वक्त मिला है आज , कुछ अपना ढूंढते हैं ।
करें खुद से खुद ही बात , अपना हाल पूछते हैं ।।
कतरा कतरा वक्त , लम्हों सा बिखर गया ।
फुर्सत में खाली हाथ , उसे पाने को जूझते हैं ।।
दौड़ती सी जिंदगी , यकबयक थम गई ।
थके हुए से कदम , खुद के निशां ढूंढते हैं ।।
गर्द सी जमी है , घर के दर और दीवारों पर ।
मेरे ही मुझ से गैर बन , मेरा नाम पूछते हैं ।।
ज़िन्दगी की राह में , देखने को मिला अक्सर ।
दोस्त ही दुश्मन बन , दिल का चैन लूटते हैं ।।
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जवाब देंहटाएंगर्द सी जमी है , घर के दर और दीवारों पर ।
मेरे ही मुझ से गैर बन , मेरा नाम पूछते हैं ।।
बहुत सुंदर रचना मीना जी
बहुत बहुत धन्यवाद अनुराधा जी ।
हटाएंवाहः बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
तहेदिल से धन्यवाद लोकेश नदीश जी ।
हटाएंज़िन्दगी की राह में , देखने को मिला अक्सर ।
जवाब देंहटाएंदोस्त ही दुश्मन बन , दिल का चैन लूटते हैं ।।
वाह !!!
क्या बात है!!!
बेहद सुन्दर ...लाजवाब...
बहुत बहुत आभार सुधा जी ।
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंस्वागत आपका "मंथन" पर एवं आभार ।
हटाएंवाह वाह
जवाब देंहटाएंकमाल की रचना है.
मशगुल है अपने आप में सब
घर में कौन मुझे पहचाने है अब. रंगसाज़
हौंसला अफजाई करती सुन्दर सी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार रोहिताश्व जी ।
हटाएंमेरे ही मुझ से गैर बन , मेरा नाम पूछते हैं ।।......वाह!!!
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार विश्व मोहन जी।
हटाएंज़िन्दगी की राह में देखने को मिला अक्सर ।
जवाब देंहटाएंदोस्त ही दुश्मन बन दिल का चैन लूटते हैं ।।
..........बेहतरीन पंक्तियाँ रची हैं मीना जी
ऊर्जात्मक मनोबल संवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार संजय जी :-)
हटाएंसही कहा है ...
जवाब देंहटाएंदोस्त बन कर ही कुछ लोग लूटते हैं ... वार करते हैं ...
बहुत ही अच्छे शेर हैं ...
हौसला अफजाई के लिए हृदयतल से आभार नासवा जी ।
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