( 1 )
      तुम्हारे और मेरे बीच 
      एक थमी हुई झील है
      जिसकी हलचल 
      जम सी गई है ।
      जमे भी क्यों नहीं…..,
      मौसम की मार से
      धूप की गर्माहट
      हमारे नेह की 
     आंच की मानिंद
     बुझ सी गई है ।
             ( 2 )
      सांस लेने दो इस को
      शब्दों पर बंधन क्यों
      यह नया सृजन है
      कल-कल करता निर्झर
      अनुशासनहीन  नहीं
      मंजुलता का प्रतीक है 
                XXXXX
एक थमी हुई झील, जिसकी हलचल जम सी गई है ... जरूरत है इसमें एक छलांग लगाने की और इसे हिलकोर देने की। नेह के प्रसुप्त बीज बोने की।
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना....शुभकामनाएं आदरणीय मीना जी।
बहुत बहुत आभार आपका इतनी सुन्दरता से विश्लेषणात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिये पुरुषोत्तम जी ।
हटाएंसुंदर रचनाएं मीना जी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद अनुराधा जी ।
हटाएंहमारे नेह की
जवाब देंहटाएंआंच की मानिंद
बुझ सी गई है ।
.....बेहद उम्दा
कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
व्यस्ताओं के बाद भी आप जब भी ब्लाॅग पर आते हैं आपकी सराहनीय और ऊर्जात्मक प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा सदैव रहती है 🙏🙏
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