पूरे दिन की नीरवता
और गोधूलि से पूर्व
मंदिरों की सांध्य आरती सी
घंटे ,शंख और थाली की
गूंज….,
बालकॉनी रुपी आंगन और छत से
झांकते चेहरे हाथों में थामें
प्लेटेंं-चम्मच
और बजाते तालियां
अचानक ऊँची ऊँची इमारतें
बन गई गंगा घाट..
जहाँ सांध्य आरती में
आध्यात्म और भौतिक जगत
बिना किसी किन्तु- परन्तु
हो जाते हैं एकाकार
जल और गुड़ की तरह
विपदा की घड़ी में
कृतज्ञता ज्ञापित करते
सेवाभावियों के लिए
असीम सर्वोच्च शक्ति के लिए
जिसके हाथों में बंधी है
सृष्टि की…
समस्त जीवात्मा की डोर
और जिसके बल पर...
सिर ऊँचा किये खड़ी है
मानवता…
★★★★★
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 23 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसांध्य दैनिक मुखरित मौन में रचना साझा करने के लिए सादर आभार यशोदा जी ।
हटाएंमानवता के लिए एतिहात रक्खे।
जवाब देंहटाएंनि.मों और कानूनों का पालन करें।
जी सर 🙏 सतर्कता, सावधानी और स्वच्छता के साथ नियम और कानून का पालन जीवन के अनिवार्य अंग होने ही चाहिए । बहुत बहुत आभार आपकी नेक सलाह के लिए 🙏🙏
हटाएंविपदाएँ हमारे धैर्य और संयम की परीक्षा लेने ही आती हैं। बेहतरीन अभिव्यक्ति मीनाजी।
जवाब देंहटाएंर्हौसला बढ़ाती सकारात्मक और सार्थक अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए अंतस् की गहराइयों से स्नेहिल आभार मीना जी ।
हटाएंविपदाओं में ही इंसान की सही परख होती है। सुंदर प्रस्तूति, मीना दी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ज्योति बहन उत्साह संवर्द्धन के लिए ।
हटाएंबहुत सुंदर प्रिय मीना जी | कोरोना योद्धाओं को ये आभार -नमन अविस्मरनीय और नयनाभिराम था |सचमुच आज साम्प्रदायिकता परास्त हो गयी , मानवता के मुस्कुराने , खिलखिलाने की घड़ी आई है , जोकि इंसान का अच्छा धर्म है | आभार इस मानवीय बिन्दुओं को छूती रचना के लिए |
जवाब देंहटाएंआपकी उपमा बहुत सुन्दर है "कोरोना योद्धा"। महामारी के खिलाफ इनका बीमारों की सेवा करना , घरों मे बन्द जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति करना एक तरह का युद्ध ही तो है । इतनी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार प्रिय रेणु बहन ।
हटाएंदेश का यह दृष्य विभोग कर देता है -हमारे लोग सुरक्षित रहें !
जवाब देंहटाएंआपकी उपस्थिति और शुभेच्छा सम्पन्न अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार मैम.शीघ्र ही विपदा का अंधकार नष्ट हो...सभी स्वस्थ रहे , सुरक्षित रहें🙏🙏
हटाएंअपने देश का यह दृष्य विभोर कर देता है - अपने लोग सुरक्षित रहें!
जवाब देंहटाएंयह दृष्य अभिभूत कर देता है -अपने लोग सुरक्षित रहें!
जवाब देंहटाएंमानवता के भाव को पुष्ट करती बहुत प्रभावशाली रचना. रचना का शब्द-शब्द अपना अर्थ और प्रभाव लिये हुए है जो मर्म को छूकर चिंतन की ओर ले जाता है.
जवाब देंहटाएंबधाई आदरणीया दीदी सुंदर सारगर्भित रचना हेतु.
सादर
रचना के मनोभावों को महसूसती आत्मीय प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार प्रिय अनुजा !
हटाएंबहुत सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंहृदयतल से आभार सखी ।
हटाएंमानवता का यही भाव हम सब को बचा ले जाएगा इस महामारी से ...
जवाब देंहटाएंस्वागत योग्य आह्वान था ... प्रतिउत्तर भी कमाल था सभी का ...
स्वागत आपकी शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया का ..सब स्वस्थ रहें..सुरक्षित रहें ।🙏🙏
हटाएंसार्थक और सामयिक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय .
हटाएंगोधूलि से पूर्व
जवाब देंहटाएंमंदिरों की सांध्य आरती सी
घंटे ,शंख और थाली की
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ऊँची ऊँची इमारतें
बन गई गंगा घाट..
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ऊँची ऊँची इमारतें
बन गई गंगा घाट..
आप की शब्दावली और फिर शब्दों को जीवन के सूक्षम लैंस तले देखते हुए उन्हें भावों को आपस में गूंधना फिर इक मनमोहक और आकषर्क रचना त्यार ककर देना
आपकी ये शैली बेहद भाति है मुझे
साथ में इक पॉज़िटिव वाइव से भरती रचना
बधाई
गोधूलि से पूर्व
जवाब देंहटाएंमंदिरों की सांध्य आरती सी
घंटे ,शंख और थाली की
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ऊँची ऊँची इमारतें
बन गई गंगा घाट..
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ऊँची ऊँची इमारतें
बन गई गंगा घाट..
आप की शब्दावली और फिर शब्दों को जीवन के सूक्षम लैंस तले देखते हुए उन्हें भावों को आपस में गूंधना फिर इक मनमोहक और आकषर्क रचना त्यार ककर देना
आपकी ये शैली बेहद भाति है मुझे
साथ में इक पॉज़िटिव वाइव से भरती रचना
बधाई
हम सब स्वस्थ रहें , सुरक्षित रहें इसके लिए सावधानी और सतर्कता के साथ असीम ईश्वरीय शक्ति के प्रति आस्था जीवन में जीजिविषा भरती है . बहुत बहुत आभार जोया जी .सब कुशल रहे..स्वस्थ रहेंं 🙏
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(२९-०३-२०२०) को शब्द-सृजन-१४"मानवता "( चर्चाअंक - ३६५५) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
शब्द-सृजन में रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार अनीता जी ।
हटाएंसमस्त जीवात्मा की डोर
जवाब देंहटाएंऔर जिसके बल पर...
सिर ऊँचा किये खड़ी है
मानवता…
बहुत खूब ,यथार्थ सृजन ,जब भी हम मानवता को मारने लगते हैं सृष्टि नियन्ता किसी न किसी बहाने हमें याद दिलाने आ ही जाते हैं ,सादर नमन मीना जी
रचना का मर्म स्पष्ट करती आपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हृदय से असीम आभार कामिनी जी । सस्नेह...,
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