरह इस बार भी उम्दा रचना पढ़वाने के लिए धन्यवाद...क्या खूब लिखा है ...जल उठे ये प्रकाश स्तंभ ,
जवाब देंहटाएंअब क्या बैठा सोचता है ।
भरा पूरा उपवन सा घर ,
वो तेरी बाट जोहता है ।।
...वाह
आपकी स्नेहभरी ऊर्जावान प्रतिक्रिया के लिए आभार अलकनंदा जी!
हटाएंरीत जग की चली आ रही
जवाब देंहटाएंजीना चार दिन का खेला,
एकदम यथार्थ पूर्ण रचना
बहुत अच्छा लगा
आपकी सराहना सम्पन्न ऊर्जावान प्रतिक्रिया के लिए हृदय से असीम आभार भारती जी!
हटाएंकौन है ऐसा जगत में ,
जवाब देंहटाएंजिसने ना एकांत झेला ।
रीत जगत की चली आ रही ,
जीना चार दिन का खेला ।।
जीवन के यथार्थ को कविता में बड़ी ख़ूबसूरती से पिरोया है आपने...
साधुवाद मीना जी 🙏❤️🙏
आपकी सराहना सम्पन्न ऊर्जावान प्रतिक्रिया के लिए हृदय से असीम आभार वर्षा जी 🙏❤️🙏
हटाएंतेरे दुख सुख की ये साझी ,
जवाब देंहटाएंक्यों समझे खुद को अकेला ।
रीत जगत की चली आ रही ,
जीना चार दिन का खेला ।।
चिंतन की गहराई तक दर्शाती बहुत सुंदर रचना...
सृजन को सार्थकता प्रदान करती सराहना सम्पन्न ऊर्जावान प्रतिक्रिया के लिए हृदय से असीम आभार शरद जी 🙏
हटाएंबहुत ही सुंदर सृजन प्रिय मीना दी।
जवाब देंहटाएंसादर
सृजन को सार्थकता प्रदान करती सराहना सम्पन्न ऊर्जावान प्रतिक्रिया के लिए हृदय से असीम आभार प्रिय अनीता ।
हटाएंजल उठे ये प्रकाश स्तंभ ,
जवाब देंहटाएंअब क्या बैठा सोचता है ।
भरा पूरा उपवन सा घर ,
वो तेरी बाट जोहता है ।। सुन्दर सृजन।
उत्साहवर्धन करती सराहनीय प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार सर .
जवाब देंहटाएंचार दिवस के जीवन में भी विभिन्न रँग होते हैं ... और ऐसे ही कुछ नवरँग का संकलन है ये रचना ... बहुत सुन्दर भावपूर्ण ...
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन हेतु सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार नासवा जी .
हटाएंहाथों में हैं नवल पाटल ,
जवाब देंहटाएंदृग संजोते नई आशा ।
गा के सांध्य गीत कोई ,
भरे मन में नव प्रत्याशा ।।
"जीना चार दिन का खेला"ही तो है लकिन उन्ही चार दिनों को नई उत्साह और ऊर्जा के साथ जीना ही असली जीवन है,
सुंदर,मनभावन सृजन मीना जी
सृजन को सार्थकता प्रदान करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया लिए हृदय से असीम आभार प्रिय कामिनी जी ।
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