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मंगलवार, 3 मार्च 2020

"व्यथा"


मैं अपने बहुत करीब हूँ ,
या फिर खुद से दूर हूँ ।
व्यथित हूँ मन से बहुत ,
चुप रहने को मजबूर हूँ ।।

अर्पित कर दिया तुझे ,
स्व भी स्वाभिमान भी ।
रिक्त मन के कोष मेरे ,
मांगे उर्जित प्राण भी ।।

शब्द भी नाराज मुझसे ,
पहले सी रवानी मांगें ।
निश्छल सरल हृदय से ,
नेह पगी निशानी मांगें ।।

तिमिर में डूबे जहां को ,
रोशनी की आस है ।
स्वाति नक्षत्र  बूंद की ज्यों ,
चातक को प्यास है ।।

★★★★★

26 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (04-03-2020) को    "रंगारंग होली उत्सव 2020"  (चर्चा अंक-3630)    पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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    1. कल चर्चा मंच पर चर्चा में सृजन को मान देने के लिए हृदय से आभार सर🙏

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  2. बेहद हृदयस्पर्शी सृजन दी।
    शब्द विन्यास अनुपम है और भाव तरल.प्रवाह लिये।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुन्दर सराहना और स्नेह सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए स्नेहिल आभार श्वेता ।

      हटाएं
  3. बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीया मीना दी.
    सादर

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    उत्तर
    1. सुन्दर सराहनीय स्नेह सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए सस्नेह आभार अनीता ।

      हटाएं
  4. तिमिर में डूबे जहां को ,
    रोशनी की आस है ।
    हृदय को शीतलता प्रदान करता सृजन ।
    प्रणाम मीना दी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार शशिभाई !

      हटाएं
  5. Meena ji

    ye wali tippani to aapko tah e dil se aur sneh se bhare aadar ke sath aabhar krne ke liye he..agli tippani rchnaa ke liye hogi

    इतने स्नेहिल शब्दों के लिए बहुत बहुत आभार
    बहुत ही खुसी हुई आपसे ये शब्द आ कर


    जी वयसत नहीं बहुत ही ज़्यदा व्यस्त और शायद आगे भी रहूं। ... मगर मन की उथल पुथल जब जवार भाटा का रूप ले लेती हैं तो बस फिर रुका नहीं जाता


    युहीं साथ बनाये रखें और अपने लेखन से खुशबु बिखेरती रहें


    सादर आभार

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मन हर्षित हैं आपके दिये मान से... हृदय से आभार आपका जोया जी 🙏🙏

      हटाएं
  6. व्यथित हूँ मन से बहुत ,चुप रहने को मजबूर हूँ

    स्वाति नक्षत्र बूंद की ज्यों ,चातक को प्यास है ।

    इन दो पंक्तियों पे तो बस। ..दिल भी मुस्कुरा उठा

    बहुत ही प्यारी रचना

    ख़ास कर
    स्वाति नक्षत्र बूंद की ज्यों ,चातक को प्यास है ।
    आहा ! बहुत सुंदर din ban jata hai asia pdh kr ..
    बधाई स्वीकारें

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    उत्तर
    1. सुन्दर सराहना भरी सारगर्भित प्रतिक्रिया से लेखनी को सार्थकता मिली जोया जी । हृदयतल से हार्दिक आभार ।

      हटाएं
  7. मैं अपने बहुत करीब हूँ ,
    या फिर खुद से दूर हूँ ।
    व्यथित हूँ मन से बहुत ,
    चुप रहने को मजबूर हूँ ।।
    भीतर की अकुलाहट को शब्द देती सशक्त अभिव्यक्ति प्रिय मीना जी |कभी कभी मन को अपने आप से सवाल जवाब करने पड़ जाते हैं | भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनायें |

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी स्नेहिल समीक्षा ने सृजन का मान बढ़ा दिया प्रिय रेणु बहन ! हृदयतल से आभार आपका ।आपकी स्नेह भरी प्रतिक्रिया की सदैव प्रतीक्षा रहती है । सस्नेह ...

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  8. वाह बहुत ही खूबसूरत भाव पिरोए अपने मन में कोमल भावनाएं उथल-पुथल करने लगी.. एकदम सरलता से मन को बींधते हुए अंदर आ रही है ऐसा प्रतीत हुआ इसे पढ़कर. यूं ही सरल मन को छूने वाली कविताएं लिखते रहा कीजिए ढेर सारी धन्यवाद और शुभकामनाएं

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    उत्तर
    1. कविता के भाव आपके हृदय तक पहुंचे लिखना सफल हुआ अनु जी । आपकी शुभकामनाएं बहुत अनमोल हैं..हृदयतल से स्नेहिल आभार ।

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  9. खूबसूरत भाव पिरोए अपने मीना दी

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    उत्तर
    1. हार्दिक आभार संजय भाई :-) आपका स्नेहिल संबोधन मन को छू गया । पुनः बहुत बहुत आभार ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"