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गुरुवार, 20 सितंबर 2018

"लघु कविताएं"

( 1 )

तुम्हारे और मेरे बीच
एक थमी हुई झील है
जिसकी हलचल
जम सी गई है ।
जमे भी क्यों नहीं…..,
मौसम की मार से
धूप की गर्माहट
हमारे नेह की
आंच की मानिंद
बुझ सी गई है ।
 ( 2 )

सांस लेने दो इस को
शब्दों पर बंधन क्यों
यह नया सृजन है
कल-कल करता निर्झर
अनुशासनहीन  नहीं
मंजुलता का प्रतीक है
 
      XXXXX

6 टिप्‍पणियां:

  1. एक थमी हुई झील, जिसकी हलचल जम सी गई है ... जरूरत है इसमें एक छलांग लगाने की और इसे हिलकोर देने की। नेह के प्रसुप्त बीज बोने की।
    अच्छी रचना....शुभकामनाएं आदरणीय मीना जी।

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    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार आपका इतनी सुन्दरता से विश्लेषणात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिये पुरुषोत्तम जी ।

      हटाएं
  2. हमारे नेह की
    आंच की मानिंद
    बुझ सी गई है ।
    .....बेहद उम्दा
    कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. व्यस्ताओं के बाद भी आप जब भी ब्लाॅग पर आते हैं आपकी सराहनीय और ऊर्जात्मक प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा सदैव रहती है 🙏🙏


      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"